मुरैना सीट भी त्रिकोणीय मुकाबले में फंसी

बसपा के गर्ग से दोनों क्षत्रिय प्रत्याशियों के समीकरण बिगड़े.

भोपाल/मंगल भारत। ग्वालियर -चंबल की मुरैना सीट भी सतना की ही तरह त्रिकोणीय मुकाबले में फंस गई है। यहां पर बसपा का उम्मीदवार भाजपा व कांग्रेस प्रत्याशियों के समीकरण बिगाड़ रहे है। दरअसल इस सीट पर दोनों ही दलों ने क्षत्रिय समाज से आने वाले प्रत्याशी उतारे हैं। भाजपा ने जहां शिवमंगल सिंह तोमर को तो कांग्रेस ने सत्यपाल सिंह सिकरवार को प्रत्याशी बनाया है। इस सीट पर बसपा ने उद्योगपति और पूर्व कांग्रेसी नेता रमेश चंद्र गर्ग को मैदान में उतारा है। यही वजह है कि इस सीट पर तीनों ही दल पूरा जोर लगा रहे हैं। फिलहाल स्थिति यह है कि आमजन अभी किसी की भी जीत हार का दावा नहीं कर पा रहे हैं। उत्तर प्रदेश व राजस्थान से सटी इस सीट को बेहद अहम माना जाता है। बीते लोकसभा चुनाव तक इस सीट पर कांग्रेस में जब तक ज्योतिरादित्य सिंधिया रहे, उनकी ही पसंद के उम्मीदवार मैदान में उतारे जाते रहे हैं। इस बीच 2014 में जब पूर्व नेता प्रतिपक्ष डॉ. गोविंद सिंह को कांग्रेस ने प्रत्याशी बनाया तो उनको हराने के लिए कांग्रेस नेताओं ने ही ऐसा चक्रव्यूह रचा था कि वे धराशाही हो गए थे। यह सीट 2009 में सामान्य हुई, तो पहली बार यहां से नरेन्द्र सिंह तोमर सांसद चुने गए थे। इसके पहले कांग्रेस वर्ष 1991 में जीती थी। उसके बाद से 33 साल हो चुके हैं, उसे अभी तक जीत का इंतजार है। इस संसदीय क्षेत्र में बसपा का खासा प्रभाव रहा है और उसी प्रभाव के सहारे भाजपा चुनाव जीतती आ रही है, क्योंकि जितने वोट बसपा को मिलते हैं, उतने ही मतों से कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ता है। अगर बीते चुनाव की बात करें तो वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के नरेंद्र सिंह तोमर ने कांग्रेस के रामनिवास रावत को 113981 मतों से हराया था जबकि बसपा प्रत्याशी को 129310 मत मिले थे।
विधानसभा चुनाव के बाद से कांग्रेस की उम्मीद जगी
वर्ष 2023 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने मुरैना संसदीय क्षेत्र के 8 विस क्षेत्रों में से 5 पर जबकि, भाजपा को सिर्फ 3 विस पर ही जीत मिली। यह परिणाम उस समय आया जब प्रदेश में भाजपा भारी बहुमत से चुनाव जीती और सिंधिया भी भाजपा के खाते में शामिल थे। विस चुनाव में कांग्रेस ने इस सीट के तहत आने वाली विस सीटों में से मुरैना, अंबाह, जौरा, विजयपुर, श्योपुर में जीत दर्ज की है जबकि ,भाजपा को महज दिमनी, सुमावली, सबलगढ़ में ही जीत मिल सकी है। विस चुनाव में दोनों ही दलों को मिले मतों का आंकड़ा देखें तो उसमें कांग्रेस 21 हजार 813 मतों से भाजपा से आगे रही थी। भाजपा को जहां 5 लाख 26 हजार 275 मत मिले, वहीं कांग्रेस को 5 लाख 48 हजार 88 मत मिले थे।
यह है जातीय समीकरण
मुरैना लोकसभा सीट की बात करें तो इसको लेकर कहा जाता है कि यहां कोई लहर काम नहीं आती, क्योंकि यहां चुनाव जातिगत आधार पर होता रहा है। यहां ठाकुर और ब्राह्मण की लड़ाई रहती है। जातिवाद की राजनीति के कारण ही इस सीट का रुख विपरीत दिशा में रहता है। मुरैना क्षेत्र में सवर्ण वोटर निर्णायक भूमिका में होते हैं। जातीय समीकरण के हिसाब से देंखे तो संसदीय क्षेत्र में करीब चार लाख दलित मतदाता, ढाई लाख के करीब ब्राहाण, 245 लाख क्षत्रिय मतदाता, करीब सवा लाख वैश्य मतदाता हैं, मुस्लिम मतदाताओं की संख्या यहां करीब एक लाख के आसपास है।
बसपा की ताकत
पूर्व के चुनावों पर नजर डालें तो बसपा भी अपनी ताकत दिखाती रही है। बीते चुनाव में भाजपा के नरेंद्र सिंह तोमर 5,41,689 वोट मिले थे, जबकि कांग्रेस के रामनिवास को 4,28,348 वोट मिले। बसपा के अवतार सिंह भड़ाना को इस दौरान 1,29,380 वोटों मिले थे और वे तीसरे स्थान पर रहे थे। इसके पूर्व 2014 की मोदी लहर में अनूप मिश्रा को जीत मिली थी , तब उन्हें 3,75,567 और बसपा के वृंदावन सिकरवार को 2,42,586 मत मिले थे इस चुनाव में कांग्रेस के गोविंद सिंह को महज ही 1,84,253 मत मिले थे, जिससे वे तीसरे स्थान पर रहे थे।
कौन हैं रमेश चंद्र गर्ग
बसपा प्रत्याशी रमेश चंद्र गर्ग एक फेमस बिजनेसमैन होने के साथ ही लंबे समय से मुरैना की राजनीति से जुड़े हुए हैं। वे हाल ही में कांग्रेस से अलग होकर बसपा में शामिल हुए थे। दरअसल, वे लोकसभा चुनाव के लिए टिकट मांग रहे थे, लेकिन पार्टी ने उनको टिकट नहीं दिया। इससे नाराज होकर ही बसपा मे चले गए थे। उनके प्रत्याशी बनने से त्रिकोणीय मुकाबला हो गया है। इस सीट पर दलित, तोमर, ब्राह्मण और वैश्य समाज के मतदाता निर्णायक भूमिका निभाते हैं। आमतौर पर तोमर और ब्राह्मण मतदाताओं का वोट एकतरफा पड़ता है, लेकिन इस बार स्थिति अलग बनती दिख रही है।