बीते छह माह भारी पड़ चुके हैं गरीबों के सरकारी आवासों पर

अभी और करना होगा कई माह का इंतजार
भोपाल/मंगल भारत.
प्रदेश ही नहीं देशभर में जिन गरीबों के आवासों को बढ़ी उपलब्धि बताया जा रहा है, उन्ही आवासों पर बीते छह माह बहुत भारी पड़ चुके हैं और माना जा रहा है कि अभी लगभग इतने माह और भारी रहने वाले हैं। दरअसल बीते साल विधानसभा और लोकसभा चुनाव को देखते हुए प्रदेश में गरीबों के आवासों पर तेजी से काम किया गया, लेकिन जैसे ही विधानसभा चुनाव की आचार संहिता लगी, तो जो काम बंद हुआ, वह अब तक शुरू ही नहीं हो पाया है। यही नहीं माना जा रहा है कि इस पर अभी अगले छह तक काम बंद ही रह सकता है। इसकी वजह है अगले माह चुनावी आचार संहिता समाप्त होगी और उसके बाद केन्द्र से लेकर राज्य सरकार का बजट आएगा। बजट जुलाई माह में संभावित है, सो अगस्त के अंत में या फिर सितंबर तक विभागों को राशि मिल सकेगी। इसके बाद ही इस योजना पर अमल शुरु हो पाएगा। अहम बात यह है कि बजट की राशि मिलने के चंद माह बाद सरकार का वित्त विभाग खर्च पर लगाम लगाना शुरु कर देगा। ऐसे में यह तो तय है कि सरकार की आवास योजना का काम पूरी तरह से अगले वित्त वर्ष में ही काम शुरु हो पाएगा। केंद्र और राज्य की सत्तारूढ़ भाजपा सरकार ने जनता को चुनावी बिसात पर लुभाने में सबसे मुफीद सबको घर की योजना ही लगी थी। इसी कारण पीएम आवास के हितग्राहियों को साधने पर सबसे अधिक मेहनत की गई, लेकिन सबको घर का सपना अभी पूरा नहीं हो पाया है। प्रदेश के गांवों में हालांकि बीते साल इस योजना पर तेजी से काम किया गया है, लेकिन शहरों में यह काम अपनी गति से ही चला है, उससे लक्ष्य ही हासिल नहीं किया जा सका है। अगर इस योजना के आंकड़ों पर नजर डालें तो गांवों में 37 लाख आवास निर्माण का लक्ष्य तो लगभग हासिल कर लिया या, लेकिन शहरों में करीब 59 लाख आवास के लक्ष्य की तुलना में 35 लाख ही आवास बन सके। यहां आवास के 56 हजार करोड़ में से 15 हजार करोड़ ही अब तक खर्च किए जा सके हैं।
इस वजह से रहा फोकस
दरअसल उप्र में भाजपा की दोबारा सरकार बनी तो भाजपा की समीक्षा में पीएम आवास योजना को सबसे कारगर योजना के रूप में देखा गया। पार्टी के आकलन में आया था कि उत्तरप्रदेश में जिन लोगों को पीएम आवास का फायदा मिला, उनमें से अधिकतर भाजपा की विचारधारा से जुड़े हैं। इसी कारण लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा ने मप्र में भी न सिर्फ हितग्राहियों से संपर्क किया गया, बल्कि हितग्राहियों को ब्रांड एम्बेसडर की तरह प्रचारित किया था।
चार माह में तेजी से हुआ काम
नवंबर 2023 में विधानसभा चुनाव की वजह से कारण अक्टूबर 2023 से ही पीएम आवास के मैदानी काम पर असर हुआ था। मैदान में पीएम आवास के लिए जून से सितंबर 2023 तक तो ताबड़तोड़ काम हुआ, लेकिन अक्टूबर के बाद मैदानी काम की बजाए सरकार का कैम्पेनिंग पर फोकस हो गया। विधानसभा चुनाव के कारण अक्टूबर से दिसंबर तीन महीने काम लगभग ठप रहा। फिर मार्च में लोकसभा की आचार संहिता के बाद काम पूरी तरह से बंद हो गया।
नौ साल पूर्व शुरू की थी योजना
इस योजना को 15 जून 2015 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लांच किया था। जिसकी बाद में 31 दिसंबर 2024 तक केंद्र ने अवधि बढ़ा दी थी। इस बीच केन्द्र सरकार द्वारा 15 अगस्त 2022 को मप्र में सीएम जन आवास योजना का ऐलान किया गया था।
कर दिए गए थे 2.50 लाख आवास सरेंडर
प्रदेश में गरीबों के लिए बनाए जाने वाले करीब 2.50 लाख आवास राज्य सरकार ने केंद्र को सरेंडर कर दिए थे। कांग्रेस की सरकार 2018 में बनी थी। 2019 में कमलनाथ सरकार ने ग्रामीण क्षेत्र में लक्ष्य के अनुरूप आवास बनाने से इंकार करके सरेंडर करने का पत्र भेज दिया। वजह ये बताई गई कि केंद्र ने राज्यांश को 20 से बढ़ाकर 40 फीसदी कर दिया गया है। सत्ता परिवर्तन के बाद भाजपा ने इसे बड़ा मुद्दा भी बनाया और इन सरेंडर आवासों की वापस करने की मांग भी की गई।
क्या कहते हैं आंकड़े
इस योजना से संबंधित आंकड़ों पर नजर डालें तो प्रदेश के ग्रामीण इलाकों में पंजीकृत हितग्राहियों की संख्या 4477715 है, जिसमें से 3799348 आवास मंजूर हो चुके हैं जबकि इनमें से 3651614 आवास पूरे हो गए हैं। इसी तरह से बीते साल 63581 आवास बनाने का लक्ष्य तय किया गया था, जबकि पंजीकृत हितग्राहियों की संख्या 577016 थी जिसमें से 846798 आवास मंजूर हुए और उनमें से 390367 आवासों का निर्माण पूरा हुआ। अगर बीते साल के शहरी इलाके के आंकड़े देखें तो 961147 आवास मंजूर हुए, जिनमें से 781273 आवास का काम पूरा हुआ।