अब पात्र नर्सिंग कॉलेज भी शक के दायरे में, फिर हो सकती है जांच

मप्र ऐसा राज्य बन चुका है, जहां पर घपले घोटाले होना


आम बात हो गई है। इसके लिए भले ही नियमों को ताक पर रखना पड़े या फिर उनमें बदलाव करना पड़े। अफसरों , दलालों व राजनेताओं के गठजोड़ की वजह से ऐसे मामलों के खुलासे के बाद दिखावे के लिए कार्रवाही कर इतिश्री कर ली जाती है। ऐसा ही मामला व्यापमं के बाद नर्सिंग घोटाले का है। मामले की जांच सीबीआई को देने से लग रहा था कि इसकी तो निष्पक्ष जांच होगी, लेकिन इसमें सीबीआई के जांचकर्ता अफसर ही मिलकर खेल करते पकड़े गए हैं। इसकी वजह से अब वे करीब पौने दौ सौ नर्सिंग कालेज भी निशाने पर आ गए हैं , जिन्हें क्लीन चिट दी गई थी। माना जा रहा है कि अब इन कालेजों की फिर से जांच कराई जा सकती है। इस संभावना के चलते कॉलेज संचालकों की नींद उड़ गई है। इस पूरे मामले में नर्सिंग और स्वास्थ्य विभाग के अफसरों की भूमिका बेहद संदिग्ध है। दरअसल लॉ स्टूटेंड एसोसिएशन की याचिका के बाद हाईकोर्ट ने प्रदेश के 670 कॉलेजों में से 364 कॉलेजों की जांच सीबीआई को सौंपी थी। सीबीआई ने इन कॉलेजों की अलग-अलग कई जांच रिपोर्ट हाईकोर्ट में पेश भी कीं। यह वे कॉलेज हैं, जो साल 2020 में खुले थे। इनकी संख्या करीब 670 है। को ही लेकर एक याचिका हाईकोर्ट में दायर की गई थी। इनमें से सीबीआई ग्वालियर हाईकोर्ट के निर्देश के तहत 364 नर्सिंग कॉलेजों की जांच कर रही थी। जांच पूरी होने से पहले ही सीबीआई अफसरों की रिश्वतखोरी सामने आ चुकी है। इसकी वजह से सीबीआई की पूरी जांच पर ही सवाल खड़े हो रहे हैं।
जांच के बाद सीबीआई ने फरवरी में 308 नर्सिंग कॉलेजों की जांच रिपोर्ट हाईकोर्ट में पेश की थी, जिसमें 169 नर्सिंग कॉलेजों को पात्र, 74 नर्सिंग कॉलेजों में कमियां और 65 नर्सिंग कॉलेजों को अयोग्य बताया था। इसके बाद सीबीआई ने पात्र कॉलेजों के विद्यार्थियों की परीक्षा कराए जाने की सहमति दे दी थी। फिर अपात्र कॉलेजों के विद्यार्थियों की परीक्षा कराए जाने की सहमति मिल गई थी। अब इन कॉलेजों में पढऩे वाले विद्यार्थियों की परीक्षा भी शुरू हो गई हैं। हद तो यह है कि नर्सिंग कॉलेजों को संबद्धता देने वाली जबलपुर मेडिकल यूनिवर्सिटी ने सरकार से साल 2023-24 को जीरो ईयार घोषित किए जाने की मांग की थी। सरकार ने जीरो ईयर घोषित करने से मना कर दिया है। विश्वविद्यालय का तर्क था कि अभी पिछले सालों में एडमिशन लेने वाले विद्यार्थियों के एग्जाम नहीं हुए हैं। इससे एडमिशन में मुश्किल होगी। इसके बाद भी इन कॉलेजों में एडमिशन की तैयारी दोबारा शुरू हो गई है। अब नर्सिंग कॉलेजों के इस मामले को लेकर 24 मई को फिर सुनवाई है।
गेंग में यह भी शामिल…
इंदौर के प्रत्यांश कॉलेज आफ नर्सिंग के चेयरमैन ओम गोस्वामी पर गलत तरह से मान्यता लेने का आरोप। इन्होंने इंदौर, धार, मंडलेश्वर, मंदसौर समेत आसपास के कई नर्सिंग कालेजों से सीबीआई निरीक्षकों के साथ मिलकर वसूली की और इसके लिए रैकेट खड़ा करने में अहम भूमिका निभाई है। इसी तरह से ग्वालियर के एक नर्सिंग कॉलेज के मालिक जुगल किशोर शर्मा का नाम अब तक की जांच में सीबीआई की जांच में सबसे बड़े दलाल के रूप में सामने आया है। ग्वालियर, अशोकनगर, रतलाम आदि जिलों में अशोक नागर, रोहित शर्मा, राधारमन शर्मा समेत आधा दर्जन लोगों को एजेंट बनाकर कॉलेजों से वसूली का काम करते थे।
कर डाला नियमों में बदललाव
इस पूरे मामले में सीबीआई अफसर, नर्सिंग काउंसिल और स्वास्थ्य विभाग के अफसरों का गठजोड़ बन गया था। अनफिट नर्सिंग कॉलेजों को फिट करने के लिए नियमों में भी बदलाव कर डाल गया था। पहले 23 हजार वर्गफिट निर्मित भवन होने पर नर्सिंग कॉलेजों को मान्यता दिए जाने का प्रावधान था। जिसे बाद कर बाद में 8 हजार वर्ग फिट करवा दिया गया था। इसकी वजह से अधिकांश नर्सिंग कॉलेज अनफिट से फिट की श्रेझाी में आ गए। इसके बाद जो 74 नर्सिंग कॉलेज फिट होने से रह गए थे, उन्हें भी क्लीन चिट देने की तैयारी की जा रही थी।
बना लिया था पूरा वसूली गैंग
इस मामले में जांच का जिम्मा सम्हाने वाले सीबीआई के अलावा अन्य सरकारी अमले ने कालेज संचालकों के साथ मिलकर ऐसा वसूली गेंग बना लिया था, जिसका काम ही लाखों रुपए की वसूली करना था। इसमें भी अहम बात यह है कि जो भी कॉलेज संचलक रिश्वत की रकम नहीं दे पता था,उसके कॉलेज को यह लोग ठेके पर ले लिया करते थे। इस गेंग के कई किरदार अब तक पकड़े जा चुके हैं और अब भी कई शक के दायरे में बने हुए हैं। इनमें से एक है राहुल शर्मा जो सीबीआई के निरीक्षक हैं। इन पर 69 कालेजों की जांच की जिम्मेदारी थी। इनके द्वारा नर्सिंग कालेज संचालकों के साथ मिलकर दलालों का गैंग तैयार किया और वसूली शुरू की। इसमें कई पटवारियो से लेकर नर्सिंग कालेज के स्टाफ को भी शामिल किया गया। दस लाख की रिश्वत लेते हुए गिरफ्तार किया गया। उनके घर से सोने के बिस्किट भी मिले। इसी तरह से मप्र पुलिस से प्रतिनियुक्ति पर गए सुशील मजोका के पास भी कई कॉलेजों की जांच का जिम्मा था। इन्होंने भी राहुल की तर्ज पर कॉलेज संचालकों से सांठगांठ की और उनकी मदद से बिचौलियों की गैंग बनाकर जमकर वसूली अभियान चलाया। इसी तरह से निरीक्षक रिषीकांत सराठे के पास भी दो दर्जन से अधिक नर्सिंग कॉलेजों की जांच का काम था। इनके द्वारा भी अपने दो साथी निरीक्षकों की ही तरह दलालों की मदद से कॉलेज संचालकों से सांठगांठ कर बड़ी बड़ी रकम की वसूली की गई।
डीएसपी भी नहीं उतरे भरोसे पर खरे
इस मामले में सीबीआई में डीएसपी आशीष प्रसाद भी भरोसे पर खरे नहीं उतरे। इनके नेतृत्व में निरीक्षकों को कालेजों की मान्यता की जांच करनी थी, पर राहुल ने इन्हें भी अपने भरोसे में ले लिया। इनके द्वारा राहुल ने जिन कॉलेजों को सूटेबल बताया उन पर मुहर लगा दी जाती थी। इन पर भी लेनदेने की राशि लेने का आरोप है। अब सीबीआई ने इन पर भी शिकंजा कस दिया गया है।