नकचढ़े रईसजादों का घमंड टूटना जरूरी है

अंजुम रहबर का एक शेर है
जिनके आंगन मे अमीरी का शजर लगता है।
उनका हर ऐब जमाने को हुनर लगता है।

यह दो लाइन परिभाषित कर देती हैं, उन नकचढ़े रईसजादों को जो शराब और ड्रग्स के नशे मे चूर हो कर, घमंड की पराकाष्ठा से गुजरते हुए, इंसान को कीड़े मकोड़े समझ कर कुचल डालते हैं, क्योंकि वे जानते हैं, कि उनके बाप ने उनके लिए पैसों का पेड़ लगा रखा है। इस तरह कि लगातार होने वाली दुर्घटनाओं से ही प्रेरित हो कर सुभाष कपूर ने जॉली एलएलबी फिल्म बनाई, जिसमे हीरो जो एक वकील है, इस प्रकार की एक दुर्घटना से व्यथित हो कर पूछता है मी लार्ड ये कौन लोग हैं और कहां से आते हैं? हालांकि, वह यह सवाल वह उन मजलूम और गरीब लोगों के लिए पूछता है जो मजबूरी मे फुटपाथ को ही अपना आशियाना बनाते है, पर मेरा यह सवाल तथाकथित रईसजादो से है कि कौन हैं ये लोग और कहां से आते हंै?
ये लोग हमारे देश से ही आते हैं, किन्तु संविधान को नहीं मानते कानून कि धज्जियां उड़ाते हुए मासूम लोंगो कि जान ले लेते है। पुणे मे हुई पोर्श कार की ह्रदयविदारक दुर्घटना मे यदि जे जे बोर्ड मात्र निबंध लिखने की सजा नहीं देता तो यह देशव्यापी हंगामा भी खड़ा नहीं होता। सलाम है,पुणेरीयों को जिन्होंने मामले की गंभीरता पर संज्ञान लिया, साथ ही धन्यवाद पुणे पोलिस को जिन्होंने ब्लड टेस्ट की रिपोर्ट पर संदेह करते हुए, एक गुप्त जांच और करवाई जिससे ब्लड सेम्पल मे अलकोहल का पता लग पाया।
कानून के जानकार जानते है की जे जे बोर्ड की अपनी सीमाएं है,वह नाबालिग को न तो बड़ी सजा दे सकता है, न उसके लिए अपराधी शब्द का इस्तेमाल कर सकता है, फिर भी मामले की गंभीरता के चलते जमानत निरस्त कर सकता था, जो बाद मे सेशन कोर्ट के रीव्यू पिटीशन के आदेश के बाद करना ही पड़ी, यानी सत्र न्यायालय संतुष्ट नहीं था, पुलिस को भी आईपीसी की धारा 185 लगा कर केस मजबूत करना पड़ा, खैर, जो भी हुआ बाद मे न्यायोचित हो गया। पुरे मामले मे अब बहुत ज्यादा होना कुछ नहीं है,संभवत: लडक़ा और उसके पिता बहुत ही कम सजा के बाद या बाइज्जत बरी कर दिए जाए, अलबत्ता वे दोनों सरकारी डॉक्टर जरूर नप सकते है, जिन्होंने सेम्पल से छेड़छाड़ की थी, हो सकता है, मेडिकल कॉन्सिल उनका पंजीयन भी निरस्त कर दे। मेरे मतानुसार सजा ऐसी होना चाहिए, जो नजीर बन सके। चूंकि परिवार बहुत ज्यादा अमीर है, दुर्घटना के दिन भी लडक़े ने लगभग एक लाख रुपए शराब और डिस्को मे उड़ाए थे, और, वह ऐसा रोज करता था, सजा के रूप मे (मुआवजे के तौर पर नहीं) लडक़े के परिवार को दोनों मृतकों के परिवार को दस दस करोड़ रु देना चाहिए, और, सरकार को भी चाहिए कि इन पैसों पर आयकर भी नहीं लगाए। साथ ही आने वाले समय मे सरकार को चाहिए कि वह पूरे 15 से 18 वर्ष के अकादमीक शिक्षण मे नैतिक शिक्षा अनिवार्य करे, और, देश के उम्दा शिक्षकों को जो मानवीय मूल्यों को समझते है , उन्हें प्रत्येक स्कूल और कॉलेज मे नियुक्त करे।
बच्चा प्रारम्भ से ही नैतिक शिक्षा को व्यवहार रूप मे अंत तक पड़ेगा और समझेगा तो बहुत ज्यादा संभवना है कि वह इंसान को इंसान समझे, उसे समझना पड़ेगा।