अफसरों को फ्री हैंड… फिर भी कार्रवाई से परहेज

मुख्यमंत्री के निर्देशों का अनुपालन करने में अफसर बरत रहे कोताही.

मप्र में सुशासन को लेकर मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव सख्त हैं। उन्होंने कानून-व्यवस्था के मामले में अफसरों को फ्री हैंड दे रखा है। लेकिन विडम्बना यह है की मुख्यमंत्री के दिशा-निर्देश के बावजूद भी अधिकारी अवैधानिक गतिविधियों के खिलाफ कार्रवाई करने से परहेज कर रहे हैं। इसका परिणाम यह हो रहा है कि मुख्यमंत्री के निर्देश के बाद भी प्रदेश में अवैध गतिविधियों पर अंकुश नहीं लग पा रहा है।
दरअसल, जिस मामले में मुख्यमंत्री निर्देश देते हैं,उसके दो-चार दिन तक अफसरों की सक्रियता देखने को मिलती है। मुख्यमंत्री के सख्त निर्देश मिलते ही लाउड स्पीकर, नर्सिंग घोटाला, खुले में मांस-मछली विक्रेताओं और रेत माफिया पर ताबड़तोड़ कार्रवाई की गई। दिखावे के लिए दो-चार दिन कार्रवाई चली और फिर वही ढाक के तीन पात की स्थिति। बातें आई, गई हो गई और मामला फिर ठंडे बस्ते में चला गया। इससे अफसरशाही की कार्यप्रणाली भी सवालों के घेरे में आ गई। बड़ा सवाल यह है कि अधिकारियों को नियम विरुद्ध कार्य करने वालों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए मुख्यमंत्री के निर्देशों का इंतजार क्यों करना पड़ रहा है? क्या उन्हें नजर नहीं आता कि अवैध रेत खनन-परिवहन हो रहा है, नियम विरुद्ध लाउड स्पीकर बज रहे हैं, खुले में मांस-मछली का विक्रय हो रहा है…. आदि।
जब-जब निर्देश, तब-तब कार्रवाई
हैरानी की बात यह है कि जब-जब मुख्यमंत्री निर्देश देते हैं, अफसर तब-तब ही कार्रवाई करते हैं। 25 मई को सीएम डॉ. मोहन यादव के निर्देश, धार्मिक स्थलों पर लाउडस्पीकर के अनियंत्रित उपयोग पर प्रतिबंध को सख्ती से लागू कराएं। सीएम के निर्देश पर दूसरे दिन प्रदेश भर में कार्रवाई हुई। इंदौर प्रशासन ने 258 धार्मिक स्थलों से 437 लाउडस्पीकर उतार दिए। एक-दो दिन में भी कार्रवाई ठंडी पड़ गई। भोपाल में पुलिस ने धार्मिक और अन्य प्रतिष्ठानों से 96 लाउडस्पीकर हटाए। करीब 5 महीने पहले राज्य सरकार ने ध्वनि प्रदूषण नियंत्रक कानून का पालन करवाने के लिए धार्मिक स्थली से लाउडस्पीकर हटाने का फैसला किया था, लेकिन इस दिशा में गंभीरता से कार्रवाई नहीं की गई। मुख्यमंत्री के निर्देश, खुले में मांस-मछली के विक्रय पर एक्शन लें। दूसरे ही दिन नगरीय विकास एवं आवास विभाग ने प्रदेश के सभी संभागों में मांस- मछली के अवैध विक्रय पर कार्रवाई कर 413 निकायों में 442 विक्रय केंद्रों पर 77 हजार 800 रुपए का जुर्माना लगाया। मांस-मछली के अवैध विक्रय पर भोपाल संभाग में 51 विक्रय केन्द्रों पर 4300 रुपए का अर्थदंड लगाया गया। अन्य संभागों में भी दो-तीन दिन तक ऐसी ही कार्रवाई की गई। 28 मई को सीएम के निर्देश, प्रदेश में रेत उत्खनन में अवैध रूप से लगी मशीनी को तत्काल जब्त करें। दूसरे दिन कई जिलों में रेत के अवैध उत्खनन, परिवहन, भंडारण और ओवरलोडिंग पर कार्रवाई की गई। देवास, सीहोर, नर्मदापुरम, नरसिंहपुर, खरगोन, हरदा एवं शहडोल सहित प्रदेश में लगभग 200 प्रकरण दर्ज कर डंपर, पोकलेन मशीन, पनडुब्बी इत्यादि जब्त की गई और एक करोड़ 25 लाख रुपए का जुर्माना लगाया गया। दो-तीन दिन बाद कार्रवाई रुक गई। 25 मई को मुख्यमंत्री के निर्देश, नर्सिंग घोटाले को लेकर सख्त कार्रवाई करें। इससे जुड़े अधिकारियों, कर्मचारियों पर भी कार्रवाई करें। इसके बाद 66 कॉलेजों की मान्यता निरस्त की गई। 111 निरीक्षणकर्ताओं और 14 राजस्व अधिकारियों को शोकॉज नोटिस जारी किए गए। नर्सिंग काउंसिल के तत्कालीन अध्यक्ष और तत्कालीन रजिस्ट्रार के विरुद्ध कार्रवाई शुरू की गई। हालांकि अब तक किसी अधिकारी, कर्मचारी के विरुद्ध सीधी कार्रवाई नहीं की गई।
स्वत: संज्ञान में नहीं लेते अफसर
प्रदेश में 56 सरकारी विभाग हैं। यह संभव नहीं है कि मुख्यमंत्री अधिकारियों को एक-एक विभाग में नियम विरुद्ध चल रही गतिविधियों को लेकर कार्रवाई करने के निर्देश जारी कर सकें। यह काम अफसरशाही का है। स्वत: संज्ञान लेना अफसरों का काम है। लेकिन वे ऐसा नहीं करते। सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी शेखर वर्मा का कहना है कि किसी भी मुख्यमंत्री के लिए यह संभव नहीं है कि 50 से ज्यादा विभागों से जुड़े हजारों मामलों को लेकर वे अधिकारियों को कार्रवाई करने के संबंध में निर्देशित कर सकें। यदि मुख्यमंत्री यही सब काम करते रहे, तो वे विकास कार्यों पर फोकस कब करेंगे। यह संबंधित विभाग के अधिकारियों का काम है कि उनके विभाग में कुछ गलत हो रहा है, तो वे स्वयं सख्त एक्शन लें। अफसरशाही के रुख का देखकर कहा जा रहा है कि अगर अफसरों को यही मंजूर है तो सीएम इन बिंदुओं पर भी कार्रवाई के निर्देश दें। पूरे प्रदेश में नियम विरुद्ध बसों का संचालन हो रहा है। प्रदेश में गांव-गांव में अवैध शराब, गांजा बिक रहा है। राजस्व अमले की कार्यप्रणाली से सीमांकन, बटान, नामांतरण के लिए किसान परेशान है। गांवों में सरकारी अस्पतालों में इलाज की व्यवस्था नहीं है, अस्पतालों में डॉक्टर नहीं मिलते। सरकारी स्कूलों में पढ़ाई का स्तर ठीक नहीं है, गांव के स्कूलों में शिक्षक नहीं पहुंचते।