2600 अरब का हिसाब-किताब नहीं दे रहे अफसर

कैग की रिपोर्ट में खुलासा.

मप्र में अफसरों की लापरवाही सरकार पर भारी पड़ रही है। हर साल कैग अपनी रिपोर्ट में अफसरों की कारस्तानी को उजागर करता है, लेकिन अफसरों पर कोई कार्रवाई नहीं होती है। राज्य शासन के अधिकारियों की एक और गंभीर लापरवाही कैग की रिपोर्ट में उजागर की गई है। बताया गया है कि विभागों की ओर से सहायता अनुदान के तौर पर मिली 26 सौ अरब की राशि के उपयोगिता प्रमाण पत्र नहीं दिए गए हैं। यह राशि बीते वर्षों में दी गई थी। कैग ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि अफसरों ने यह स्पष्ट नहीं किया है कि विगत वर्षों में यह राशि किस तरह खर्च की गई। यह चिंता का विषय है, क्योंकि इसमें विशिष्ट कार्यक्रमों, योजनाओं के क्रियान्वयन के लिए उन्हें दिया गया सार्वजनिक धन शामिल है। बड़ी संख्या में सर्टिफिकेट लंबित होना धोखाधड़ी के जोखिम और निधियों के दुरुपयोग से भरा है। कैग की ऑडिट रिपोट्र्स में हर साल इस मुद्दे पर राज्य शासन का ध्यान दिलाने के बाद भी सुधार नहीं हुआ है। अनुदान स्वीकृत के ओर से दिए सहायता अनुदान करने वाले प्रत्येक आदेश में उसका उद्देश्य और इसे खर्च करने की समय स्पष्ट रूप से होती है। मप्र वित्तीय संहिता के नियम 182 व 184 के अनुसार सहायता अनुदान के संबंध में उपयोगिता प्रमाण पत्र महालेखाकार को हर साल 30 सितंबर या उससे पहले विभागीय अधिकारियों को देना चाहिए।
एक दशक में बगैर अनुमोदन के खर्च कर डाले 15 अरब रुपए

राज्य सरकार ने वर्ष 2011-12 से 2020-21 की अवधि में बिना विधायी अनुमोदन के ही 1678 करोड़ रुपए की राशि अधिक खर्च कर दी। इसके लिए अभी भी विधानसभा से अनुमति ली जाना है। विधानसभा के पटल पर रखी गई कैग की रिपोर्ट यह खुलासा हुआ है। कैग ने शासन के बजट प्रबंधन पर भी सवाल उठाए हैं। रिपोर्ट में कहा है कि कुल अनुदानों-विनियोगों और खर्च के बीच अंतर के कारण जो बचत हुई, वो शासन के विभिन्न स्तरों पर बजट अनुमानों की अनुचित जांच और खराब बजट प्रबंधन की ओर इशारा करता है। बीते वित्तीय वर्ष में 321658.21 करोड़ के कुल अनुदानों व विनियोगों के मुकाबले 50543.75 करोड़ रुपए की बचतें हुई थी। इसी को लेकर कैग ने टिप्पणी की है।
राजस्व-पूंजीगत खर्च में भी गड़बड़ी
कैग ने खर्च में गड़बड़ी का भी खुलासा किया है। रिपोर्ट में बताया है कि 2381.53 करोड़ को राजस्व व्यय के तहत दर्ज करने के बजाय पूंजीगत व्यय दिखाया गया। इस कारण राजस्व व्यय 2381.53 करोड़ रुपए कम और पूंजीगत इतना ही ज्यादा बताया गया। इसी तरह 89.25 करोड़ रुपए की राशि को गलत तरीके से पूंजीगत के बजाय राजस्व व्यय के तौर पर बजट में किया गया था।
देरी के कारण परियोजनाओं की लागत बढ़ी
कैग की रिपोर्ट के मुताबिक 2018-19 और 2022-23 के बीच राज्य में औद्योगिक और सेवा क्षेत्र में कमी देखी गई। उद्योग क्षेत्र की हिस्सेदारी 2018-19 में 24.58 प्रतिशत से घटकर 2022-23 में 20.39 प्रतिशत और सेवा क्षेत्र की हिस्सेदारी 2018-19 में 39.37 प्रतिशत से घटकर 38.11 प्रतिशत हो गई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि राज्य सरकार की कुल देनदारियां लगातार बढ़ रही हैं। यह 2018-19 में 1,94,309 करोड़ रुपए से 87.60 प्रतिशत बढकऱ 2022-23 में 3,64,516 करोड रुपए हो गई। स्टाम्प एवं पंजीयन शुल्क में कर चोरी के मामले में 31 मार्च, 2023 तक लंबित मामलों की संख्या 13,813 थी। रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि लोक निर्माण विभाग, नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण और नगरीय प्रशासन और विकास में 22 परियोजनाओं के पूरा होने में देरी के परिणामस्वरूप 31 मार्च, 2023 तक लागत 687.55 करोड़ रुपए बढ़ गई। वहीं राज्य के सार्वजनिक उपक्रमों के प्रदर्शन के बारे में रिपोर्ट में कहा गया है कि 31 मार्च, 2023 तक 73 राज्य सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम थे, जिनमें तीन वैधानिक निगम और नौ सरकारी नियंत्रित अन्य कंपनियां शामिल थीं। 73 में से 41 निष्क्रिय राज्य सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम थे। वे तीन वर्ष से 33 वर्ष तक निष्क्रिय रहे। केवल 32 सार्वजनिक उपक्रम जिन्होंने लेखा परीक्षा को जानकारी/खाते प्रस्तुत किए थे, वित्तीय प्रदर्शन के विश्लेषण के लिए विचार किया गया था।
निगरानी सिस्टम स्थापित करने की सलाह
रिपोर्ट में बताया गया है कि 31 मार्च, 2023 तक 28 विभागों के विरूद्ध राज्य के निकायों और प्राधिकरणों ने 20685.36 करोड़ रुपए के कुल 19965 प्रमाण पत्र प्रस्तुत नहीं किए थे। इसमें से 98 फीसदी यानी 19487 वर्ष 2014-15 से पहले की अवधि से संबंधित है। इस पर कैग ने कहा है कि पिछले नौ वर्ष या अधिक समय के लिए दी गई राशि से संबंधित व्यय के लिए जवाबदेही के अभाव में इनके दुरुपयोग की आशंका को खारिज नहीं किया जा सकता है। उपयोगिता प्रमाण पत्रों के अभाव में यह सुनिश्चित नहीं किया जा सका कि प्राप्तकर्ताओं ने अनुदान का उपयोग उन उद्देश्य के लिए किया था, जिसके लिए उन्हें दिया गया था। कैग ने सिफारिश की है कि उपयोगिता प्रमाण पत्र पेश न करने, देरी के कारणों की पहचान करने के लिए राज्य शासन को कठोर निगरानी का सिस्टम स्थापित करना चाहिए।