मप्र में अब सडक़ विकास निगम वसूलेगा टोल टैक्स

प्राइवेट कंपनियों को किया जाएगा इस काम से बाहर.

मप्र के हाईवे पर अंधाधुंध टैक्स वसूलने का खेल जारी है। टोल कंपनियां सडक़ निर्माण पर आई लागत से कहीं ज्यादा टोल वसूल रही हैं। इसको लेकर सरकार के पास लगातार शिकायतें पहुंच रही हैं। ऐसे में अब सरकार ने निर्णय लिया है कि प्रदेश में बनने वाली नई सडक़ों पर प्राइवेट कंपनियों को टोल टैक्स वसूली का काम नहीं दिया जाएगा। अब खुद सडक़ विकास निगम नई सडक़ों पर टोल टैक्स वसूलेगा। दरअसल, निगम का मानना है कि सडक़ बनने के बाद आवागमन बढ़ता है और इससे ठेका एजेंसी प्रतिवर्ष लाभ उठाती हैं, लेकिन अगर सडक़ विकास निगम टोल टैक्स वसूलेगा तो आवागमन बढऩे के साथ ही निगम की आय भी बढ़ेगी। दरअसल, मप्र में बीते 15-16 सालों में सडक़ों की स्थिति में काफी सुधार हुआ है। आप भी जब बेहतरीन सडक़ों से गुजरते हैं तो आपको हर टोल प्लाजा पर टोल देना पड़ता है। आपके इस टोल के पैसे से टोल कंपनियां करोड़ों रुपये कमा रही हैं। टोल कंपनियों और सरकार की कमाई का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि टोल से इन्होंने सडक़ की लागत काफी पहले निकाल ली है, लेकिन टोल का खेल अभी भी जारी है। स्थानीय लोग कहते हैं कि सडक़ें तो अच्छी बन गई हैं लेकिन यहां टोल जो लगता है वो महंगा है। टोल बंद होना चाहिए। जब गाड़ी खरीदते हैं तो रोड टैक्स पहले ही जमा करा लिया जाता है और फिर टोल टैक्स भी देना होता है, जो कि महंगा पड़ता है। इंदौर के रास्ते पर हर 50 किलोमीटर पर एक टोल नाका आता है। टोल नाकों पर पैसा बहुत ज्यादा लगता है। जैसे नयागांव टोल पर 35 रुपए लगते हैं, पिपलिया मंडी पर 55 रुपए लगते हैं, माननखेड़ा में लगते हैं, बिलपांक में लगते हैं। ऐसे लेबड़ तक टोल प्लाजा देना पड़ता है। कहीं 45 रुपये तो कहीं 50 रुपये तो कहीं इससे भी ज्यादा टोल देना पड़ता है। आलम ये है कि आने-जाने दोनों समय टोल देना पड़ता है।
नई सडक़ों के टेंडर में ही प्रविधान
जानकारी के अनुसार प्रदेश में नई सडक़ों पर टोल टैक्स वसूली की व्यवस्था बदलने की तैयारियों का खाका तैयार हो रहा है। इसके तहत मप्र की सडक़ों पर अब सडक़ विकास निगम ही टोल वसूलेगा। स्टेट हाइवे पर बनने वाली नई सडक़ों के लिए जारी टेंडर की शर्तों में ही इसके प्रविधान होंगे। इसके एवज में सडक़ निर्माण करने वाली ठेका एजेंसी को सडक़ बनाने में व्यय होने वाली राशि का 40 प्रतिशत निर्माण के समय और शेष 60 प्रतिशत राशि 15 साल का अनुबंध कर प्रतिशत वर्ष भुगतान की जाएगी। दरअसल, निगम का मानना है कि सडक़ बनने के बाद आवागमन बढ़ता है और इससे ठेका एजेंसी प्रतिवर्ष लाभ उठाती हैं, लेकिन अगर सडक़ विकास निगम टोल टैक्स वसूलेगा तो आवागमन बढऩे के साथ ही निगम की आय भी बढ़ेगी। नई सडक़ों का ट्रेफिक सर्वे कराकर तय किया जाएगा टोल कितना और कहा वसूला जा सकता है। इसके लिए स्थानीय प्रशासन और स्थानीय लोगों से सुझाव भी लिए जाएंगे।
14 नई सडक़ों पर वसूलेंगे टोल
सडक़ विकास निगम उज्जैन- जावरा, इंदौर-उज्जैन के अलावा 14 नई सडक़ें बना रहा है। इन सडक़ों पर निगम ही टोल टैक्स वसूलेगा। इसके लिए यातायात गणना के आधार पर टोल टैक्स का निर्धारण किया जाएगा। 14 नई सडक़ों में पांच सडक़ें ऐसी हैं, जो उत्तर प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ राज्य की सीमा से लगी हैं। ऐसे में यहां यातायात बढऩे की संभावना अधिक है। यहां निगम द्वारा टोल वसूलने से राज्य का राजस्व संग्रहण बढ़ेगा और निगम आर्थिक रूप से भी सशक्त होगा। बजट के अतिरिक्त वित्तीय संसाधनों को जुटाने के लिए एमपीआरडीसी (मप्र सडक़ विकास निगम) द्वारा निर्मित मार्गों को यूजर की योजना के तहत चयन के लिए यातायात की गणना कर संभावित वार्षिक संग्रहण राशि (एपीसी) का निर्धारण किया जाएगा। निर्मित मागों का टीओटी (टोल आपरेट एंड ट्रांसफर), ओएमटी (आपरेट मेंटेन एंड ट्रांसफर) माडल में परीक्षण कर विकसित किए जाएंगे। यह प्रस्ताव कैबिनेट में रखा जाएगा और वहां से स्वीकृति के बाद टोल टैक्स का निर्धारण कर वसूली की व्यवस्था की जाएगी। यातायात
की गणना के आधार पर संभावित राजस्व का आकलन कर वार्षिक अनुमानित संग्रहण (एपीसी) निर्धारण के बाद प्रारंभिक तौर पर केवल व्यवसायिक वाहनों से टोल वसूला जाएगा, इसके बाद आवश्यक होने पर निजी वाहनों से भी टोल टैक्स वसूलने का निर्णय लिया जा सकेगा।
लागत से वसूला जा रहा टोल टैक्स
मप्र सरकार ने भोपाल से देवास के बीच स्टेट हाईवे का निर्माण कराया था। यह एक 4-लेन हाईवे है, लेकिन यह हाईवे जितने में बना है, उससे कहीं ज्यादा टोल लोगों से वसूला जा चुका है। इतना ही नहीं लागत से ज्यादा टोल वसूले जाने के बाद भी टोल वसूलने का खेल जारी है। ये बातें हम हवा में नहीं बल्कि सरकारी कागज के आधार पर कह रहे हैं। प्रदेश सरकार खुद ये मानती है कि भोपाल से देवास तक 4-लेन हाईवे के निर्माण पर 426 करोड़ रुपये की लागत आई थी। मसलन, एक सरकारी दस्तावेज से पता चलता है कि अगस्त 2010 से अब तक 1610 करोड़ रुपए टोल के वसूले जा चुके हैं। मसलन, राज्य सरकार ने आपसे 1,184 करोड़ रुपए ज्यादा टोल वसूल लिए हैं। यही नहीं, सरकार आपसे 9 साल और इस हाईवे पर टोल वसूलेगी। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने डीएनडी को लेकर एक आदेश जारी किया था, जिसमें टोल को बंद करने का आदेश दिया गया था। दिल्ली नोएडा डीएनडी टोल रोड 407 करोड़ रुपए में बनी थी, जिस पर 2200 करोड़ का टोल टैक्स जनता से लिया जा चुका था, जिसमें आगे कई वर्षों तक टोल वसूली होनी थी। हालांकि, इलाहाबाद हाईकोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट ने इसे गलत बताते हुए टोल फ्री कराया। अब जरूरत है कि देश में ऐसा ही हर उस सडक़ को टोल फ्री किया जाए, जहां लगात से कई गुना ज्यादा टैक्स सरकारें लेती आ रही हैं। अब जरा राजस्थान की सीमा से शुरू होकर एमपी की आर्थिक राजधानी इंदौर तक जाने वाली नयागांव-जावरा-लेबड़ 4-लेन हाइवे का सच जान लीजिए। 250 किलोमीटर में फैले इस स्टेट हाइवे को बनाने में जितना पैसा खर्च हुआ। उससे चार पांच गुना ज्यादा टोल लेने के बाद भी जनता की जेब से टोल निकालना जारी है। प्रदेश में जावरा से नयागांव तक सडक़ बनाने की लागत 425.71 करोड़ रुपए आई। इस सडक़ पर टोल वसूली 17 फरवरी 2012 से शुरु हुई। अब तक यहां से 2168 करोड़ रुपए टोल वसूला जा चुका है, यानी 1743 करोड़ रुपए ज्यादा। इस सडक़़ पर सरकार का 26 अक्टूबर 2033 तक टोल वसूलने का प्लान है।