आईएएस अफसर व लेखक नियाज अहमद का खान सरनेम से तौबा

नया नाम होगा माइकन ए, पुराने उपन्यासों में भी बदलेंगे नाम.

ब्राह्मण द ग्रेट, वॉर ऑफ कलियुग जैसे उपन्यास लिख कर बेहद चर्चित हो चुके प्रदेश के आईएएस अफसर नियाज खान अब खान सरनेम से मुक्ति पाना चाहते हैं। इसलिए उन्होंने तय किया है कि भविष्य में जो भी उपन्यास और अन्य तरह के लेख लिखेंगे, उसमें वे अपना नया नाम माइकन ए का उपयोग करेंगे। लोक निर्माण विभाग में उपसचिव के पद पर पदस्थ खान का कहना है कि दुनिया के अधिकांश देशों में उनका नावेल इसलिए अपेक्षा के अनुरूप नहीं पढ़ा जाता हैं, क्योंकि लेखक के रूप में उनके नाम के आगे खान रहता है। वे प्रकाशकों से अपने पुराने उपन्यास के लेखक के नाम में भी नियाज खान के बजाय माइकन ए लिखवाने जा रहे हैं। उनका कहना है कि वे यूएसए, यूएसई में जो किताबें वे भेजते रहे हैं, वे रिजेक्ट होती रही हैं। वर्तमान नाम के कारण इन किताबों के प्रचार-प्रसार में और पाठक वर्ग तक पहुंचने में दिक्कत होती है। इसको लेकर आइडियोलॉजिकल प्रॉब्लम सामने आती है। किताबों के लेखक के रूप में वर्तमान नाम के कारण से भी कहीं न कहीं दिक्कत होती रही है। इसीलिए मैंने अपनी आइडेंटिटी चेंज करने का फैसला किया है। मैं अब साहित्य जगत में पिन नेम यूज करूंगा। यह पिन नेम माइकन ए होगा जो मेरे नाना ने बचपन में मुझे दिया था। इस नाम से मुझे लगाव भी है।
इस वजह से लिया निर्णय
उनका कहना है कि दुनिया के कई देशों में खान सरनेम के कारण उनकी पुस्तकें अच्छा सब्जेक्ट होने के बाद उतना अधिक लोकप्रियता नहीं पा रही हैं, जितना वे एशियाई देशों में पढ़ी जाती हैं क्योंकि, कई ऐसे देश हैं जो इस सरनेम को बायकाट करते हैं। इसी वजह से उन्होंने अपने नाना द्वारा दिया गया पिन नेम आगे से लिखी जाने वाली अपनी नावेल्स और अन्य किताबों में उपयोग करने का फैसला किया है।
अंत तक सलेम का भाग्य रहस्यमय
पुस्तक में बताया गया है कि जिस प्रयोगशाला को सलेम ने शुरू किया था, इस प्रयोगशाला में वायरस ढ्ढङ्क-786 द्वारा एक साथ व्यापक पैमाने पर लोगों को मारने की रिसर्च सफल हो जाती है। प्रयोगशाला के प्रमुख सऊदी नागरिक प्रोफेसर अदनान रब्बानी के मार्गदर्शन में सभी वैज्ञानिकों को इस्लाम में कन्वर्ट करा दिया जाता है। नियाज बताते हैं कि सलेम का भाग्य किताब के आखिरी तक रहस्यमय बना रहता है। उपन्यास का प्लॉट ग्लोबल है। मुख्य पात्र फिलिस्तीन, इजराइल, सऊदी अरब, आयरलैंड, सूडान और अफगानिस्तान से हैं।
विवादों से है पुराना नाता
नियाज खान अपनी किताबों और ट्वीट को लेकर विवादों में रहे हैं। उन्होंने हिजाब विवाद में भी ट्वीट करते हुए लिखा था कि हिजाब हमारे जीवन की सुरक्षा करता है, साथ ही ये हमें प्रदूषण से भी सुरक्षित रखता है। इसलिए हिजाब को प्रोत्साहित करें। हिजाब या नकाब पर इतनी कंट्रोवर्सी क्यों? साल 2019 में नियाज खान ने अपने ट्वीट में लिखा था कि उनके नाम के साथ खान लगे होने के कारण उन्हें अपनी सर्विस के दौरान बहुत कुछ भुगतना पड़ा है। खान सरनेम भूत की तरह उनका पीछा कर रहा है।
द कश्मीर फाइल्स पर मिला था नोटिस
द कश्मीर फाइल्स को लेकर ट्वीट में नियाज खान ने लिखा कि अलग-अलग मौकों पर मुसलमानों के नरसंहार को दिखाने के लिए एक किताब लिखने की सोच रहा हूं, ताकि निर्माता कश्मीर फाइल्स जैसी फिल्म बना सकें। अल्पसंख्यकों के दर्द और पीड़ा को देशवासियों के सामने लाया जा सके। इस ट्वीट के बाद प्रदेश सरकार ने उन्हें नोटिस दिया था। एक अन्य ट्वीट में उन्होंने लिखा की कश्मीर फाइल्स ब्राह्मणों का दर्द दिखाती है। उन्हें पूरा सम्मान के साथ कश्मीर में सुरक्षित रहने की अनुमति दी जानी चाहिए। निर्माता को कई राज्यों में बड़ी संख्या में मुसलमानों की हत्याओं को दिखाने के लिए एक फिल्म बनानी चाहिए। मुसलमान कीड़े नहीं, बल्कि इंसान हैं और देश के नागरिक हैं। दमोह स्कूल कांड के बीच नियाज ने ट्वीट कर मुसलमानों को सलाह दी। लिखा- मुस्लिम भाई भी गोरक्षक बनें। धर्म परिवर्तन का विरोध करें। किसी का धर्म न बदलवाएं। जबरन धर्म बदलवाना इस्लाम में प्रतिबंधित है। अगर शाकाहार अपना सकें तो यह एक बेहतरीन प्रयास होगा। वे धर्मांतरण के लिए दिए गए बयान को लेकर भी चर्चा में रह चुके हैं। खान कह चुके हैं कि धर्मांतरण के लिए 100 प्रतिशत बॉलीवुड जिम्मेदार है।
ऐसा वायरस जो एक साथ लाखों लोगों को मारे
सलेम वायरस आईबी -786 को पाने के लिए अरब सागर में अल अब्बास निर्जन द्वीप में एक गोपनीय लेबोरेटरी शुरू की। यहां रिसर्च के लिए उसने जापान और यूरोपीय देशों के कई वैज्ञानिकों का अपहरण भी किया। सलेम सकोट्रा द्वीप में मुस्लिम युवाओं का ब्रेनवॉश कर उन्हें आतंकवादी बनाने की जिम्मेदारी संभालने वाले ब्राउन डिजेरट के आध्यात्मिक प्रमुख जमील जलाल से जुड़ जाता है। जलाल की वायरस के बारे में अलग राय है। जलाल वायरस आईबी-786 से न सिर्फ यूहूदियों बल्कि सभी गैर मुसलमानों को मार डालना चाहता है। इसके लिए जलाल सलेम की गुप्त प्रयोगशाला पर कब्जा कर लेता है, जहां रिसर्च चल रही है। वह अपने लोगों को सलेम को मारने के लिए आदेश देता है। लेकिन सलेम को लेकर कोई साफ जानकारी नहीं मिल पाती है कि वह मर चुका है या जीवित है।
फिलिस्तीन, इजराइल संघर्ष पर उपन्यास
आईएएस खान ने पिछले साल फिलिस्तीन और इजराइल के बीच संघर्ष को लेकर एक उपन्यास लिखा है। 12 साल की रिसर्च के बाद खान ने इस उपन्यास में दोनों के बीच संघर्ष और युद्ध के कारणों का खुलासा किया है। यह एक एक्शन से भरपूर सस्पेंस थ्रिलर उपन्यास है, जिसमें 340 पेज हैं। खान की यह पुस्तक संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, मैक्सिको, आस्ट्रेलिया, यूरोप, भारत, जापान, सिंगापुर, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात में ई बुक और हार्ड कॉपी दोनों ही रूप में उपलब्ध है। खान इसके पहले ब्राह्मण द ग्रेट पुस्तक लिखकर भी चर्चा में रहे हैं। यह उपन्यास हमास और इजराइल के बीच पिछले कई दशकों से चले आ रहे लंबे संघर्ष से प्रेरित है। इसमें नायक सलेम अल्बे, एक फिलस्तीनी है। वह ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में परमाणु भौतिक विज्ञानी बनना चाहता था। इसी दौरान उसे पता चला कि उसके माता-पिता को गाजा में इजरायली सेना ने मार डाला है। इसके बाद उसने यहूदियों से बदला लेने के लिए ऑक्सफोर्ड की पढ़ाई छोड़ दी। अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए नायक सलेम अल्बे ने एक भूमिगत संगठन शुरू किया। उसका मिशन हिटलर की तरह इजराइल और अन्य देशों से यहूदी समुदाय को खत्म करना और साथ ही इजराइल को उसके अंध समर्थन के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका को भी दंडित करना था। खान ने बताया कि मुख्य पात्र ने कैसे अपने मिशन का कारवां तैयार किया। पुस्तक में उन्होंने लिखा- सलेम का दोस्त डेनियल जैक है, जो यहूदी हथियार डीलर जोशुआ कोहेन का शिकार था। वह भी सलेम के मिशन में शामिल हो जाता है। सलेम को लगता है कि गाजा में योजना बनाकर इजराइल में यहूदियों के मारना संभव नहीं है। इसलिए उसने यूरोप में एक वैश्विक नेटवर्क के साथ आतंकवादी संगठन शुरू किया। सलेम एक बार में ही सभी यहूदियों को खत्म करना चाहता था। इस कारण उसने पहले परमाणु हथियार, फिर रासायनिक हथियार पाने की कोशिश की, लेकिन नाकाम रहा। ऐसे में उसने इस्लामिक वायरस ढ्ढङ्क-786 नामक जैव हथियार को हासिल करने का फैसला किया।

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