मामला लखनऊ के चिनहट थाने का है, जहां मोहित पांडेय नाम के एक व्यक्ति को एक मामूली विवाद के सिलसिले में हिरासत में लेकर बेरहमी से पीटे जाने का आरोप है. परिजनों के विरोध प्रदर्शन के बाद संबंधित थाने के प्रभारी को निलंबित कर दिया गया है.
नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश पुलिस एक बार फिर राजधानी लखनऊ में हुई हिरासत में मौत के मामले को लेकर सुर्खियोंं में है. इस बार ब्राह्मण समुदाय से आने वाले व्यापारी मोहित पांडेय की 26 अक्टूबर को एक मामूली विवाद के सिलसिले में गिरफ्तारी के बाद पुलिस हिरासत में मौत हो गई.
मालूम हो कि इससे करीब दो हफ्ते पहले ही लखनऊ से एक दलित युवा के भी हिरासत में मौत का मामला सामने आया था.
ताज़ा मामले में मोहित पांडेय के परिवार ने आरोप लगाया है कि उनकी गिरफ्तारी के बाद पुलिस द्वारा उन्हें पीटे जाने से उनकी मौत हो गई. परिजनों का ये भी आरोप है कि उन्हें एक राजनीतिक रूप से जुड़े व्यक्ति, जिनकी पहचान अभी तक मालूम नहीं है, के इशारे पर पकड़ा गया और उन पर हमला किया गया.
गौरतलब है कि हिरासत में मौत के मामले ने एक बार फिर योगी आदित्यनाथ सरकार को कटघरे में खड़ा कर दिया है, क्योंकि पुलिस हिरासत में मौत के मामलों में यूपी लगातार सबसे खराब राज्यों में शुमार है.
विरोध प्रदर्शन के बाद मृतक के परिजनों से मिले सीएम
पांडेय के रिश्तेदारों ने शव को एक मंत्री के आवास परिसर के बाहर रखकर पुलिस के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया. इसके बाद चौतरफा दबाव के चलते मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 28 अक्टूबर को अपने आधिकारिक आवास पर मृतक के परिवार से मुलाकात की और परिजनों को तत्काल 10 लाख रुपये की वित्तीय सहायता प्रदान करने का निर्देश दिया. बताया गया है कि परिवार को उक्त राशि के साथ ही घर, बच्चों को मुफ्त शिक्षा और अन्य सरकारी योजनाओं का लाभ दिया जाएगा.
मोहित पांडेय को जिस थाने में रखा गया था, उसके थाना प्रभारी के खिलाफ भी हत्या और आपराधिक धमकी के आरोप में एक आपराधिक मामला दर्ज किया गया है.
मालूम हो राज्य में नौ सीटों पर जल्द ही उपचुनाव होने वाले हैं, ऐसे में विपक्षी दलों ने आदित्यनाथ के शासन में पुलिस की कथित मनमानी को उजागर करने के लिए इस घटना पर सरकार को घेरा है. विपक्ष ने इस घटना को ब्राह्मण समुदाय के खिलाफ अत्याचार के एक और मामले के रूप में पेश करने की भी कोशिश की है.
अपनी पुलिस शिकायत में मृतक पांडेय की मां तपेश्वरी देवी ने कहा है कि 25 अक्टूबर की रात, उनके बेटों की आदेश नामक व्यक्ति के साथ विवाद और मामूली हाथापाई हो गई थी, जिसके बाद दोनों पक्षों ने आपातकालीन सहायता बुलाने के लिए 112 डायल किया. पुलिस की एक गाड़ी आई और मोहित को रात करीब 10 बजे पूर्वी लखनऊ के चिनहट थाने में ले गई.
देवी ने बताया कि जब उनका बड़ा बेटा शोभाराम जब अपने छोटे भाई मोहित के बारे में पूछताछ करने थाने गया, तो पुलिस ने उस पर नशे में होने का आरोप लगाते हुए उसे भी थाने में बंद कर दिया.
उन्होंने आरोप लगाया कि पुलिस ने दूसरे पक्ष को तो छोड़ दिया, लेकिन उनके बेटों को पहले अलग और फिर एक साथ हिरासत में रखा और मोहित के साथ बेरहमी से मारपीट की. मोहित को इतना पीटा कि जेल में ही उसकी मौत हो गई.
पत्रकारों से बात करते हुए मोहित के चाचा रामदेश पांडेय ने भी आरोप लगाया कि पुलिस ने मोहित को अस्पताल में भर्ती कराया, जबकि उसकी हिरासत में मौत हो चुकी थी.
उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि आदेश के चाचा, जो एक राजनीतिक व्यक्ति हौ, उन्होंने पुलिस को मोहित को पीटने को कहा था, जिससे उसकी मौत हो गई.
तपेश्वरी देवी का कहना है कि जब परिवार अगले दिन थाने गया, तो उन्हें मोहित से मिलने नहीं दिया गया. उन्होंने आरोप लगाया कि पोस्टमार्टम के लिए भेजे जाने से पहले परिवार को अस्पताल में मोहित के शव को करीब से देखने की अनुमति तक नहीं दी गई.
चिनहट थाने में दर्ज एफआईआर में आरोपी के तौर पर आदेश, उसके चाचा (‘नेता’ लिखा हुआ है) और थाना प्रभारी अश्विनी कुमार चतुर्वेदी को नामजद किया गया है.
लखनऊ पुलिस ने कहा कि उनके खिलाफ लगे आरोपों को ध्यान में रखते हुए चतुर्वेदी को भी निलंबित कर दिया गया है.
उधर, अतिरिक्त पुलिस उपायुक्त (पूर्व) लखनऊ, पंकज कुमार सिंह ने कहा कि जेल में डाले जाने के तुरंत बाद मोहित की तबीयत बिगड़ गई. मोहित को इलाज के लिए सबस पहले चिनहट के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र ले जाया गया था, जहां से उसे डॉ. राम मनोहर लोहिया अस्पताल रेफर कर दिया गया, जहां उसकी मौत हो गई.
लखनऊ पुलिस ने 27 अक्टूबर को एक बयान में कहा कि पोस्टमॉर्ट से मोहित की मौत का कारण पता नहीं चल सका है. पुलिस ने कहा कि विसरा को रासायनिक विश्लेषण के लिए और हृदय को हिस्टोपैथोलॉजिकल जांच के लिए संरक्षित किया गया है.
इस मामले में लखनऊ पुलिस जहां, घटना की आंतरिक जांच कर रही है, वहीं हिरासत में मौत की जांच के लिए गोमती नगर एक्सटेंशन के थाना प्रभारी को तैनात किया है.
वहीं, विपक्षी नेताओं ने उच्च स्तरीय जांच की मांग की है. विपक्ष के साथ-साथ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नेताओं ने भी इस घटना की निंदा की है
वहीं, बहुजन समाज पार्टी प्रमुख मायावती ने इस घटना को ‘अत्यधिक निंदनीय’ बताया और परिवार के विरोध का समर्थन करते हुए कहा कि उनका ‘गुस्सा’ समझ में आता है.
समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने बताया कि यह घटना पिछले दो सप्ताह में लखनऊ में हिरासत में मौत का दूसरा मामला है.
उन्होंने कहा, ‘नाम बदलने में माहिर सरकार को ‘पुलिस हिरासत’ का नाम बदलकर ‘यातना गृह’ कर देना चाहिए.’
कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी वाड्रा ने कहा कि भाजपा के शासन में यूपी में पुलिस ‘क्रूरता का पर्याय’ बन गई है.
इस घटना की निंदा करने वालों में यूपी के उपमुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक भी शामिल हैं, जो ब्राह्मण समुदाय से आते हैं. मोहित के परिवार से बात करने के बाद पाठक ने कहा कि सरकार ने घटना को ‘गंभीरता’ से लिया है. उन्होंने वादा किया कि जो भी दोषी होंगे उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी. अगर उच्च अधिकारियों की लापरवाही साबित हुई तो उनके खिलाफ भी सख्त कार्रवाई की जाएगी.
गाजियाबाद के लोनी से भाजपा विधायक नंद किशोर गुर्जर ने भी मौत की निंदा की और कहा कि केवल थाना प्रभारी पर मामला दर्ज करना पर्याप्त नहीं है. गुर्जर ने कहा कि मामले की सुनवाई फास्ट ट्रैक कोर्ट में होनी चाहिए और इस मामले में न्याय एक ‘मिसाल’ बनना चाहिए.
गौरतलब है कि इस महीने की शुरुआत में लखनऊ में जुआरियों के खिलाफ छापेमारी के दौरान कथित तौर पर पुलिसकर्मियों द्वारा उठाए जाने के बाद लगभग 20 साल के एक दलित व्यक्ति अमन गौतम की अचानक मौत हो गई थी. गौतम के परिवार ने आरोप लगाया था कि पुलिस की पिटाई से उनकी मौत हुई है.
हालांकि, पुलिस ने दावा किया था कि गौतम की मौत पुलिस वाहन में ले जाने के तुरंत बाद दिल का दौरा पड़ने से हुई थी.
परिवार और विपक्षी पार्टी के कार्यकर्ताओं के विरोध के बीच, 11 अक्टूबर की रात को गौतम को उठाने वाले पीआरवी (पुलिस रिस्पांस व्हीकल) के चार पुलिसकर्मियों के खिलाफ गैर इरादतन हत्या के आरोप में आपराधिक मामला दर्ज किया गया था.