छत्तीसगढ़: इंद्रावती नदी सूखने से फसलें बर्बाद, किसान हो रहे हैं परेशान

बस्तर में लगभग 40 गांव के किसान इस मर्तबा पानी का संकट झेल रहे हैं. किसानी के लिए इंद्रावती नदी का पानी का मुख्य स्रोत रहती है. लेकिन अब यह जीवनदायिनी नदी सूखने से किसानों की फसलें और खेत बुरी तरह सूख रहे हैं.

छत्तीसगढ़: इंद्रावती नदी सूखने से फसलें बर्बाद, किसान हो रहे हैं परेशान
बस्तर में लगभग 40 गांव के किसान इस मर्तबा पानी का संकट झेल रहे हैं. किसानी के लिए इंद्रावती नदी का पानी का मुख्य स्रोत रहती है. लेकिन अब यह जीवनदायिनी नदी सूखने से किसानों की फसलें और खेत बुरी तरह सूख रहे हैं.

थमीर कश्यप
24/03/2025 भारत

सूख चुकी इंद्रावती नदी. (सभी फोटो: थमीर कश्यप)
बस्तर: छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले के ग्रामीणों की आजीविका का साधन कृषि है. मगर, यहां के किसान के लिए मुख्य समस्या पानी की होती है. पानी की कमी के कारण एक बड़ी आबादी सालाना कृषि में काफी नुकसान झेलती है.

बस्तर में इस मर्तबा पानी का संकट लगभग 40 गांव के किसान झेल रहे हैं. वजह यह है कि बस्तर की जीवनदायनी नदी इंद्रावती सूख चुकी है. किसानी के लिए इंद्रावती नदी का पानी का मुख्य स्रोत रहती है. लेकिन, नदी सूखने से किसानों की फसलें और खेत बुरी तरह सूख रहे हैं.

स्थिति यह है कि सूखी नदी के बीच में बच्चे क्रिकेट खेल रहे है. गहराते पानी के मुद्दे पर किसानों ने प्रशासन को ज्ञापन पत्र भी सौंपा है. फिलहाल, इस मामले पर प्रशासन की तरफ से कोई पहल नहीं की गई है. पानी की इस संकट से बस्तर जिले के लोहंडीगुड़ा, चोकर, लामकेर सहित 25 से अधिक पंचायत प्रभावित हैं.

कृषि में पानी के संकट पर लामकेर के अनत राम कश्यप कहते है, ‘पानी नहीं है तो किसको गुस्सा दिखाएंगे. कर्ज लेकर मक्का लगाया हूं. फसल सूख रहा है. थोड़ा-सा बचा पानी लेने के लिए ‌मोटर को नदी के बीच में लाना पड़ रहा है. लगता है ये पानी भी खत्म हो जाएगा.’

पहली बार इंद्रावती नदी इतनी बुरी तरह सूखी है कि नदी मैदान में तब्दील हो गई है. आज हजारों किसान प्रभावित हो रहे है. गर्मी के आने से पहले ही इंद्रावती नदी का पानी सूख गया है. नदी कई जगहों पर लोगों के टहलने, गप्पे मारने और क्रिकेट खेलने का अड्डा बन गई है.

अनत राम दुखी होकर बताते हैं, ‘दो एकड़ में मक्का और थोड़ा खाने के लिए मिर्च लगाया था. अब पानी की किल्लत से फसल बर्बाद हो रही है. जो गड्ढे में पानी है वो एक दो दिन में खत्म हो जाएगा. इस दशा में हम क्या करेंगें?’

वे आगे कहते हैं, ‘समझ नहीं आ रहा. लगता है फसल को मवेशी ही चराएंगे. खेती में घाटे की भरपाई हम कैसे करेंगें? अब अपना परिवार कैसे पालेगें? ये सवाल हमें अंदर से खाए जा रहे हैं.’
नारायणपाल के लक्ष्मण बघेल अपना दुख जाहिर करते हुए कहते हैं, ‘पानी नदी में है ही नहीं. पूरा रेत ही रेत दिख रहा है. पानी के लिए रेत के बीच में जेसीबी से खुदाई करेंगे तो खर्चा बहुत आएगा. जेसीबी का खर्चा, पाइप और तार का खर्चा. यह सब करने के बावजूद 15 से 20 मिनट भी नहीं लगेगा और गड्ढा का पानी खत्म हो जाएगा. जेसीबी से खुदाई के लिए 20 -30 हजार रुपये का खर्च आएगा.’

उन्होंने कहा, ‘जो थोड़ा बहुत मात्रा में पानी है वह खेतों तक ले जाने में 80 से 90 हजार रुपये खर्च करना पड़ेगा. अभी इतना पैसा नहीं है. इस कारण फसल पूरा सूख रहा है.’

एक अन्य किसान समुदु राम बघेल ने कहा, ‘डेढ़ एकड़ में मक्का लगाए है. अगर पानी नहीं आया, तो फसल बर्बाद हो जाएगा. जो भी नदी के गड्ढे में पानी बचा है वो भी एक दिन खत्म हो जाएगा. जिस जगह पर गड्ढा नहीं है, वहां लोग अपनी फसल में सिंचाई नहीं कर पा रहे है. उनकी फसल सूख रही है. खेती में लगभग 20 से 25 हजार रुपये खर्च हो गया है. खाद-बीज महंगा हो गया है. फसल बर्बाद हो गया तो कैसे भरपाई होगी? समझ नहीं आ रहा है.’

चोकर, करमरी, घाट धनोरा, नदीसागर जैसे लगभग 25 से अधिक गांव के किसान पानी न होने के चलते परेशान है. बीते 3 मार्च को किसानों ने कमिश्नर और कलेक्टर को सात सूत्रीय मांगों को लेकर ज्ञापन सौंपा था और चेतावनी दी थी कि अगर उनकी समस्या का समाधान जल्द से जल्द नहीं किया गया तो सभी प्रभावित किसान राष्ट्रीय राजमार्ग को जाम करेंगे.

इसके बाद 10 मार्च को पानी की मांग को लेकर किसानों ने राष्ट्रीय राजमार्ग 30 पर डेढ़ घंटा चक्का जाम किया, जिसके बाद तीसरी बार प्रशासन को अपनी मांगों को लेकर ज्ञापन सौंपा.

इंद्रावती नदी बचाव समिति के अध्यक्ष लखेश्वर कश्यप कहते हैं कि प्रशासन को दो बार पानी की समस्या को लेकर ज्ञापन दे चुके हैं, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हो रही है. इसलिए हमें चक्का जाम करना पड़ा है. अगर प्रशासन इसके बाद भी पानी नहीं देती है, तो आगे और बड़ा आंदोलन करेंगे.
इस मामले पर ज्ञापन लेने के बाद बस्तर एसडीएम एआर राणा ने कहा कि जोरा नाला का पानी दो राज्यों का मसला है. हम किसानों की मांगों को उच्च स्तर के प्रशासन तक पहुंचाएंगे और किसानों की समस्या को दूर करने की कोशिश करेंगे. फसल क्षति को देखते हुए 3,4 प्वाइंट पानी जल संसाधन विभाग द्वारा छोड़ा गया है. वहीं, जल संसाधन विभाग कहना है कि 5% पानी दे सकते है. इससे ज्यादा पानी नहीं दे सकते.

पानी की कमी पर प्रशासन की बेरुखी

इंद्रावती नदी से बस्तर की ओर बहने वाली धारा को बनाए रखने वाली 204 मीटर लंबी कंक्रीट की संरचना सौ मीटर रेत में दब चुकी है. अप स्ट्रीम मात्रा ज्यादा होने के कारण पानी का प्रवाह पूरी तरह से धीमा हो गया है. पहली बार बहाव 20% से नीचे हो चुका है.

चकवा गांव के पूरन सिंह इंद्रावती बचाओ आंदोलन के नेता हैं. उनका मानना है कि नदी और डैम में जो पानी था उसे प्रशासन ने बस्तर की एक बैठक में आए मंत्री को दिखाने के लिए छोड़ दिया. वहीं, हाल में हुए चित्रकोट महोत्सव के लिए भी पानी को छोड़ दिया गया.

लेकिन सरकार आम किसानों की जरूरतों को अनदेखा करती है. उनके लिए पानी डैम से नहीं छोड़ा जाता. चोकर से लेकर चित्रकोट तक नदी 40 किलोमीटर की दूरी तय करती है. उन्होंने कहा, ‘हमने प्रशासन को जोरा नाला का पानी छोड़ने के लिए के लिए कलेक्टर और कमिश्नर को ज्ञापन दिया है. अगर पानी नहीं दिया गया तो किसान आत्महत्या कर लेंगे तो इसकी जवाबदारी कौन लेगा.’

आगे पूरन कहते हैं, ’28 फरवरी को हमने पानी की समस्या को लेकर कलेक्टर और कमिश्नर को ज्ञापन दिया था, लेकिन प्रशासन की ओर से कोई प्रयास नहीं किया गया. वहीं 6 मार्च को फिर हमने ज्ञापन दिया, उसके बाद भी कोई कार्रवाई नहीं की गई.’

उन्होंने मांग की कि जोरा नाला (एनीकेट) को खोल दिया जाए, ओडिशा के खातीगुड़ा बांध, तेलांगिरी परियोजना और भस्केल बैराज से इंद्रावती नदी में पानी छोड़ा जाए. इसके अलावा सूखी फसलों के लिए किसानों को मुआवजा दिया जाए. उन्होंने यह भी मांग की कि केंद्रीय और राज्य सरकार के मंत्री तथा अधिकारी जब चित्रकोट जलप्रपात आएं, तो उनके टूरिज्म के लिए एनीकेट से पानी नहीं छोड़ा जाए.

यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि, जल संसाधन ओडिशा की रिपोर्ट के मुताबिक इस साल 17 जनवरी को 29.9 प्रतिशत, 19 फरवरी 26.64%, 27 फरवरी को 16.60% पानी था. दूसरी ओर इस समय जोरा नाला का ओडिशा में इंद्रावती का 70 फीसदी से 84 फीसदी हिस्सा पानी समाहित हो रहा था.

पानी के मुद्दे पर छत्तीसगढ़ के अधिकारियों ने कहा है कि आने वाले 15 दिसंबर तक जोरा नाला के जमे रेत के टीलों को हटा दिया जाएगा. ओडिशा और छत्तीसगढ़ के जल संसाधन विभाग के अधिकारियों ने निरीक्षण किया और पानी का प्रवाह 16.60 पाया गया. वहीं, रेत के कारण पानी का बहाव धीमा हो गया.

अपर कोलंब डिजिविन बारनी ओडिशा अधीक्षक पिसी बेहरा का कहना है कि रेत हटाने के लिए कार्य योजना बनाई जा चुकी है और अप्रैल में काम शुरू हो जाएगा.

ज्ञात हो कि इंद्रावती नदी का उद्गम ओडिशा राज्य के कालाहांडी के रामपुर धुमाल गांव से हुआ है. इंद्रावती नदी 164 किलोमीटर ओडिशा राज्य में बहने के बाद 9 किलोमीटर छत्तीसगढ़ एवं ओडिशा की सीमा में बहने का बाद छत्तीसगढ़ में प्रवेश करती है एवं लगभग 232 किमी छत्तीसगढ़ में बहने के बाद 129 किमी महाराष्ट्र एवं छत्तीसगढ़ की सीमा से गोदावरी नदी में मिलती है. इस प्रकार यह नदी कुल 534 किमी अपने उद्गम स्थल से बहने के उपरांत गोदावरी नदी में मिलती है.

इंद्रावती नदी का कुल कैचमेंट एरिया 41,665 वर्ग किमी है जिसमें ओडिशा राज्य में कैचमेंट 7435 वर्ग किमी, छत्तीसगढ़ राज्य में 33735 वर्ग किमी एवं महाराष्ट्र राज्य में 495 वर्ग किमी है.

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