देश की सर्वोच्च अदालत ने आदेश दिया है कि प्रयागराज विकास प्राधिकरण, उन छह लोगों को 10-10 लाख रुपये मुआवजा देगा, जिनके घर उसने 2021 में अवैध रूप से तोड़े गए थे. कोर्ट का कहना है कि यही एकमात्र तरीका है, जिससे प्राधिकरण हमेशा उचित क़ानूनी प्रक्रिया का पालन करना याद रखेगा.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने 1 अप्रैल को दिए अपने कड़े फैसले में उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद के प्रयागराज विकास प्राधिकरण (पीडीए) को आदेश दिया कि वे उन छह लोगों को 10-10 लाख रुपये मुआवजा दें, जिनके घर अवैध रूप से तोड़े गए थे.
यह फैसला ऐसे समय में आया है जब उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ‘बुलडोजर न्याय’ का बचाव कर रही है, जिसमें आमतौर पर मुस्लिम समुदाय के आरोपियों की संपत्तियां ढहाई जा रही हैं.
द वायर ने पहले रिपोर्ट किया था कि तोड़े गए मकानों में से एक मकान सेवानिवृत्त उर्दू प्रोफेसर अली अहमद फातमी का था. यह कार्रवाई उनके लिए आर्थिक और सामाजिक रूप से विनाशकारी साबित हुई. उन्होंने द वायर से कहा था, ‘मैं उसे (मकान) देखने तक की हिम्मत भी नहीं जुटा पाया.’
पीडीए ने उनकी बेटी नैला फातमी का मकान भी गिरा दिया था, साथ ही वकील जुल्फिकार हैदर और दो अन्य लोगों की संपत्तियां भी ढहा दी गई थीं.
लाइव लॉ के अनुसार, जस्टिस अभय एस. ओका और उज्जल भुइयां की पीठ ने अपने फैसले में कहा कि यह तोड़फोड़ कानूनी प्रक्रिया का उल्लंघन थी.
सुप्रीम कोर्ट ने और क्या कहा?
संविधान का अनुच्छेद 21 नागरिकों के जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा करता है और यह मनमाने ढंग से किसी की आजीविका छीनने से रोकता है.
कोर्ट ने कहा, ‘प्रशासन और विशेष रूप से विकास प्राधिकरण को याद रखना चाहिए कि आवास का अधिकार भी अनुच्छेद 21 का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है… चूंकि यह अवैध तोड़फोड़ याचिकाकर्ताओं के अनुच्छेद 21 के तहत मिले अधिकारों का उल्लंघन है, इसलिए हम पीडीए को आदेश देते हैं कि वह प्रत्येक पीड़ित को 10 लाख रुपये मुआवजा दे.’
जस्टिस ओका ने कहा, ‘इन मामलों ने हमारी चेतना को झकझोर कर रख दिया है. अपीलकर्ताओं के घरों को जबरन और गैरकानूनी तरीके से तोड़ा गया…. आवास का अधिकार होता है, कानूनी प्रक्रिया नाम की भी कोई चीज होती है.’
उल्लेखनीय है कि द वायर की रिपोर्ट में उल्लेख किया गया था कि फातमी कभी यह समझ ही नहीं पाईं कि उनका मकान क्यों गिराया गया. उन्होंने कहा कि प्रशासन के पास उनके खिलाफ कोई कारण नहीं था, ‘हम नियमित रूप से हाउस टैक्स और पानी का बिल भरते थे.’
सुप्रीम कोर्ट ने पहले भी 13 नवंबर, 2023 को यह फैसला दिया था कि ‘सिर्फ इसलिए कि कोई व्यक्ति आरोपी है या दोषी ठहराया गया है, उसका घर बिना कानूनी प्रक्रिया के तोड़ना पूरी तरह असंवैधानिक है.’
नोटिस चिपकाना काफी नहीं
कोर्ट ने इस बात पर भी नाराजगी जताई कि अधिकारियों ने सिर्फ मकानों पर नोटिस चिपका दिए, जबकि उन्हें व्यक्तिगत रूप से या डाक के माध्यम से नोटिस देना चाहिए था. जस्टिस ओका ने कहा, ‘यह नोटिस चिपकाने का तरीका बंद होना चाहिए. लोगों ने इस वजह से अपने घर गंवा दिए.’
अदालत ने इस प्रक्रिया में गंभीर खामियों को भी दर्ज किया. कारण बताओ नोटिस उत्तर प्रदेश नगर योजना और विकास अधिनियम की धारा 27 के तहत 18 दिसंबर 2020 को जारी किया गया था. नोटिस उसी दिन चिपका भी दिए गए. 8 जनवरी 2021 को ध्वस्तीकरण का आदेश दिया गया, लेकिन इसे पंजीकृत डाक से नहीं भेजा गया.
डाक 1 मार्च 2021 को भेजी गई और 6 मार्च 2021 को प्राप्त हुई. इसके ठीक अगले दिन मकान तोड़ दिए गए, जिससे प्रभावित लोगों को अपील करने या जवाब देने का कोई मौका नहीं मिला.
अधिकारियों को सीख देने का तरीका–मुआवजा
कोर्ट ने कहा कि ‘हम इस पूरी प्रक्रिया (मकान तोड़े जाने) को अवैध मानते हैं. हर पीड़ित को 10 लाख रुपये का मुआवजा दिया जाएगा. यही एक तरीका है जिससे यह प्राधिकरण याद रखे कि कानूनी प्रक्रिया का पालन करना जरूरी है.’
इस फैसले से साफ है कि बिना कानूनी प्रक्रिया का पालन किए घर गिराना न केवल असंवैधानिक है, बल्कि इससे नागरिकों के मौलिक अधिकारों का हनन होता है. सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश को ‘बुलडोजर न्याय’ के खिलाफ एक बड़ी चेतावनी के रूप में देखा जा रहा है.