दूसरे राज्यों में 20 तो मप्र में 33 साल की सेवा के बाद पेंशन की पात्रता.
मप्र में एक तरफ सरकार कर्मचारियों की रिटायरमेंट की उम्र बढ़ा रही है, लेकिन पेंशन की पात्रता की आयु सीमा कम करने की मांग पर ध्यान नहीं दे रही है। गौरतलब है कि देश के कई राज्यों में शासकीय कर्मचारियों को 20 साल की सेवा पूर्ण करने पर फुल पेंशन (अधिवार्षिकीय आयु) के दायरे में मानती हैं। यानी इतने साल की सेवा में इन्हें फुल पेंशन का हकदार माना जाता है। वहीं मप्र में यही लाभ पाने के लिए कर्मचारियों को 33 साल की सेवा में पात्र माना जा रहा है। मप्र सरकार के 33 साल की सेवा के बाद पेंशन मिलने की पात्रता वाले फॉर्मूले से यहां के कर्मचारियों को हानि हो रही है। अगर कोई व्यक्ति 30 साल में नियुक्त हुआ, तो 62 साल की उम्र तक उसका सेवाकाल 32 वर्ष होगा। यानी उसे फुल पेंशन का लाभ नहीं मिलेगा। हालांकि इसके लिए सरकार ने कुछ विभागों में सेवानिवृति की आयु 65 साल कर दिया है। फिर भी मप्र के कर्मचारी इससे संतुष्ट नहीं हैं। उनका कहना है कि अन्य राज्यों की तरह मप्र में भी पेंशन की पात्रता की अवधि 20 साल की सेवा की जाए।
दायरा घटने की आस में रिटायर हो रहे कर्मचारी
मप्र में जिस फुल पेंशन घटने की आशा में कर्मचारी रिटायर्ड हो रहे हैं, वह मसौदा फाइलों में ही दबकर रह गया है। जबकि कोरोना के पूर्व सामान्य प्रशासन और वित्त विभाग के इस बीच इस गंभीर विषय पर मंथन हुआ। दस्तावेजी कार्यवाही भी चली, लेकिन प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ पाई है। जबकि सरकारी सेवकों की मांग पर सेवाकाल की अवधि दिल्ली सहित अन्य राज्यों की तरह होना थी। दिल्ली, पंजाब, उड़ीसा, जम्मू-कश्मीर, पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों की सरकारें अपने लोक सेवकों को 20 साल की सेवा पूर्ण करने पर फुल पेंशन (अधिवार्षिकीय आयु) के दायरे में मानती हैं। इतने साल की सेवा में इन्हें फुल पेंशन का हकदार माना जाता है। मप्र राजपत्रित अधिकारी संघ प्रांताध्यक्ष डीके यादव का कहना है कि हमारे पत्रों पर ही कर्मचारी कल्याण समिति ने पहल शुरू की थी। जीएडी और वित्त विभाग को पत्र लिखो गये थे, लेकिन मामला आगे नहीं बढ़ा। सरकार को इस पर सहानुभूतिपूर्वक विचार करना चाहिए।
फुल पेंशन की हकदारी फाइलों में
मप्र में फुल पेंशन का लाभ पाने के लिए कर्मचारियों को 33 साल की सेवा में पात्र माना जा रहा है। यही दायरा घटाने के लिए कर्मचारी लंबे समय से संघर्ष करते रहे हैं। कर्मचारी संघों की मांग पर सरकार ने इस पर विचार किया था। वर्ष 2018 के दौरान मंत्रालय में सरकार की कर्मचारी कल्याण समिति ने सामान्य प्रशासन और वित्त विभाग को पत्र लिखा था। तब दोनों विभागों के बीच मंथन हुआ। फिर तय हुआ कि कर्मचारियों की गणना करके यह मामला कैबिनेट में भेजा जाएगा। लेकिन यह मसौदा तभी से फाइलों में झूल रहा है। मंत्रालय में पिछले तीन साल से कर्मचारी कल्याण समिति के पद पर किसी भी चेयरमेन की नियुक्ति नहीं हुई है। जबकि कर्मचारियों के बीच से ही किसी योग्य सेवानिवृत्त सेवक को इस पर पर सरकार बैठाती रही है। कर्मचारी संघों के नेता अपने-अपने स्तर पर अधिकारियों के समक्ष इस संबंध में पक्ष रख रहे हैं, लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिल रही है। हां यदि समिति चेयरमेन की अनुशंसा होती तो कर्मचारियों को कुछ सफलता मिल सकती थी। या फिर मुख्यमंत्री स्वयं इस मामले में पहल करें। ऐसा सामान्य प्रशासन और वित्त विभाग में अधिकारियों का कहना है। कर्मचारी नेता भानु प्रकाश तिवारी का कहना है कि हम पिछले सात साल से निरंतर इस मांग को उठा रहे है। क्योंकि जब दिल्ली सहित अन्य राज्य 20 साल में फुल पेंशन का लाभ कर्मचारियों को दे रहे हैं तो आखिर मप्र में क्या दिक्कत है।
फुल पेंशन की प्रक्रिया ठंडे बस्ते में
विभागों में अधिकांश अधिकारी और कर्मचारी ऐसे हैं, जिनकी 35 से लेकर 40 साल में नियुक्तियां हुई है। ऐसे में उसके लिए 33 साल के सेवाकाल खंड तक पहुंचना मुश्किल है। हां यदि किसी की नियुक्ति 28 या तीस साल की अवधि में हुई है, तब उसके लिए वह 33 साल के फार्मूले में फिट बैठना संभव है। उसे फुल पेशन का लाभ मिलता है। मप्र में डाक्टर्स, प्रोफेसर और नर्स की सेवानिवृत्ति आयु 65 साल है, जबकि अन्य संवर्गों को 62 साल में रिटायर्ड किया जाता है। इसलिए सरकार के समक्ष फुल पेंशन के मामले में अन्य राज्यों के उदाहरण गिनाये गये थे। मप्र कर्मचारी कल्याण समिति के पूर्व चेयरमैन रमेशचन्द्र शर्मा का कहना है कि मैंने अपने कार्यकाल में जीएडी और वित्त विभाग को पत्र लिखा था। प्रक्रिया भी शुरू हुई थी। फिर कोरोना आने के बाद प्रक्रिया ठंडे बस्ते में चली गई। अन्य राज्यों की तरह मप्र में फुल पेंशन 20 साल में मिलना चाहिए।