पर्यावरण अनुमति में फंसी खदानें

हर साल सरकार को करोड़ों रुपए की चपत

मंगल भारत। मनीष द्विवेदी। मप्र में एक तरफ सरकार योजनाओं के क्रियान्वयन और विकास कार्यों के लिए हर माह कर्ज ले रही है, वहीं दूसरी तरफ अफसरों की भर्राशाही और लापरवाही के कारण सरकार को करोड़ों रुपए की चपत लग रही है। ऐसे ही कुछ मामले खनिज विभाग में सामने आए हैं, जिसमें लिपिकीय त्रुटि बताकर खदानों की पर्यावरण अनुमति रोकी जा रही है। पर्यावरण संबंधी अनुमति देने के लिए दो कमेटी बनी हैं। इसमें एक से एक यह है और दूसरी सिया। दोनों संस्थानों में एक-दूसरे के रिश्तेदार बैठे हुए हैं, जो एक-दूसरे के हिसाब से काम करते हैं। खास बात यह कि उनमें से एक रिश्तेदार तो सालों से जमा हैं। दोनों एक-दूसरे की भेजी गई फाइलों को तवज्जो तो देते हैं, लेकिन अन्य फाइलों को अहमियत नहीं मिलती है। इससे लंबित प्रकरणों की संख्या कम होने की जगह बढ़ती जा रही है। खास बात यह कि दोनों अफसरों को हटाने के प्रयास भी नहीं हुए हैं। गौरतलब है कि प्रदेश को अच्छा खासा राजस्व देने वाला खजिन विभाग बाबूगिरी में उलझ कर रह गया है। स्टेट इनवायरमेंट इंपेक्ट अस्सिमेंट अथॉरिटी (सिया) में दर्जनों ऐसे प्रकरण है, जिन्हें लिपिकीय त्रुटि को हथियार बनाकर उलझा कर रखा गया है। उन प्रकरणों का निराकरण नहीं होने से खनिज कारोबारी परेशान हो रहे हैं। इसका सीधा असर उनके रोजगार पर भी पड़ रहा है, जिनकी दो जून की रोटी इसी से चलती है। यह सब एक सीट पर सालों से जमे अफसरों और बाबुओं के कारण हो रहा है। सिया अध्यक्ष एनएस चौहान द्वारा तमाम गडबडिय़ां पकड़े जाने के बावजूद अफसरों पर कार्रवाई नहीं हो हुई। विभाग में पदस्थ आईएएस अफसर कर्मचारियों को बचाने में लग गए है।
बेवजह रोकी जा रही फाइलें
पर्यावरण स्वीकृत का यह खेल लंबे समय से चल रहा है। इसका खुलासा सिया अध्यक्ष एनएस चौहान द्वारा की समीक्षा में हुआ। चौहान ने ऐसे सभी प्रकरणों की समीक्षा की, जिन्हें प्राधिकरण द्वारा पूर्व में स्वीकृति दी जा चुकी है, लेकिन लिपिकीय त्रुटि के कारण कार्य बाधित है। इसमें एक प्रकरण 10752 वर्ष 2023 संदीप राय बिछिया डिंडोरी का था। इसकी समीक्षा में सामने आया कि इस प्रकरण में कोई लिपिकीय त्रुटि नहीं है। कार्यालय द्वारा भ्रमित करने वाली टीप प्रस्तुत की गई है कि इसमें लिपिकीय त्रुटि है। अध्यक्ष ने भविष्य में प्रकरण का पूर्ण अवलोकन एवं परीक्षण करने के बाद टीप अंकित करने के निर्देश दिए है। साथ में सिया की 5 जून 24 को हुई बैठक में इस प्रकरण को संज्ञान में नहीं लाने के लिए प्रभारी अधिकारी के विरुद्ध कार्रवाई के निर्देश भी दिए हैं। सर्वसम्मत निर्णय नहीं होने के कारण मिनट्स की प्रति पर्यावरण एवं वन मंत्रालय को भेजने का निर्णय लिया गया है। वहीं मेसर्स स्टोन वर्क्स माइनिंग विवेक दुबे ने डोलोमाइट खदान के लिए बड़वारा कटनी में 2.80 हेक्टेयर के लिए आवेदन किया था। इस प्रकरण में सिया ने अनुमति जारी कर दी थी, लेकिन बाद में इसे लिपिकीय त्रुटि बताते हुए रोक दिया गया। इससे खदान में काम चालू नहीं हो सका। समीक्षा के दौरान सामने आया कि परियोजना प्रस्तावक द्वारा परिवेश पोर्टल पर बी-1 श्रेणी के लिए ही आवेदन किया गया। साथ में ऑनलाइन आवेदन के साथ कलेक्टर खनिज शाखा द्वारा जारी एकल प्रमाण पत्र भी बी-1 श्रेणी में आता है। सेक ने भी इसे इसी श्रेणी में रखा है। प्राधिकरण ने सर्वसम्मति से निर्णय लिया कि सिया द्वारा प्रकरण में 10 जून 24 में अधिरोपित मानक शर्तों के स्थान पर परिशिष्ट-2 सुधारा जाए। साथ में बी-1 श्रेणी के कलस्टर मैनेजमेंट की 3 अन्य शतों को भी जोड़ते हुए पर्यावरण स्वीकृति जारी की जाए।
कमेटी में रिश्तेदारों का जमावड़ा
प्रदेश में उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए सरकार उद्योगपतियों के लिए रेड कारपेट बिछा रही है। सरकार की ओर से उद्योगपतियों को भरोसा दिलाया जा रहा है कि उन्हें सभी अनुमतियां सिंगल विंडो पर मिलेगी। एक क्लिक पर सभी अनुमतियां उनके पास होंगी। सरकार इसके लिए ईमानदारी से काम भी कर रही है। दूसरी तरफ प्रदेश का माइनिंग विभाग ऐसा है, जहां उद्योगपतियों को अनुमतियों के नाम पर परेशान किया जा रहा है। इस विभाग में सभी कागजी कार्रवाई पूरी करने के बाद भी उद्योगपतियों को न सिर्फ परेशान किया जाता है, बल्कि उनकी अनुमतियां भी जारी नहीं की जा रही हैं। ऐसे एक-दो नहीं कई प्रकरण हैं, जिन्हें सिर्फ विभाग में लिपिकीय त्रुटि के नाम पर दो-दो साल तक रोका गया। सवाल यह है कि ऐसे में सरकार के रेड कारपेट का क्या होगा।
सिया की समीक्षा में सामने आई हकीकत
गत दिनों स्टेट इनवायरमेंट इंपेक्ट अस्सिमेंट अथारिटी (सिया) के अध्यक्ष शिवनारायण सिंह चौहान द्वारा की गई समीक्षा में सनसनीखेज खुलासा हुआ है कि लिपिकीय त्रुटि के नाम पर फाइलों को किस तरह रोका जा रहा है और गड़बड़ी की जा रही है। सिया अध्यक्ष ने लंबित प्रकरणों की समीक्षा के दौरान पाया कि बिना कारण प्रकरणों को रोकने वाले अफसरों पर किसी तरह की कार्रवाई नहीं की जा रही है। इससे साफ है कि महकमे में सब कुछ ठीक-ठाक नहीं चल रहा है। दरअसल सरकार ने माइनिंग के लिए काफी सख्त नियम बनाए हैं। ऐसे में कागजी खानापूर्ति करने के लिए पहले से ज्यादा मशक्कत करनी पड़ती है। किसी ने अगर इसे पूरा भी कर लिया तो गारंटी नहीं होती है कि उसे अनुमति तत्काल मिल जाएगी। विभाग में सालों से जमे अफसर इसे मुश्किल बना देते हैं। वे इन अनुमतियों को लिपिकीय त्रुटि का नाम देकर लंबित प्रकरणों में डाल देते हैं। विभाग के वरिष्ठ अफसर भी इस तरफ देखना जरूरी नहीं समझते हैं। ऐसे में यह अनुमतियां लंबे समय तक अटकी पड़ी रहती हैं। इसको लेकर सदस्य सचिव उमा माहेश्वरी को कार्रवाई करने के लिए निर्देशित किया गया था। बावजूद इसके अब तक अफसरों पर कार्रवाई नहीं की गई है। इससे न सिर्फ सरकार को राजस्व का नुकसान होता है, बल्कि रोजगार के रास्ते भी नहीं खुल पाते हैं।

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