मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनावों की तारीख जैसे-जैसे करीब आ रही है, भाजपा और कांग्रेस की रणनीति भी सामने आ रही है। भाजपा और संघ का आकलन है कि मुख्यमंत्री के तौर पर शिवराज सिंह चौहान तो ठीक हैं, लेकिन सत्ता में आने के लिए विधायकों का स्थानीय स्तर पर हो रहा विरोध नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
– इस बार प्रदेश में एक सैकड़ा से अधिक नए चेहरों पर दांव खेलेगी भाजपा
– शाह के फिटनेस टेस्ट में शिवराज के 104 विधायक ‘अनफिट’
– अमित शाह करा रहे हैं प्रदेश की सभी 230 सीटों का सर्वे
(मनीष दिवेदी प्रबंध संपादक मंगल भारत राष्ट्रीय समाचार पत्रिका की खास रिपोर्ट.)
मध्य प्रदेश में लगातार चौथी बार सरकार बनाने की तैयारी में जुटी भाजपा की राह में उसी के 125 विधायक रोड़ा बने हुए हैं। इनमें से 104 विधायक तो जीतने की स्थिति में नहीं हैं। ऐसे में पार्टी इस बार अपने एक सैकड़ा से अधिक विधायकों का टिकट काट सकती है। यह संकेत पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने दिया है। यही नहीं, इन विधानसभा क्षेत्रों में नए चेहरों की तलाश के लिए शाह जुलाई से सर्वे कराने जा रहे हैं। दरअसल, 12 जून को जबलपुर दौरे के दौरान शाह ने एक एनजीओ द्वारा तैयार की गई भाजपा के सभी 165 विधायकों की परफार्मेंस रिपोर्ट पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और प्रदेश अध्यक्ष राकेश सिंह के साथ चर्चा की। इस दौरान उन्होंने बताया कि प्रदेश भाजपा के 125 विधायकों के खिलाफ जबरदस्त एंटी-इंकम्बेंसी है। इनमें से 104 विधायक तो जीतने की स्थिति में भी नहीं हैं।
जो सर्वे में हिट, वहीं टिकट के लिए फिट
भाजपा आलाकमान ने स्पष्ट कर दिया है कि इस बार टिकट वितरण में किसी प्रकार की कोताही नहीं बरती जाएगी। शाह ने साफ-साफ शब्दों में कह दिया है कि अबकी बार 200 पार का जो नारा दिया गया है उसे हर हाल में पूरा करना है। इसलिए हर विस क्षेत्र का सर्वे कराया जा रहा है, जो सर्वे में हिट होगा, वहीं टिकट के लिए भी फिट होगा। पार्टी सूत्रों के मुताबिक शाह ने एक एनजीओ की सर्वे रिपोर्ट मिलने के बाद कठोर निर्णय लेने के मूड में हैं। लेकिन इससे पहले वे प्रदेश की सभी 230 सीटों का सर्वे करा रहे हैं। यह सर्वे शाह के करीबी नेताओं की निगरानी में हो रहा है। इस कार्य में भाजपा और आरएसएस के कार्यकर्ता मिलकर जुटे हैं। बताया जाता है कि पिछले कुछ महीनों के दौरान मप्र को लेकर जितनी सर्वे रिपोर्ट आई हैं, उसे शाह ने गंभीरता से लिया है। इसके बाद इन सारी सर्वे रिपोर्ट के आधार पर एक एनजीओ के माध्यम से रिपोर्ट तैयार करवाई गई जिसमें भाजपा के 104 विधायकों का टिकट काटने की बात कहीं गई है। यही नहीं इस रिपोर्ट में कहा गया है कि इस बार के चुनाव में भाजपा को 34 फीसदी और कांग्रेस को 49 फीसदी वोट मिल सकते हैं।
कुंडली तैयार करेंगे अमित शाह के दूत
बताया जाता है कि हरियाणा के सूरजकुंड में 14 जून से 16 जून तक पार्टी के तमाम संगठन मंत्रियों की मीटिंग हुई और उन्हें निर्देश दिया गया है कि सांसदों, मंत्रियों और विधायकों की कार्यप्रणाली से जो डैमेज हुआ है उसे कंट्रोल करें। वहीं इस मीटिंग में अमित शाह के दूत भी शामिल हुए जिन्हें अंतिम दिन ट्रेनिंग भी दी गई। अब ये दूत ही सत्ताधारी नेताओं की जन्मकुंडली बनाकर पार्टी नेतृत्व को सौंपेंगे, जिसके आधार पर टिकट वितरण होगा। आरएसएस के एक नेता कहते हैं कि पार्टी के प्रति देश के मतदाता का मूड भांपने और नेताओं के बारे में फीडबैक लेने भाजपा ने विस्तारकों को सूरजकुंड में ट्रेंड किया गया है। आरएसएस से जुड़े संगठन मंत्रियों को इस दौरान खुद पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने ट्रेनिंग दी। भाजपा में आरएसएस से जुड़े विस्तारकों का रोल बड़ा अहम माना जाता है। विस्तारक पार्टी में संघ के प्रचारकों की तरह काम करते हैं। इतना जरूर है कि समय और जरूरत के हिसाब से इनकी भूमिका बदलती रहती है। अभी तक संगठन के लिए काम करते रहे विस्तारक अब लोकसभा एवं विधानसभा चुनावों के लिए ग्राउंड पर काम करेंगे और सीधे पार्टी हाईकमान को अपना फीडबैक देंगे। मीटिंग में इन विस्तारकों को ग्राउंड में उतारने से पहले उन्हें यह बताया जाएगा कि किस-किस मुद्दे पर उन्हें काम करना है। सूत्र बताते हैं कि ये विस्तारक जुलाई में अपने-अपने इलाकों में मोर्चा संभाल लेंगे। पार्टी सूत्रों का कहना है कि विधानसभा चुनाव के समय टिकट वितरण में विस्तारकों की रिपोर्ट काफी अहम होती है। ये विस्तारक पार्टी के सभी मौजूदा विधायकों के बारे में फीडबैक जुटाएंगे और अपनी रिपोर्ट तैयार करेंगे।
नए चेहरों पर भी होगी नजर
बताया जाता है कि सूरजकुंड की बैठक के अंतिम दिन ट्रेनिंग के बाद शाह ने अपने दूतों को मप्र विधानसभा की उन 125 सीटों की सूची सौंपी है, जहां पार्टी की स्थिति कमजोर बताई गई है। इन सीटों पर नए चेहरे की संभावना को भी तलाशा जाएगा। शाह से मिली गाइडलाइन पर प्रदेश की सभी 230 विधानसभा सीटों पर एक-एक विस्तारक जुलाई से काम में जुट जाएंगे। पार्टी नेताओं एवं वर्करों के साथ आम लोगों की नब्ज भी वे टटोलेंगे। इस मीटिंग में शामिल होने वाले लोग यह भी तय करेंगे कि मौजूदा सांसदों और विधायकों में से कितने ऐसे हैं, जो आगामी चुनावों में जीतने की स्थिति में हैं। इसकी पूरी विस्तृत रिपोर्ट तैयार होगी। पार्टी के सांसदों और विधायकों के प्रति अगर जनता में किसी तरह की नाराजगी है, तो इसकी वजहों के बारे में भी विस्तारक ग्राउंड जीरो पर रहकर रिपोर्ट कार्ड बनाएंगे। भाजपा संगठन में विस्तारकों को पार्टी प्रमुख का दूत माना जाता है। पार्टी सूत्र बताते हैं कि शाह ने साफ संकेत दे दिया है कि मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनावों में भाजपा अपने मौजूदा विधायकों में लगभग आधे के टिकट काट सकती है। ज्ञातव्य है कि बीते एक साल में भाजपा नेतृत्व अलग-अलग स्तर पर राज्य फीडबैक ले रहा है और सरकार के प्रदर्शन, विधायकों की लोकप्रियता व सरकार विरोधी माहौल का अध्ययन कर रही है। रणनीति के अनुसार संगठनात्मक स्तर पर प्रदेश में प्रदेश अध्यक्ष को बदला गया है। पार्टी ने साफ किया है कि टिकट तय करने में नेता का पद व कद काम नहीं करेगा। उसकी जीतने की क्षमता सबसे अहम होगी।
अमित शाह तय करेंगे टिकट
प्रदेश भाजपा में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है। इसे देखते हुए अब भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव की कमान खुद ही संभाल ली है। यही वजह है कि शाह हाल ही के दिनों में दो बार प्रदेश के दौरे पर आ चुके हैं। हाल ही में शाह के जबलपुर दौरे के बाद दिल्ली से इस बात का संदेश दे दिया गया है कि मध्यप्रदेश के चुनाव से जुड़ा हर बड़ा फैसला अमित शाह की रजामंदी से ही किया जाएगा। नई व्यवस्था के तहत प्रदेश संगठन उन्हें रिपोर्ट करेगा। सूत्रों की माने तो चुनाव प्रबंधन समिति की उपसमितियों की सूची को लेकर पार्टी के कुछ वरिष्ठ नेताओं ने दिल्ली तक अपनी शिकायत पहुंचाई है। इसके बाद ही शाह ने पूरे चुनाव पर कंट्रोल करने का निर्णय लिया है। भाजपा में यह पहला मौका है जब राष्ट्रीय अध्यक्ष स्वयं विधानसभा चुनाव की कमान अपने पास रख रहे हैं। वर्ष 2008 और 2013 के चुनाव सीएम, प्रदेश अध्यक्ष और प्रदेश प्रभारी के ही नेतृत्व में लड़े गए थे, लेकिन इस बार कांग्रेस की एकजुटता, एंटी-इंकम्बेंसी और अब तक के सर्वे के निराशाजनक परिणामों को देखते हुए शाह ने चुनाव कमान खुद संभालने का फैसला किया है। अमित शाह चुनाव के मद्देनजर प्रदेश के हर संभाग का दौरा करने वाले हैं। संभावना है कि जुलाई के अंतिम सप्ताह से यह सिलसिला शुरू हो सकता है। वे दौरों के दौरान संभाग के पदाधिकारियों की बैठक तो लेंगे ही, पार्टी के कुछ वरिष्ठ नेताओं से वन-टू-वन चर्चा करके ग्राउंड रिपोर्ट भी लेंगे। इसी के साथ हर संभाग में सोशल मीडिया संभाल रही टीम से चर्चा कर चुनाव की तैयारी ओर प्रचार में सोशल मीडिया के इस्तेमाल के टिप्स देंगे। इस दौरान कुछ जगहों पर समरसता भोज और युवा मोर्चा की बाइक रैली भी रखने पर विचार किया जा रहा है। केंद्रीय संगठन ने प्रदेश संगठन से प्रदेश की 82 आरक्षित सीटों पर जीत का प्लान भी मांगा है। इसमें अनुसूचित जनजाति की 47 और अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित 35 सीटें हैं। एससी-एसटी वर्ग में सरकार के प्रति बढ़ी नाराजगी के चलते पार्टी को आशंका है कि इन सीटों पर मुश्किल खड़ी हो सकती है।
शाह भोपाल को बनाएंगे हेडक्वार्टर
आगामी विधानसभा चुनावों की मॉनीटरिंग के लिए भाजपा अध्यक्ष अमित शाह भोपाल को अपना हेडक्वार्टर बनाएंगे। इस हेडक्वार्टर से मप्र ही नहीं बल्कि छत्तीसगढ़ और राजस्थान के विधानसभा चुनावों की तैयारी पर नजर रखी जाएगी। पार्टी की अंदरूनी सर्वे के अनुसार इन तीनों राज्यों में भाजपा को विपक्ष से कड़ा मुकाबला करना होगा। इनमें राजस्थान में पार्टी की हालत सबसे कमजोर बताई जा रही है। दरअसल, शाह की मंशा है कि तीनों राज्यों में पार्टी की चुनावी गतिविधियों को एक ही जगह से मॉनीटरिंग की जाए, साथ ही दिशा-निर्देश भी जारी हो। इसी मकसद से शाह भोपाल को अपना चुनावी हेडक्वार्टर बनाने की तैयारी में हैं। पार्टी सूत्रों का कहना है कि विधानसभा चुनाव को लेकर मिले फीडबैक में मप्र में भाजपा की स्थिति खराब बताई गई है। इसको देखते हुए शाह जल्द ही भोपाल में डेरा डालेंगे। वे यहां से तीनों राज्यों पर नजर रखेंगे। शाह दिल्ली के बजाए ज्यादातर समय भोपाल में रहेंगे। भोपाल में उनके लिए आशियाना ढूंढा जा रहा है। वे जुलाई के पहले हफ्ते में भोपाल में आमद दे देंगे। शाह खुद तीनों राज्यों के जिलों में जाएंगे और चुनाव तैयारियों की समीक्षा करेंगे। शाह की प्राथमिकता में मप्र है। इसकी वजह यहां पार्टी का मजबूत जनाधार है, जिसे बरकरार रखना जरूरी है। इसलिए शाह पहले चरण में मध्यप्रदेश के जिलों में जाकर चुनाव प्रचार की स्थिति संभालेंगे। पिछले दिनों उपचुनावों में विधानसभा और लोकसभा चुनाव में उसे हार झेलनी पड़ी है। मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में पिछले 15 सालों से सरकार है। पिछले चुनावों की अपेक्षा इस बार मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ज्यादा ताकतवर नजर आ रही है। पार्टी हाईकमान ने सारी स्थितियों से निपटकर तीनों राज्यों में सरकार बनाने के लिए रणनीति बना रही हैं।
कांग्रेस को कमजोर समझना होगी बड़ी भूल
अपने प्रदेश के दौरों के दौरान अमित शाह ने आगामी चुनाव को लेकर जिस तरह से स्पष्ट संकेत दिए है उससे सत्ता व संगठन दोनों में इन दिनों हलचल मची हुई है। शाह जबलपुर आए तो थे चुनाव प्रबंधन समिति, चुनावी रणनीतिकार और सोशल मीडिया टीम के सदस्यों से चर्चा करने। इस दौरान उन्होंने प्रदेश भाजपा नेताओं की मुश्किल यह कहकर बढ़ा दी है कि मध्यप्रदेश में कांग्रेस को कमजोर समझने की भूल कतई न करें। वे यहीं नहीं रुके बल्कि उन्होंने यह तक कह दिया कि सत्तर से अधिक विधायकों के टिकट काटे जाएंगे, जिनमें करीब आधा दर्जन मंत्री भी शामिल होंगे।
दरअसल, पार्टी नेतृत्व की चिंता एंटी-इंकम्बेंसी को लेकर अधिक है। पार्टी हाईकमान के पास जो रिपोर्ट पहुंच रही हैं उसके मुताबिक आम आदमी से लेकर कार्यकर्ता तक विधायकों, मंत्रियों व सरकार से नाराज हैं। किसानों की नाराजगी ने पहले ही प्रदेश सरकार व संगठन के रणनीतिकारों की पहले से ही नींद उड़ा रखी है। ऐसे में प्रदेश संगठन के सामने समस्या यह है कि अगर सत्तर से अधिक विधायकों के टिकट कटता है तो पार्टी के सामने कांग्रेस से पहले खुद से लडऩे की चुनौती सामने आ सकती है। अमित शाह पिछले तीन दौरों से शिवराज की जगह संगठन के नाम पर चुनाव लडऩे की बात कह रहे थे, लेकिन इस बार दोनों को मिलकर चुनाव लडऩे की बात कही। इससे स्पष्ट है कि इस बार भाजपा प्रदेश में शिवराज सिंह के चेहरे के आधार पर ही चुनाव में उतरेगी। इस दौरान शाह ने कहा कि एंटी-इंकम्बेंसी कई विधानसभा क्षेत्रों में कुछ ज्यादा है। ऐसे क्षेत्रों को चिह्नित कर काम करने की जरूरत है।
बैठक में यह भी कहा गया कि यदि कांग्रेस का समान विचारधारा वाले दलों से समझौता होता है तो उसकी काट के लिए रास्ता तलाशना पड़ेगा कि इससे होने वाले नुकसान की भरपाई कैसे हो सकती है। बताया जाता है कि भाजपा इसके लिए फूल सिंह बरैया की पार्टी से बातचीत करने की तैयारी कर रही है। ताकि बसपा की ओर जाने वाले दलित मतों को रोका जा सके। बताया जाता है कि बैठक में तय किया गया कि अब भाजपा का पूरा फोकस गांव, किसान और अनुसूचित जाति व जनजाति वर्ग के मतदाताओं पर होगा। इसके लिए भाजपा के बड़े नेता जल्द ही गांवों की ओर रुख करेंगे। कई केन्द्रीय मंत्रियों की मध्यप्रदेश में ड्यूटी लगाई जाएगी। इस पूरे मामले पर कांग्रेस का कहना है कि भाजपा को ये मालूम हो गया है कि उसकी सीटें जाने वाली हैं। इस वजह से वो अपनी रणनीति बदल रही है। बैठक में कांग्रेस के हर हमले का जवाब देने की रणनीति भी तैयार की गई। शाह ने कमलनाथ के प्रदेशाध्यक्ष बनने के बाद भाजपा के कार्यकर्ताओं को सलाह दी है कि मैदान पर डटे रहे। सूत्रों के मुताबिक अमित शाह ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को कहा है कि सरकार से जो भी वर्ग नाखुश नजर आ रहा है उसको खुश करने की कोशिश की जाए।
टिकट काटने से पहले बताया जाएगा रिपोर्ट कार्ड
दूसरी बार नहीं जीतने वाले हैं कई विधायक
भाजपा ने अपने विधायकों के टिकट काटने की योजना तो बनाई है लेकिन यह भी सुनिश्चित करने की कोशिश की जाएगी कि कहीं बगावत न हो जाए। इसके लिए उनकी बात सुनी जाएगी। पहले तो रिपोर्ट उनके सामने रखी जाएगी। उन्हें बताया जाएगा कि उन्हें टिकट क्यों नहीं दिया जा रहा है। फिर उनसे पूछा जाएगा कि यदि उन्हें टिकट नहीं दिया गया तो किसे देना चाहिए। इस तरह हरसंभव कोशिश की जाएगी कि बगावत न हो क्योंकि मालवा-निमाड़ के बेल्ट में यदि बगावत हुई तो यह पार्टी बन बिलए भारी पड़ेगी। इस इलाके में पहले से कमजोर हो रही भाजपा के लिए यह सत्ता से हटाने का सबब बन सकती है। कुल मिलाकर कोशिश की जाएगी कि राजी-खुशी विधायक स्वीकार लें कि यदि वे लड़ेंगे तो हार जाएंगे, लेकिन महत्वकांक्षा तो सबकी होती है।
भले ही भाजपा और कांग्रेस अपने जनाधार को लेकर उत्साहित नजर आ रही हों, लेकिन हकीकत इससे जुदा ही नजर आ रही है। दोनों ही पार्टियों के वर्तमान विधायकों में कई ऐसे हैं, जिनकी वापस विधानसभा आने की उम्मीद न के बराबर ही नजर आ रही है। सर्वे में खुलासा हुआ है कि भाजपा के करीब 104 विधायकों को हार का सामना करना पड़ेगा। इनका वापस विधानसभा आना मुश्किल है। हालांकि मध्यप्रदेश का यह ट्रेंड भी है कि हर चुनाव में यहां पर एक सैकड़ा विधायक पहली बार चुनकर आते हैं। ऐसे में या तो पार्टियां अपने वर्तमान विधायकों के टिकट काटकर नए को मौका देती हैं, या फिर नए उम्मीदवार मजबूत कहे जाने वाले उम्मीदवार को हराकर विधानसभा आते हैं।
भाजपा इस बार टिकट काटने से पहले सभी विधायकों को उनकी रिपोर्ट दिखाएगी। बताया जाता है कि जुलाई में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, प्रदेशाध्यक्ष राकेश सिंह, संगठन महामंत्री सुहास भगत खराब रिपोर्ट कार्ड वाले विधायकों से चर्चा कर उन्हें वास्तविकता से अवगत कराएंगे। चर्चा है कि खराब रिपोर्ट कार्ड वाले विधायकों से यह भी पूछा जा सकता है कि क्या उनकी सीट बदल दी जाए या यदि उन्हें टिकट नहीं दिया जाता है तो किसे देना चाहिए। ताकि अंतिम समय में टिकट काटने पर विद्रोह की स्थिति न बने।
हर बार विधानसभा चुनाव में सैकड़ों नए विधायक आते हैं। अगर अभी विधानसभा के भीतर के हालातों पर बात करें तो भाजपा के विधायकों की संख्या 165 है, जबकि कांग्रेस के पास 57 विधायक हैं। बसपा के चार और निर्दलीय तीन विधायक हैं। ऐसे में नुकसान सामान्य तौर पर तीनों ही दलों को हो रहा है। वैसे अगर विधानसभा के ट्रेंड की बात करें तो हर बार चुनाव में करीब एक सैकड़ा विधायक नए आते हैं। अगर 2013 के विधानसभा चुनाव की बात करें तो 111 विधायक पहली बार विधानसभा के भीतर पहुुंचे हैं। इनमें कांग्रेस के 41, भाजपा के 64, बसपा के सभी 4 और दो निर्दलीय भी शामिल हैं।
भाजपा चुनाव में हर बार 60 फीसदी टिकट काटने की बात करती है। अभी से ही उसने परफॉर्मेंस के आधार पर 60 फीसदी विधायकों के टिकट काटने की बात कही है। हालांकि कितने विधायकों के टिकट कटेंगे, फिलहाल तय नहीं है। लेकिन अभी भाजपा के अंदरखाने से बात आ रही है कि एंटी-इंकम्बेंसी को कम करने के लिए विधायकों को ढाल बनाया जाएगा और ज्यादा से ज्यादा विधायकों के टिकट काटकर नए लोगों को मौका दिया जाएगा। जिससे लोगों का गुस्सा कम हो जाएगा।
मालवा और महाकौशल ने बढ़ाई चिंता
भाजपा सूत्रों का कहना है कि मालवा और महाकौशल में पार्टी की स्थिति संतोषजनक नहीं है। इसलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी इन क्षेत्रों पर फोकस किया है। अमित शाह के हालिया दौरे के बाद विशेषकर महाकौशल क्षेत्र में भाजपा ज्यादा व्यस्त है। महाकौशल क्षेत्र में 8 जिले शामिल हैं। इन आठ जिलों में विधानसभा की कुल 38 सीटें हैं जिनमें अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए कुल मिलाकर 16 सीटें आरक्षित हैं। इन 16 सीटों पर भाजपा की नजर है, इनमें से ज्यादातर पर वह अपनी जीत चाहती है। अभी इनमें से कई सीटों पर कांग्रेस का कब्जा है, कांग्रेस के इन विधायकों के कार्यकाल के रिकार्ड भी खंगाले जा रहे हैं। इस क्षेत्र की महता इसी से समझी जा सकती है कि मंडला, डिंडोरी, सिवनी में गोंडवाना गणतंत्र पार्टी की सक्रियता बढऩे की सुगबुगाहट के बीच भाजपा ने महाकौशल अंचल की अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति सीटों पर ध्यान ज्यादा केंद्रित किया है। पार्टी गोंगपा सहित अन्य दलों की स्थिति का आकलन कर रही है। आदिवासी बेल्ट की सीटों की इस चुनाव में पार्टी की भूमिका अहम मानी जा रही है। सूत्रों बताते हैं कि आदिवासी वोटों को साधने के लिए भाजपा के दिग्गजों ने महाकौशल क्षेत्र में सक्रिय हो गए हैं। वे जीत का अचूक फार्मूला निकालने की कवायद कर रहे हैं। राजनीतिक विशेषज्ञ मंडला में हुए आदिवासी सम्मेलन को भी इसी रणनीति का हिस्सा बता रहे हैं। इसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी शिरकत की थी। उन्होंने आदिवासियों व बैगा समाज को संबोधित किया। नर्मदा सेवा यात्रा के समापन समारोह में शामिल होने भी वे अमरकंटक पहुंचे।
मालवा पर भाजपाई नजर
इसी तरह भाजपा ने मालवा में भी अपना पूरा ध्यान लगाया है। संघ के प्रभाव वाले मालवा को भाजपा का प्रदेश में सबसे मजबूत गढ़ के रूप में जाना जाता है। अब यही इलाका उसके लिए मुसीबत बनता ता रहा है। इसकी वजह है इस इलाके के लोगों में भाजपा सरकार को लेकर लगातार बढ़ता आक्रोश। खास बात यह है प्रदेश में करीब डेढ़ दशक से सत्ता से दूर चल रही कांग्रेस कमजोर हो चुकी है, लेकिन अब वह पूरी ताकत से मैदान मारने की तैयारी में दिखने लगी है। कांग्रेस ने इस इलाके में सेंधमारी शुरू कर दी है, जो सफल होती प्रतीत होने लगी है। यही वजह है कि भाजपा के रणनीतिकारों को लगने लगा है कि समय रहते मालवा को नहीं साधा गया तो मामला काफी गंभीर हो सकता है। भाजपा की चिंता की बड़ी वजह कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की मंदसौर में हुई सभा में जुटी भीड़ और कुछ माह पूर्व हुए नगरीय निकाय चुनावों में कांग्रेस को मिली कामयाबी को भी माना जा रहा है। गौरतलब है कि इस अंचल की 55 में से 48 सीटों पर भाजपा ने जीत हासिल की थी। तब भाजपा और कांग्रेस के बीच वोटों का फासला भी अच्छा खासा था। भाजपा को 49.71 और कांग्रेस को 38.98 फीसदी वोट मिले थे। यानी लगभग 11 फीसदी का अंतर था। इतने जबर्दस्त प्रदर्शन के बाद इस बार यदि यहां के भाजपा नेता डरे हुए हैं तो कुछ वजह तो होगी। राजनीतिक तौर पर चैतन्य माने जाने वाले इस मालवा को सत्ता में पर्याप्त प्रतिनिधित्व न मिल पाना इसकी बड़ी वजह माना जा रहा है। पार्टी को 48 विधायक देने वाले इस अंचल से शिवराज सरकार में महज दो मंत्री है। ये हैं ऊर्जा मंत्री पारस जैन और स्कूल शिक्षा मंत्री दीपक जोशी। अब चुनावी साल में इस क्षेत्र में हुए डैमेज को कंट्रोल करने के लिए पार्टी ने प्रधानमंत्री के हाथों जमकर सौगातों की बरसात कराने की तैयारी की है। वहीं आरएसएस भी पूरी तरह सक्रिय हो गया है।
गोलीकांड से भाजपा को बड़ा नुकसान
मंदसौर गोलीकांड के बाद से किसान सरकार के खिलाफ आक्रोशित हो रहा है। विधानसभा चुनाव में भाजपा को सबसे ज्यादा नुकसान मालवा-निमाड़ में होने की संभावना है। खासकर मंदसौर, रतलाम, नीमच झाबुआ, उज्जैन, इंदौर, बुरहानपुर में भाजपा को बड़ा झटका लग सकता है। वर्तमान में उज्जैन और इंदौर संभाग की 66 विधानसभा सीटों पर भाजपा के पास 56 सीट हैं। उज्जैन संभाग की 29 सीटों में से 28 सीट भाजपा के पास है, सिर्फ मंदसौर जिले में एक सीट कांगे्रस के पास है। किसान आंदोलन वाले जिले रतलाम, मंदसौर और नीमच उज्जैन संभाग में ही आते हैं। किसान आंदोलन की वजह से भाजपा को ज्यादा नुकसान इसी क्षेत्र में होने की संभावना है। इंदौर संभाग की 37 सीटों में से 28 सीट भाजपा के पास हैं। जबकि 9 सीट कांग्रेस एवं 1 निर्दलीय के पास है। इंदौर से मंत्री पद नहीं मिलना, एंटी इंकम्बेंसी का खतरा सबसे ज्यादा इंदौर संभाग में भाजपा को होगा। किसान आंदोलन का असर भी इस क्षेत्र में रहेगा।
आधे मंत्रियों की खिसक रही जमीन
अगले चुनाव में भाजपा यदि शिवराज सरकार के मौजूदा सभी मंत्रियों को चुनाव मैदान में उतारती है तो फिर आधे से ज्यादा मंत्रियों पर हार का खतरा रहेगा। हालांकि, इनमें से 8 से 10 मंत्री चुनाव नहंीं लड़ेंगे। वे अपने रिश्तेदारों के लिए टिकट मांग सकते हैं। जिन मंत्रियों की चुनाव क्षेत्र में पकड़ ढीली हो रही है, उनमें माया सिंह, हर्ष सिंह, सूर्यप्रकाश मीणा की हालत सबसे ज्यादा खराब है। जबकि जयभान सिंह पवैया, ललिता यादव, कुसुम महदेले, शरद जैन, जालम सिंह पटेल, सुरेन्द्र पटवा, गौरीशंकर शेजवार, रामपाल सिंह, बालकृष्ण पाटीदार एवं अंतरसिंह आर्य की परफार्मेंस भी सही नहीं है। इनमें से कुछ मंत्री अपना चुनाव क्षेत्र बदल सकते हें तो कुछ अपने रिश्तेदारों को चुनाव लड़ा सकते हैं।
इन विधानसभा सीटों पर हार का खतरा, कटेंगे टिकट
श्योपुर दुर्गालाल विजय
सुबलगढ़ मेहरबान सिंह रावत
जौरा सूबेदार सिंह रजौधा
भिंड नरेन्द्र सिंह कुशवाह
मेहगांव चौधरी मुकेश सिंह
ग्वालियर (ग्रामीण) भारत सिंह कुशवाह
ग्वालियर (पूर्व) माया सिंह (मंत्री)
गुना पन्नालाल शाक्य
बीना महेश राय
सुरखी पारूल साहू
सागर शैलेन्द्र जैन
बंडा हरवंश राठौर
टीकमगढ़ केके श्रीवास्तव
पृथ्वीपुर अनीता नायक
चंदला आरडी प्रजापति
बिजावर पुष्पेन्द्र नाथ पाठक
मलहरा रेखा यादव
पथरिया लखन पटेल
हटा उमा देवी खटीक
गुनौर महेन्द्र सिंह
रामपुर बघेलान हर्ष सिंह (मंत्री)
सेमरिया नीलम मिश्रा
त्योंथर रमाकांत तिवारी
सिंगरौली रामलल्लू वैश्य
देवसर राजेन्द्र मेश्राम
धौहनी कुंवर सिंह टेकाम
जयसिंह नगर प्रमिला सिंह
जैतपुर जयसिंह मरावी
अनूपपुर रामलाल रौतेल
मानपुर मीना सिंह
बरगी प्रतिभा सिंह
सिहोरा नंदनी मरावी
बिछिया पंडित सिंह धुर्वे
कटंगी केडी देशमुख
गोटेगांव कैलाश जाटव
नरसिंहपुर गोविंद सिंह पटेल
चौरई रमेश दुबे
सौंसर नानाभाऊ मोहोड़
मुलताई केडी देशमुख
घोड़ाडोंगरी मंगलसिंह धुर्वे
सिवनी मालवा सरताज सिंह
पिपरिया ठाकुर दास नागवंशी
उदयपुरा रामकिशन पटेल
विदिशा कल्याण सिंह ठाकुर
शमशाबाद सूर्यप्रकाश मीणा (मंत्री)
बैरसिया विष्णु खत्री
सुसनेर मुरलीधर पाटीदार
शाजापुर अरुण भीमावद
सोनकच्छ राजेन्द्र फूलचद्र वर्मा
बागली चंपालाल देवड़ा
पंधाना योगिता बोरकर
नेपानगर मंजू राजेन्द्र दादू
बड़वाह हितेन्द्र सिंह सोलंकी
जोबट माधो सिंह डावर
सरदारपुर वेलसिंह भूरिया
मनावर रंजना बघेल
धरमपुरी कालू सिंह ठाकुर
बदनावर भंवर सिंह शेखावत
देपालपुर मनोज पटेल
इंदौर 3 ऊषा ठाकुर
महिदपुर बहादुर सिंह चौहान
तराना अनिल फिरोजिया
घट्टिया सतीश मालवीय
उज्जैन दक्षिण मोहन यादव
बडऩगर मुकेश पंडया
सैलाना संगीता चारेल
गरोठ चंदर सिंह सिसौदिया
मनासा कैलाश चावला
इन सीटों पर रहेगी कसमकस
सुमावली नीटू सत्यपाल सिकरवार,
मुरैना रुस्तम सिंह (मंत्री)
ग्वालियर जयभान सिंह पवैया (मंत्री)
सेंवढ़ा प्रदीप अग्रवाल
भांडेर घनश्याम पिरौनिया
पोहरी प्रहलाद भारती
चाचौड़ा ममता मीणा
नरयावली प्रदीप लारिया
निवाड़ी अनिल जैन
छतरपुर ललिता यादव (मंत्री)
पन्ना कुसुम महदेले (मंत्री)
सतना शंकरलाल तिवारी
मैहर नारायण त्रिपाठी
देवतालाब गिरीश गौतम
सीधी केदार शुक्ल
मुड़वारा संदीप जायसवाल
जबलपुर पूर्व अंचल सोनकर
जबलपुर उत्तर शरद जैन (मंत्री)
पनागर सुशील कुमार
निवास रामप्यारे कुलस्ते
वारासिवनी डॉ. योगेन्द्र निर्मल
नरसिंहपुर जालम सिंह पटेल (मंत्री)
छिंदवाड़ा चौधरी चंद्रभान सिंह
भोजपुर सुरेन्द्र पटवा (मंत्री)
संाची गौरीशंकर शेजवार (मंत्री)
सिलवानी रामपाल सिंह (मंत्री)
खरगौन बालकृष्ण पाटीदार (मंत्री)
सेंधवा अंतर सिह आर्य (मंत्री)
पेटलावद निर्मला भूरिया
इंदौर 4 मालिनी गौड़
मंदसौर यशपाल सिंह सिसौदिया
नीमच दिलीप सिंह परिहार
जावद ओमप्रकाश सखलेचा