प्रदेश में बीते डेढ़ दशक से काबिज भाजपा की सरकार भले ही सुशासन व बेहतर आर्थिक हालातों के दावे करे लेकिन स्थिति ठीक इसके उलट हो गई है। सरकार की गलत नितियों के चलते प्रदेश की आर्थिक स्थिति बुरी तरह से चरमरा गई है और खजाना पूरी तरह से खाली हो गया है। सरकार के सामने विकास की योजनाएं संचालन करना तो दूर अपने कर्मचारियों के वेतन के लाले पडऩे की स्थिति बन गई है। सरकार इस वित्तीय वर्ष के पहले महीने से ही कर्ज दर कर्ज लेने को मजबूर हो गई है। प्रदेश में यह स्थिति करीब 15 साल बाद फिर से बनी है। इसके पहले इस तरह कर स्थिति प्रदेश में वर्ष 2003 में बनी थी तब, ओवर-ड्रा हुआ था। इसके बाद स्थिति सुधरी, लेकिन बीते कुछ सालों में लगातार कर्ज लेने के कारण फिर वही परिस्थितियां बन गई हैं। वित्त विभाग के अफसरों ने बीते पखवाड़े ही मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को इसके संकेत दे दिए हैं। इसके बाद से ही तय किया गया है कि अब सरकार पांच माह बाद होने वाले विधानसभा चुनाव के मद्देनजर सिर्फ उन विकास कार्यों को ही जारी रखेगी, जिनसे राजनीतिक हित सधता हो। अगस्त तक प्रदेश में सभी बड़े विकास कार्य बंद होने की संभावना जताई जा रही है। ठेकेदारों का भुगतान भी रुक सकता है और सरकारी कर्मचारियों का वेतन भी एक माह बाद मिलने की स्थिति बन सकती है। सरकार चुनाव के कारण अक्टूबर तक कर्ज की पूरी लिमिट पार करने की तैयारी कर रही है। इससे प्रदेश पंजाब और कश्मीर की राह पर जा सकता है। पंजाब में सरकारी कर्मचारियों को हर माह समय पर वेतन नहीं मिलता है।
– तीन माह में लिया चार हजार करोड़ का कर्ज
सरकार बजट आने के बाद तीन महीने में 4000 करोड़ रुपए का कर्ज ले चुकी है। इस साल दो लाख करोड़ का मुख्य बजट आने के बाद 17 अप्रैल को 2000 करोड़ का कर्ज लिया गया। यानी नए वित्तीय सत्र के महज 17 दिन में। फिर 29 मई और 12 जून को एक-एक हजार करोड़ कर्ज लिया गया। इसके बाद तीन जुलाई को 1000 करोड़ कर्ज उठाना था, लेकिन ब्याज की दर सवा सात प्रतिशत से सवा आठ प्रतिशत होने से सरकार घबरा गई, इसलिए यह कर्ज नहीं उठाया, जो अब ब्याज दर कम होने पर उठाया जाएगा।
अप्रैल में हुआ था खुलासा
सरकार ने अप्रैल में कर्मचारियों को सातवां वेतनमान देना तय किया, लेकिन खजाने में पैसा नहीं था। जीएसटी से पैसा नहीं आया, तब कैश फ्लो से भुगतान तय किया। साथ ही तय किया कि आधा पैसा ही नकद दिया जाएगा। इसके बावजूद कर्मचारियों के एरियर्स का भुगतान नहीं हुआ। सीएम हेल्पलाइन में इसकी शिकायत भी पहुंची।
वित्त विभाग ने दी चेतावनी
आर्थिक आपातकाल का खुलासा 21 जून को सीएम हाउस में आयोजित बैठक में हुआ था। मुख्यमंत्री ने कहा था, संबल योजना के लिए 5000 करोड़ कर्ज ले लो। इस पर वित्त विभाग के अफसरों ने बताया, कर्ज की लिमिट पार हो सकती है। सीएम के पीएस विवेक अग्रवाल ने कहा, लिमिट 26000 करोड़ रुपए है, इसलिए कर्ज ले सकते हैं। तब वित्त के अफसरों ने जवाब दिया था, यह लिमिट 31 मार्च 2019 तक के लिए है। ऐसा हुआ तो वो दिन दूर नहीं जब वेतन भी समय पर नहीं बांट सकेंगे। इसके बाद तय हुआ था कि विकास कार्यों का पैसा दूसरी योजनाओं में लिया जाए। इसके चलते वित्त विभाग के अपर मुख्य सचिव एपी श्रीवास्तव ने दो जुलाई को छुट्टी पर जाने का आवेदन दे दिया था।
अनुपूरक में 6000 करोड़ का इंतजाम नहीं
सरकार जून में 11190 करोड़ का अनुपूरक बजट लाई, लेकिन इंतजाम महज 5000 करोड़ का ही है। इसमें 2000 करोड़ केंद्रीय अनुदान और 3000 करोड़ पुनर्वियोजन से आना बताया है।
कैग ने खोली थी पोल
प्रदेश में ओवर-ड्रा के हालात पहले से हैं। 2018-19 में सकल घरेलू उत्पादन से 3.24 फीसदी तक कर्ज लिया जा सकता है। यानी अधिकतम 26 हजार करोड़ रुपए। सरकार ने 31 मार्च 2018 की स्थिति में 1.60 लाख करोड़ बताया है, लेकिन कैग रिपोर्ट ने 31 मार्च 2017 की स्थिति में 1.83 लाख करोड़ का कर्ज बताया था। सरकार ने इसे 1.35 लाख करोड़ बताया था, जिसे कैग ने खारिज कर दिया।
इस कर्ज को छिपा रही सरकार
सरकार बैलेंस शीट सही दिखाने के लिए ऑफ बजट और गारंटी वाले कर्ज छुपा रही है। मार्कफेड को 5000 करोड़ का ऑफ बजट कर्ज लेने की अनुमति दी है। इसमें सरकार ही गारंटी देती है और वही चुकाती है, लेकिन कर्ज सरकार की दूसरी एजेंसी लेती है। इससे बजट में इस कर्ज का उल्लेख नहीं आता है। इससे पहले विभिन्न विभागों को 5000 करोड़ ऑफ बजट कर्ज की मंजूरी दी गई थी। वहीं, दूसरा गारंटी वाला कर्ज होता है। इसमें सरकार महज गारंटी देती है और कर्ज सरकार की एजेंसी ही लेकर चुकाती है। इसमें 25000 करोड़ से ज्यादा की मंजूरी दी गई है।
कैश फ्लो से पैसा निकाला
सरकार की हालत कैश फ्लो का पैसा दूसरी स्कीम में इस्तेमाल करने से बिगड़ी है। हर महीने औसत पांच से छह हजार करोड़ कैश फ्लो होता है। इसमें 2000 करोड़ वेतन, 1000 करोड़ पेंशन, 1000 करोड़ अध्यापक सवंर्ग और 1000 करोड़ ब्याज के लिए दिए जाते हैं। इस बार इसी में से संबल योजना व अन्य योजनाओं के लिए पैसा दिया गया। इससे कैश फ्लो की स्थिति बिगडऩे की आशंका है। इसका असर कर्मचारियों के वेतन पर भी पड़ सकता है।
विकास कार्य होंगे ठप
नवंबर में विधानसभा चुनाव के कारण कर्ज का पूरा पैसा खर्च करने की मंशा है, इसलिए संबल सहित दूसरी योजनाओं के लिए विकास कार्यों का पैसा लगाया है। अब अगस्त तक बड़े निर्माण कार्यों के भुगतान रोके जा सकते हैं। सरकार की प्राथमिकता में चुनाव से जुड़ी योजनाएं हैं।
इनका कहना है
राज्य में ओवर-ड्रा की स्थिति बन सकती है, लेकिन ऐसा होता है तो उससे उबर जाएंगे। पहले हम प्राथमिकता वाले खर्च ही करेंगे। कर्मचारियों के वेतन में कोई दिक्कत नहीं आने देंगे।
जयंत मलैया, मंत्री, वित्त विभाग
प्रदेश बड़े आर्थिक संकट से जूझ रहा है। अभी ओवर-ड्रा के पहले की वीज एंड मीन्स की स्थिति बनने जा रही है। सीएम मौन तोडक़र प्रदेशवासियों को कर्ज की वास्तविक स्थिति बताएं।
कमलनाथ, अध्यक्ष, कांग्रेस