शिक्षा विभाग पर सनसनीखेज खबर :-सीधी

:सनसनीखेज खबर शिक्षा विभाग सीधी को लेकर:

:मंगल भारत सीधी:-आज हम 21वीं सदी में प्रवेश कर चुके हैं जहां पर हर प्रकार की आधुनिकता दिखाई दे रही है उसी में शिक्षा विभाग भी प्रमुख है जो दो तरह के से हमारे पूरे देश में संचालित हैं शासकीय विद्यालय और प्राइवेट विद्यालय शासकीय विद्यालय शासन के निर्देशानुसार संचालित होती है शासकीय शिक्षकों को के साथ. और रही बात प्राइवेट विद्यालयों की जो सरकार की नीतियों पर ही संचालित होती है पर कुछ समय के लिए नियुक्त किए गए शिक्षकों के साथ. आज हमारा पूरा भारत देश शिक्षा क्षेत्र को लेकर काफी परेशानियों से गुजर रहा है. कहीं बिल्डिंग की कमी है शिक्षा की कमी कहीं भ्रष्टाचार का शिकार हो रहा है. अभी हाल ही में मध्यप्रदेश के सीधी जिले के जिला शिक्षा अधिकारी पारस नाथ शुक्ला को ₹7000 रिश्वत लेते हुए लोकायुक्त टीम रीवा ने रंगे हाथों पकड़ा जो साफ-साफ दर्शाता है कि हमारे शिक्षा क्षेत्र में बैठे जिलाधिकारी किसने किस नियत से कार्य कर रहे हैं जहां सरकारों को अच्छा खासा वेतनमान देती है सारी व्यवस्थाएं देती हैं लेकिन उसके बाद भी ऐसे मामले प्रतिदिन सामने आ रहे हैं जो कि काफी गंभीर विषय हैं.

दिनांक 6 दिनांक 6 जुलाई 2018 दिन शुक्रवार सीधी जिले के जिला शिक्षा अधिकारी पारस नाथ शुक्ल ने क्या कभी सोचा था कि उनको यह भी दिन देखना पड़ेगा सुबह 7:30 बजे प्राइवेट विद्यालय सिमरिया संचालक द्वारा ₹7000 रिश्वत के तौर पर उन्हें  दी गई प्राइवेट विद्यालय की मान्यता के रूप में पर पारसनाथ भूल गए कि जो जैसा बता है वैसा ही काटता है उसी समय लोकायुक्त की टीम की दबिश की गई उनके घर में और उनको ₹7000 लेते हुए रंगे हाथों पकड़ा गया. पर बात यहीं तक नहीं रुकती जो यह खेल चल रहा था जिले स्तर से विकास खंड स्तर तक इसके पीछे कौन-कौन हैं जिसके चलते इस तरह के खेल को बढ़ावा दिया जा रहा था. प्रश्न उठता है और गंभीर प्रश्न भी बनता है. सवाल तो तब गंभीर होता है जब जिला शिक्षा अधिकारी पारसनाथ द्वारा 151 स्कूलों की मान्यता समाप्त करने का आदेश दिया जाता है फिर यह कहा जाता है कि मान्यता निरस्त नहीं की गई है मान्यता वापस ली गई है जहां से चालू होता है पारसनाथ शुक्ला के साथ मिले हुए अधिकारियों का गोरखधंधा. जो साफ-साफ प्रदर्शित करता है लोकायुक्त की टीम की कार्यवाही का. इसमें साफ-साफ ही अभी प्रदर्शित होता है कि विकासखंड से लेकर जिले स्तर के बड़े से बड़े अधिकारी इस खेल में शामिल थे बराबर के हिस्सेदार भी थे. जिले के वरिष्ठ अधिकारियों के नाक के नीचे ऐसा खेल चलता रहा और उन को कानो कान खबर नहीं हुई यह क्या था मिलीभगत थी या फिर कुछ और. लेकिन जिला प्रशासन मूर्ख बनकर बैठा रहा. ऐसा खेल कब तक चलता रहेगा इस पर जिला प्रशासन पर आश्रित शालाओं के संचालकों के ऊपर हो रहे अन्याय को रोकना होगा. जिससे संचालकों द्वारा संचालित विद्यालयों को निश्चित होकर पठन पाठन का कार्य कराया जा सके. अगर जिला प्रशासन को कोई कार्यवाही करनी है तो मान्यता नवीनीकरण में करें. क्योंकि नवीन सत्र 2018.2019 अप्रैल माह से ही संचालित हो चुका है. जिस कारण संचालकों द्वारा बच्चों के प्रवेश  प्रक्रिया अप्रैल में ही पूरी कर चुकी है. अगर जिला प्रशासन द्वारा सही निर्णय नहीं लिया गया तो बच्चों का भविष्य खराब हो जाएगा. और विद्यालय में कार्य कर रहे कर्मचारी बेरोजगार हो जाएंगे.  इसलिए जिला प्रशासन को उचित मापदंड देकर समय अवधि बढ़ानी चाहिए.