दलित व आदिवासी वोट बैंक को साधने संघ मैदान में

सरकार की नीतियों से खफा चल रहे दलितों व आदिवासियों के बीच अब बहुजन समाज पार्टी भी पूरी ताकत के साथ चुनाव मैदान में उतरने को तैयार दिख रही है। जिसकी वजह से भाजपा व उसके चुनावी रणनीतिकारों की इन दिनों मुश्किलें बढ़ी हुई हैं। चुनावी साल में सरकार अजा व अजाज वर्ग की नाराजगी दूर करने के लिए तमाम असफल प्रयास भी कर रही है। इस स्थिति से निपटने के लिए अब संघ ने भाजपा के पक्ष में मोर्चा संहाल लिया है। जिसके तहत तय किया गया है कि भाजपा के चुनावी फायदे के लिए अब राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) व उससे जुड़े संगठन मिलकर सामाजिक समरसता का माहौल बनाने का काम करेंगे। संघ का एक बड़ा तबका चाहता है कि अनुसूचित जाति या जनजाति (आदिवासी वर्ग) के नेताओं को ज्यादा तवज्जो दी जाए, ताकि इस वर्ग का झुकाव भाजपा के पक्ष में बना रहे। गौरतलब है कि संघ से मिले फीडबैक के बाद भाजपा अब तक अनुसूचित जाति और जनजाति की दो बड़ी बैठकें कर चुका है। जबलपुर में हुई एक गोपनीय बैठक में सारे आदिवासी नेताओं को बुलाया गया था। इसमें तय किया गया कि अजा-अजजा वोट बैंक को पूरी तरह भाजपा के साथ जोड़ा जाए इसके लिए सभी इलाकों में संघ और बाकी संगठन माहौल बनाएंगे।
आरक्षण को लेकर बढ़ी दूरियां
मप्र हाईकोर्ट द्वारा पदोन्नति में आरक्षण खत्म किए जाने के बाद से प्रदेश में दलित-आदिवासी और सवर्णों के बीच गहरी खाई बन गई है। फिर सुप्रीम कोर्ट द्वारा एससी-एसटी उत्पीडऩ अधिनियम में जांच के बिना आरोपितों की गिरफ्तारी पर रोक लगाए जाने से दलित नाराज हो गए और 22 अप्रैल को देशभर में उपद्रव किया जिसमें सिर्फ मप्र में 8 लोग मारे गए थे। आदिवासी और दलित वर्ग इन मुद्दों पर भाजपा को जिम्मेदार मान रहे हैं।
समरसता पर खास जोर
इन दिनों भाजपा के लिए सबसे बड़ी चिंता का विषय आदिवासी और दलितों की पार्टी में बढ़ती दूरी है। संघ ने इस बारे में सवाल भी किया कि जब समरसता का माहौल बिगड़ रहा था तब हमारे नेता और संगठन क्या कर रहे थे। संगठनों ने इसे रोकने के लिए क्या प्रयास किए। ऐसे तमाम सवाल अनुसूचित जाति-जनजाति मोर्चे और इन वर्गों के बीच काम करने वाले संगठनों से किए गए हैं।
जनआशीर्वाद यात्रा भी ले जाएंगे
दोनों वर्गों का भरोसा फिर से कैसे जीता जाए इस बात संघ और भाजपा नेताओं ने लंबी कवायद के बाद ये तय किया है कि जनआशीर्वाद यात्रा को भी इन इलाकों में ले जाना है और लोग भले ही कम मिलें पर उनके साथ संवाद जरूर हो। पार्टी ने साफतौर पर स्वीकार किया कि इन वर्गों को जोडऩे की कोशिश नहीं की गई तो ये भाजपा से छिटक कर दूसरे दलों में जा सकते हैं। इससे भाजपा को 2018 लोस चुनाव में भारी नुकसान हो सकता है।