प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने में अब महज चंद माह रह गए हैं, लेकिन भारतीय जनता पार्टी प्रदेश में अब तक चुनाव समिति का गठन नहीं कर सकी है। जिसकी वजह से टिकट के दावेदार परेशान हैं। भाजपा नेता टिकट की दावेदारी करने भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश मुख्यालय में आकर निराश होकर लौटने को मजबूर हैं। दावेदारों के सामने संकट यह है कि वे अपनी दावेदारी किसके सामने करे। नेताओं का मानना है कि समिति के गठन में सगंठन जितनी देर करेगा उतना ही कम समय टिकट पर विचार करने के लिए समिति को मिलेगा। उनकी दूसरी चिंता यह भी है कि कहीं पार्टी सिर्फ सर्वे के आधार पर ही टिकट का फैसला न कर ले। खास बात यह है कि कांग्रेस में टिकट के लिए छानबीन समिति का न सिर्फ गठन हो गया है, बल्कि समिति ने अपना काम भी शुरू कर दिया है। कांग्रेस में समिति द्वारा टिकट के दावेदारों की छंटनी का काम भी बड़े स्तर पर हो गया है। इसके उलट अभी भाजपा में प्रत्याशी चयन के लिए और मौजूदा विधायक का परफॉरमेंस जानने के लिए सर्वे का काम ही चल रहा है। भाजपा का अभी चौथा सर्वे चल रहा है। इसे लेकर टिकट के दावेदार परेशान हैं। उनके लिए सर्वे के तमाम तरह की गाइडलाइन बनाई गई है, लेकिन संगठन ने अब तक प्रदेश चुनाव समिति और अनुशासन समिति का गठन तक नहीं किया है। दरअसल पार्टी की बैठक में राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रभात झा द्वारा रखे गए प्रस्ताव पर पुरानी सभी समितियों को भंग कर दिया गया था।
पुरानी समिति में यह नेता थे शामिल
पुरानी चुनाव समिति में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, सुहास भगत, प्रभात झा, नंदकुमार सिंह चौहान, थावरचंद गेहलोत, सत्यनारायण जटिया, विक्रम वर्मा, फग्गन सिंह कुलस्ते, रामकृष्ण कुसमरिया, भूपेन्द्र सिंह, राजेंद्र शुक्ला सहित कई सदस्य थे। पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रभात झा कहते है कि चुनाव समिति तो पुरानी ही रहेगी, लेकिन पार्टी संविधान में प्रदेशाध्यक्ष को उसमे संशोधन का अधिकार होता है।
अनुशासन समिति का भी अभाव
पार्टी सूत्रों के मुताबिक पिछले दिनों भोपाल की पार्षद मनफूल मीणा के पति श्याम मीणा द्वारा विधायक रामेश्वर शर्मा के साथ दुव्र्यव्हार किया गया था। इसके बाद पार्टी ने मीणा को निलंबित कर दिया, लेकिन उसके मामले की विधिवत सुनवाई के लिए पार्टी अनुशासन समिति ही नहीं है। पार्टी नेताओं का माना है कि अब चुनाव से पहले पार्टी में टिकट बांटने की प्रक्रिया को लेकर दावेदारों के बीच जोर आजमाइश होगी। इसके लिए जरूरी है कि अनुशासन समिति हो।