प्रदेश सरकार व उसके मुखिया भले ही प्रदेश में भ्रष्टाचार के मामलों में जीरो टालरेंस की नीति का कितना ही दावा करें, लेकिन हालात इसके पूरी तरह से उलट है। लोकायुक्त द्वारा बीते सालों में करीब दो सौ तीस मामलों में की गई कार्रवाही के मामले लंबे समय से न्यायालय में सिर्फ इसलिए नहीं जा पा रहे क्योंकि राज्य सरकार इन मामलों में अभियोजन की स्वीकृति नहीं दे रही है। इस स्वीकृति के लिए बार-बार पत्र लिखे जाने के बाद भी सरकार व उसके अफसरों की इस मामले में नींद नहीं खुल रही है, लिहाजा अब मजबूरन लोकायुक्त संगठन को इस मामले में सरकार को हाईकोर्ट में जाने की चेतावनी देनी पड़ी है। लोकायुक्त ने इसके लिए सरकारी महकमों को तीन महीने का अल्टीमेटम दिया है। इसके बाद सभी प्रकरण हाईकोर्ट के सामने रखे जाएंगे। यही नहीं लोकायुक्त ने सरकार व उसके अफसरों की अनदेखी से परेशान होकर तय किया गया है कि अब शिकायत मिलने के बाद दस्तावेज हासिल करने के लिए जांच एजेंसी सरकार के भरोसे नहीं रहेगी। इसके लिए एक तय सीमा के बाद दस्तावेज जब्ती की कार्रवाई की जाएगी। लोकायुक्त के इस कड़े रुख के बाद से विभागों में हडक़ंप की स्थिति बन गई है। सूत्रों के अनुसार लोकायुक्त संगठन ने 230 प्रकरणों की जांच पूरी कर ली है। इनमें प्रशासनिक सेवा के अफसर से लेकर निचले स्तर के कर्मचारी आरोपी हैं। चालान पेश करने के लिए सरकार की अनुमति नहीं मिलने से ये प्रकरण कोर्ट में नहीं जा पा रहे हैं। कई मामले तो ऐसे हैं, जिनमें जांच में दोषी पाए गए अफसर सेवानिवृत तक हो चुके हैं। लोकायुक्त ने लंबित प्रकरणों की समीक्षा के लिए अधिकारियों को तलब कर पूछा, अभियोजन की मंजूरी देने में उन्हें दिक्कत क्या है। लोकायुक्त ने उनके तर्कों से असहमत होकर तीन माह की मोहलत दी है।
राजस्व विभाग अव्वल
लोकायुक्त के लंबित प्रकरणों में राजस्व विभाग पहले नंबर पर है। विभाग के 71 प्रकरणों की जांच पूरी हो चुकी है, लेकिन सरकार से मुकदमा चलाने की अनुमति नहीं मिली है। सामान्य प्रशासन विभाग और पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के 26-26 मामले लंबित हैं। लोकायुक्त ने 23 विभागों के अभियोजन स्वीकृति के अटके 230 प्रकरणों की सूची सरकार को भेजी है।
चुप नहीं रहेगा लोकायुक्त
शिकायत मिलने पर लोकायुक्त जांच और रिकॉर्ड उपलब्ध कराने के लिए मामले विभागों को भेज देता है। सरकार इन्हें लंबा खींचती रहती है। अब लोकायुक्त इस पर चुप नहीं बैठेगा। विभागों के समय पर रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं कराने पर छापे व तलाशी की कार्रवाई कर रिकॉर्ड जब्त करेगा।
भोपाल नगर निगम के फ्यूल घोटाले की फाइलों की जब्ती के साथ इसकी कार्रवाई शुरू कर दी है। बताया गया है कि लोकायुक्त की ओर से भेजे ऐसे 170 मामले सरकार की फाइलों में दबे पड़े हैं।