बच्चियों के लिए शेल्टर होम या हॉरर होम!

पहले बिहार का मुजफ्फरपुर और फिर उत्तर प्रदेश का देवरिया… बच्चियों के लिए जैसे जीना तक दूभर हो गया था। फिर भी जिये जा रही थीं। घर-परिवार से मजबूती तो थी नहीं, सरकार ने संरक्षण का भरोसा दिया लेकिन वादाखिलाफी की। शेल्टर होम में इन बच्चियों के साथ जो हुआ, वह निंदनीय है। कई बच्चियों का तो सिस्टम पर से भरोसा ही उठ गया है। एक के बाद एक, दो मामलों ने राज्यों ही नहीं बल्कि केंद्र स्तर पर भी योजना को सवालों से घेर लिया है…

लेखक :-मनीष द्विवेदी मंगल भारत.

मुजफ्फरपुर और देवरिया के शेल्टर होम्स की घटनाओं ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया है। बालिका गृह लड़कियों की सुरक्षा के लिए बनाई जाती है। ऐसी लड़कियां जिनका कोई नहीं होता, जिनके पास रहने के लिए कोई आसरा नहीं होता। ऐसी दीन-हीन और गरीब परिवारों की लड़कियों को इन शेल्टर होम्स में रखा जाता है ताकि वे पढ़-लिखकर अपने सपनों को पूरा कर सकें। अपने उम्मीदों को पंख लगा सकें और अपना भविष्य सुरक्षित कर सकें।
शेल्टर होम बनाने का एक लक्ष्य यह भी होता है कि उनकी अस्मत पर किसी तरह की कोई आंच न आए। लेकिन बिहार के मुजफ्फरपुर और उत्तर प्रदेश के देवरिया के शेल्टर होम्स से जो घिनौनी बातें सामने आई हैं वे रोंगटे खड़े कर देने वाली हैं। हम पहले बात करते हैं मुजफ्फरपुर के शेल्टर होम की। यहां शेल्टर होम की 42 लड़कियों में से 34 के साथ रेप हुआ। यहां लड़कियों की अस्मत ही नहीं लूटी गई बल्कि उन्हें यातनाएं दी गईं। पीडि़त लड़कियों की दर्द भरी दास्तां जो मीडिया में आई हैं, वह भयावह हैं। शेल्टर होम की आड़ में लड़कियों से जिस्मफरोशी का धंधा कराया गया। ना-नुकुर करने पर उन पर जुल्म ढाया गया। लड़कियों को नशे का टैबलेट खिलाकर उनके साथ रेप किया गया। यहां तक कि सात साल की मासूम लड़कियों के साथ भी हैवानियत की गई। मामला सामने आने के बाद शेल्टर होम का संचालक ब्रजेश ठाकुर गिरफ्तार हो चुका है। इस कांड में उसका साथ देने वाले उसके 10 साथी भी सलाखों के पीछे पहुंच चुके हैं। सीबीआई मामले की जांच जुट गई है। इस घटना के बाद नीतीश कुमार बैकफुट पर हैं। वह दोषियों को कड़ी से कड़ी सजा देने की बात कह चुके हैं। लेकिन क्या इतने भर से सरकार की जिम्मेदारी पूरी हो जाएगी। सवाल तो सरकार पर भी उठेंगे क्योंकि टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज (टीआईएसएस) ने गत मई में ही अपनी रिपोर्ट बिहार के समाज कल्याण विभाग को भेज दी थी। टीआईएसएस ने अपनी रिपोर्ट में शेल्टर होम में लड़कियों के साथ यौन प्रताडऩा होने की बात कही थी। इसके बाद कार्रवाई क्यों नहीं हुई। स्थानीय प्रशासन और पुलिस के नाक के नीचे शेल्टर होम में गंदा खेल कैसे चल रहा था?
मुजफ्फरपुर शेल्टर होम में लड़कियों के साथ हुई दरिंदगी पर देश का गुस्सा अभी शांत भी नहीं हुआ था कि देवरिया के बालिका सुधार गृह की घटना ने लोगों को हिलाकर रख दिया है। देवरिया के मां विन्ध्यवासिनी बालिका गृह से लड़कियों को बाहर भेजने की बात सामने आई है। इस बालिका गृह से पुलिस को 24 लड़कियों को छुड़ाना पड़ा जबकि 18 लड़कियां अभी भी लापता बताई जा रही हैं। यह बालिका गृह अवैध तरीके से चल रहा था और इसकी अनियमितता को लेकर सरकार सीबीआई जांच करा रही थी। जांच को लेकर इस शेल्टर होम को सरकार से पैसा मिलना भी बंद हो गया था। यही नहीं संस्था की मान्यता 2017 में ही रद्द हो गई थी। आरोप है कि संस्था की संचालिका गिरिजा त्रिपाठी जबरन शेल्टर होम को चला रही थी। मामला सामने आने पर पुलिस ने संचालिका के पति मोहन त्रिपाठी और उनकी बेटी को गिरफ्तार कर लिया है। हैरान करने वाली बात यह है कि मां विन्ध्यवासिनी बालिका गृह के काले कारनामे से पर्दा तब उठा जब संचालिका के चंगुल से बचकर एक दस वर्षीय लडक़ी पुलिस के पास पहुंची। लडक़ी ने पुलिस को अपनी आपबीती और बालिका गृह की असलियत बताई। लडक़ी ने बताया कि बड़ी मैम एक दीदी को कभी लाल गाड़ी, कभी काली तो कभी सफेद गाड़ी में बाहर भेजती थीं। जब अगली सुबह दीदी आती थी तो केवल रोती थी। लडक़ी की इन बातों से साफ है कि बालिका गृह की लड़कियों के साथ कैसा सलूक किया जा रहा था और उनसे कैसे काम कराए जाते थे। लडक़ी की शिकायत पर पुलिस ने कार्रवाई की और बालिका गृह पर छापा मारा और वहां से 24 लड़कियों को छुड़ाया। अभी भी 18 लड़कियां कहां हैं इस बारे में कोई जानकारी नहीं है।
सवाल है कि 2017 में जब शेल्टर होम की मान्यता रद्द कर दी गई थी तो यह शेल्टर होम चल कैसे रहा था। मान्यता रद्द होने के बाद लड़कियों को दूसरी जगह शिफ्ट क्यों नहीं किया गया। बालिका गृह में लड़कियों के साथ अगर कुछ गलत हो रहा था तो स्थानीय प्रशासन, पुलिस और लोगों को इसकी भनक क्यों नहीं लगी। सवाल कई हैं जिनके जवाब अभी फिलहाल मिलते नहीं दिख रहे हैं। शेल्टर होम में रहने वाली नाबालिग लड़कियां कमजोर और गरीब परिवारों से होती हैं। उन्हें जब यहां लाया गया होगा तो उनमें सुरक्षा की भावना पैदा हुई होगी। उन्होंने एक सुंदर भविष्य का सपना देखा होगा। कुछ बनने और कुछ कर गुजरने का ख्वाब पिरोया होगा लेकिन अब उनके दिलो-दिमाग पर जो गुजर रही होगी उसके बारे में कल्पना की जा सकती है। शेल्टर होम्स में यातना के जिस अंतहीन दौर से वे गुजरी हैं, जो दर्द और पीड़ा उन्होंने सही है, जो घाव उनके मन में बना है…क्या वह इतनी आसानी से दूर हो पाएगा। इतनी जिंदगियों को तबाह और बर्बाद करने वाले कों क्या इतनी कड़ी सजा नहीं मिलनी चाहिए कि वह एक मिसाल बने। इन दोनों राज्यों की घटनाओं लोगों के मन संदेह पैदा कर दिया है कि क्या देश भर में चलने वाले विधवा, महिला और बालिका सुधार गृह क्या सुरक्षित हैं। अब जरूरत है कि देश भर के शेल्टर होम्स की सोशल ऑडिट की जाए जैसा कि दिल्ली महिला आयोग ने किया है। दिल्ली महिला आयोग ने राजधानी में चलने वाले अपने सभी शेल्टर होम्स की सोशल ऑडिट करने के लिए विशेषज्ञों की एक टीम गठित की है जो तीन महीने में अपनी रिपोर्ट देगी।
मंत्री तक पहुंची सीबीआई की जांच, देना पड़ा इस्तीफा खंगाले जा रहे हैं फोन कॉल्स के डिटेल
बिहार के मुजफ्फरपुर में एक शेल्टार होम में लड़कियों के साथ हुई दरिंदगी की जांच अब सीबीआई के पास है। सीबीआई ने मामले की जांच शुरू भी कर दी है, जिसमें बिहार सरकार में मंत्री मंजू वर्मा के पति चंद्रेश्वर वर्मा का नाम भी सामने आ रहा है। हालांकि, मंत्री ने सभी आरोपों को नकारा है, पर जांच एजेंसी इससे जुड़े सभी डिटेल्स खंगाल रही है। मंजू वर्मा ने दबाव में आकर इस्तीफा दे दिया है लेकिन कहा जा रहा है कि भाजपा उसका बचाव कर रही है। सूत्रों के अनुसार, सीबीआई को इस संबंध में कई दस्तोवेज मिले हैं, जो चंद्रेश्वर वर्मा और मामले के मुख्यी आरोपी ब्रजेश ठाकुर के बीच संबंध होने की ओर इशारा करते हैं। बिहार सरकार में पूर्व समाज कल्याण मंत्री मंजू वर्मा के पति चंद्रेश्वर वर्मा को जब भी कहीं आना-जाना होता था, ठाकुर का ट्रैवल एजेंट ही उनके लिए टिकट और अन्य व्यमवस्थाएं करता था। सीबीआई इस मामले में और अधिक जानकारी हासिल करने के लिए उनके फोन कॉल्स डिटेल भी खंगाल रही है। सीबीआई मामले में एक अन्य मुख्य आरोपी मधु पर भी आत्मसमर्पण करने के लिए दबाव बढ़ा रही है, जो इस कांड का खुलासा होने के बाद से फरार है। माना जा रहा है कि पूरे मामले में वह ब्रजेश ठाकुर की समान भागीदार है। जांच एजेंसी के सूत्रों का कहना है कि किसी भी वक्त उसकी गिरफ्तारी हो सकती है। यहां उल्लेखनीय है कि मामले का खुलासा होने के बाद ही इसमें बिहार सरकार की मंत्री मंजू वर्मा के पति का नाम सामने आया था। विपक्ष लगातार उनके इस्तीफे की मांग कर रहा था। हालांकि, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने यह कहते हुए उनका बचाव किया था कि अभी मामले की जांच सीबीआई कर रही है और जब तक जांच रिपोर्ट नहीं आ जाती, किसी को भी व्यक्तिगत तौर पर निशाना नहीं बनाया जाना चाहिए। उन्होंने जोर देकर कहा कि अगर इस मामले में मंत्री की किसी भी तरह की संलिप्ततता पाई जाती है तो वह उन्हें बख्शेंगे नहीं।
यातना-घर बनते जा रहे हैं शेल्टर होम
सरकार विभिन्न संस्थाओं द्वारा चलाए जा रहे इन बालिका गृहों को पैसा तो दे रही है लेकिन इनके काम की निगरानी कर पाने में विफल रही है। बालिका संरक्षण गृहों में लड़कियों के यौन शोषण की हिला देने वाली दास्तानें एक के बाद एक सामने आ रही हैं। एनजीओ की आड़ में चलने वाले इन सेक्स रैकेट के संचालक समाज के रसूखदार और दबंग थे। बिहार के मुजफ्फरपुर में जिस शेल्टर होम में चल रहे रैकेट का पर्दाफाश हुआ उसका मुख्य अभियुक्त पीआईबी से मान्यता प्राप्त पत्रकार बताया गया है। हैरानी है कि तमाम कानूनों, एजेंसियों, बाल सुधार अभियानों, संस्थाओं और आयोगों के अलावा पुलिस और सरकार की विशाल मशीनरी हाथ पर हाथ धरे ही बैठी रहती, अगर टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ सोशल साइंसेस (टिस) के छात्रों का एक अध्ययन दल बिहार न पहुंचता और वहां बाल संरक्षण में काम कर रहे एनजीओ का सोशल ऑडिट न करता। पिछले साल अगस्त में नीतीश कुमार सरकार ने ये काम टिस को सौंपा था। इस साल अप्रैल में टिस अध्ययन दल ने जो रिपोर्ट बिहार सरकार को सौंपी उसमें छह शॉर्ट स्टे होम्स में और 14 शेल्टरों में बाल यौन उत्पीडऩ के मामले बताए गए थे। बिहार सरकार एनजीओ की मदद से 110 शेल्टर होम या संरक्षण गृह चलाती है। दुनिया की कुल बाल आबादी में 19 फीसदी बच्चे भारत में हैं। देश की एक-तिहाई आबादी में, 18 साल से कम उम्र के करीब 44 करोड़ बच्चे हैं। सरकार के ही एक आकलन के मुताबिक 17 करोड़ यानी करीब 40 प्रतिशत बच्चे अनाश्रित, वल्नरेबल हैं जो विपरीत हालात में किसी तरह बसर कर रहे हैं। सामाजिक-आर्थिक और भौगोलिक तौर पर वंचित और उत्पीडि़त बच्चों के अधिकारों की बहाली और उनके जीवन, शिक्षा, खान-पान और रहन-सहन पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है। महिला और बाल कल्याण के लिए 1966 में बना राष्ट्रीय जन-सहयोग और बाल विकास संस्थान, एनआईपीसीसीडी बच्चों और महिलाओं के समग्र विकास के लिए काम करता है। बच्चों पर यौन अपराधों को रोकने के लिए पोक्सो कानून 2012 में लाया गया। 2014 में जुवेनाइल जस्टिस (केयर ऐंड प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन) बिल लाया गया। जेजे एक्ट 2000 में बना था, 2006 और 2011 में दो बार इसमे संशोधन किए गए। जहां तक बाल कल्याण नीतियों की बात है तो समन्वित बाल सुरक्षा योजना, आईसीपीएस चलाई जा रही है। जिसका आखिरी आंकड़ा 2014 तक का है जिसके मुताबिक 317 स्पेशलाइज्ड एडॉप्शन एजेंसियां (एसएए) और अलग अलग तरह के 1501 होम्स के लिए 329 करोड़ रुपए आवंटित किए गए और 91,769 बच्चों को इनका लाभ प्राप्त हुआ। आईसीपीएस के तहत ही देश के ढाई सौ से ज्यादा जिलों में चाइल्डलाइन सेवाएं चलाई जा रही हैं। बच्चों के उत्पीडऩ और उनकी मुश्किलों का हल करने का दावा इस सेवा के माध्यम से किया जा रहा है लेकिन लगता नहीं कि मुजफ्फरपुर या देवरिया में बच्चियों की चीखें इन चाइल्डलाइन्स तक पहुंच पाई हों। 2007 में विधायी संस्था के रूप में गठित, नेशनल कमीशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड राइट्स (एनसीपीसीआर) के एक आंकड़े के मुताबिक भारत में इस समय 1300 गैर-पंजीकृत चाइल्ड केयर संस्थान (सीसीआई) हैं यानी वे जुवेनाइल जस्टिस एक्ट के तहत रजिस्टर नहीं किए गए हैं। देश में कुल 5,850 सीसीआई हैं। और कुल संख्या 8,000 के पार बताई जाती है। सभी सीसीआई में करीब दो लाख तैंतीस हजार बच्चे रखे गए हैं। पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने देश में चलाए जा रहे समस्त सीसीआई को रजिस्टर कराने का आदेश दिया था। लेकिन सवाल पंजीकरण का ही नहीं है। पंजीकृत तो कोई एनजीओ करा ही लेगा क्योंकि उसे फंड या ग्रांट भी लेना है, लेकिन कोई पंजीकृत संस्था कैसा काम कर रही है इस पर निरंतर निगरानी की व्यवस्था तो रखनी ही होगी। डिजिटाइजेशन पर जोर के बावजूद सरकार अपने संस्थानों और अपने संरक्षण में चल रहे संस्थानों की कार्यप्रणाली और कार्यक्षमता की निगरानी का कोई अचूक सिस्टम विकसित नहीं कर पा रही है।