ठाकुरों की लड़ाई में जीत का जिम्मा पिछड़ों पर

सूबे के उच्च शिक्ष मंत्री जयभान सिंह पवैया की वजह से ग्वालियर सीट पर इस बार सभी की निगाहें लगी हुई है। पवैया के मंत्री होने के बाद भी इस सीट के कई मुहल्ले अब भी गर्मी आते बूंद -बूंद पानी को तरसने लगते हैं। चुनावी मौसम में यहां नेता आते हैं और पानी के बड़े -बड़े वादे करते हैं। लेकिन समय के साथ यह वादे वादे ही रह जाते हैं और लोग गर्मी आते ही फिर पानी के संघर्ष में उलझ कर रह जाते हैं। यहां के निवासियों को हर साल यह वादे ही हाथ लगते हैं। जो चुनाव होने के बाद पूरी तरह से सूखे में बदल जाते हैं। ग्वालियर विस क्षेत्र में घूमिए तो मोहल्लों कालोनियों, सडक़ों-गलियों के नाम भी तेवर और तासीर बता देते हैं। पेचीदा जातीय समीकरणों में उलझी इस सीट पर सर्वाधिक प्रभावशाली क्षत्रिय समाज है। इस

वर्ग के यहां 51 हजार से अधिक मतदाता हैं। बीते चुनाव में यहां इस वर्ग के मत कांग्रेस व भाजपा में आधे-आधे बंट गए थे। अब परिस्थिति बदल गई है जिसकी वजह से इस बार ऐसा होता मुश्किल दिख रहा है। यही नहीं इस बार दोनों ही प्रमुख दलों से क्षत्रिय वर्ग का प्रत्याशी होने से कोली, कुशवाह और ब्राह्मण यहां निर्णायक स्थिति में आ गए हैं। एट्रोसिटी एक्ट के मुद्दे का असर वोटरों से बातचीत में साफ महसूस किया जा सकता है। इसका नुकसान भाजपा और कांगे्रस दोनों को हो सकता है। बीते चुनाव में यहां पर कुशवाह, कल्चुरी, किरार समाज का 60 प्रतिशत वोट पवैया को मिला था। इस बार ऐसा होता नहीं दिख रहा है। अब्दुल हमीद बताते हैं कि इस बार अलग माहौल है। हम ऊबे हुए हैं। हमारी सुनने वाला तो कोई हो?
एक और अहम धड़ा इस बार हार जीत के बीच खड़ा है। उम्मीदवार का नामांकन निरस्त हो जाने से बसपा मैदान में नहीं है। ऐसे में इसके लोटिंग वोट अहम हो गए हैं। कोली समाज से महेश कोली, मांझी समाज से हरपाल बाथम और राठौर समाज से आशा राठौर के उतरने से इस वोट बैंक में बिखराव हो सकता है।इनमें से आशा और महेश भाजपा के बागी हैं। दूसरी ओर भाजपा और कांगे्रस की नजर इन्हें अपने पाले में करने पर लगी है। राठौर समाज भाजपा की ओर झुका दिखता है, जबकि मांझी समाज दोनों में बंटता रहा है। डेढ़ दशक से यहां कोई महिला उम्मीदवार मैदान में नहीं उतर रही थी। इस बार दो महिलाएं चुनाव लड़ रही हैं।
ताकत कमजोरी
जयभान सिंह पवैया-भाजपा
आक्रामक तेवर। क्षत्रिय समाज में पकड़, बोलने की कला, विवादों से दूर रहने की कोशिश। व्यक्तिगत राजनीति, अवैध कालोनी और मिल मजदूरों के मुद्दे पर लोगों में असंतोष
प्रद्युम्न सिंह, कांगे्रस
हारने के बाद भी सक्रियता। सिंधिया समर्थक, जुझारू, सहज, उपलब्धता। आपराधिक तत्वों से मेलजोल के आरोप, कार्यकर्ताओं में जोश कम।
15 साल से ये रहे विधायक
2013 जयभान सिंह पवैया, भाजपा
2008 प्रद्युम्न सिंह तोमर, कांगे्रस
2003 नरेंद्र सिंह तोमर, भाजपा
विस प्रोफाइल-
मतदाता-276918
पुुरुष- 149817
महिला- 127090
कुल मतदान केंद्र-312
कुल प्रत्याशी- 21
जातिगत समीकरण
क्षत्रिय-51400
ब्राहमण-17500
कुशवाहा- 17050
मुस्लिम- 16500
कोरी- 17000
जाटव, बाथम- 22250
प्रजापति- 8500