मंगल भारत भोपाल. कमलनाथ के मुख्यमंत्री बनने का फैसला कांग्रेस विधायक दल की 12 दिसंबर को हुई पहली बैठक में ही हो गया था। केंद्रीय पर्यवेक्षक एके एंटोनी और भंवर जितेंद्र सिंह ने एक-एक विधायक से चर्चा कर मुख्यमंत्री के नाम पर वोटिंग कराई थी। उनसे पूछा गया था कि कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया में से वे किसे मुख्यमंत्री बनाना चाहते हैं। विधायक अपनी-अपनी पसंद का नाम एंटोनी को चुपचाप बताते गए। आखिर में जब वोटों की गिनती की गई तो कमलनाथ को 92 और सिंधिया के पक्ष में 22 वोट पड़े थे। इस तरह सीएम का निर्णय 12 तारीख को ही हो गया था।
एंटोनी ने विधायकों के बाद कमलनाथ, ज्योतिरादित्य सिंधिया, दिग्विजय सिंह, अरुण यादव और सुरेश पचौरी से भी अलग-अलग बातचीत कर रायशुमारी की थी। वहीं मौके पर मौजूद न होने के कारण पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह से फोन पर मुख्यमंत्री के लिए दो में से एक नाम पूछा गया। कमलनाथ को सीएम के पद तक पहुंचाने में दिग्विजय सिंह की भूमिका बेहद अहम रही।
दिग्विजय, अजय सिंह, पचौरी, अरुण यादव और भूरिया एक खेमे में आ गए और उनके समर्थक विधायकों ने कमलनाथ के नाम पर वोट किया। विधायक दल की बैठक में ही सर्वसम्मति से कमलनाथ का नाम तय हो चुका था, लेकिन परंपरा का हवाला देते हुए विधायक आरिफ अकील ने प्रस्ताव रखा कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी मुख्यमंत्री के नाम पर मुहर लगाएंगे।
आगे ऐसे चला पूरा घटनाक्रम
सिर्फ 22 वोट मिलने के बाद सिंधिया अपनी दावेदारी के लिए तेजी से सक्रिय हो गए। उन्होंने पहले एंटोनी के सामने मंशा जाहिर की। फिर राहुल गांधी से फोन पर चर्चा की। इसके बाद राहुल ने दोनों नेताओं को दिल्ली बुला लिया। सिंधिया और कमलनाथ ने राहुल को अपने समर्थक विधायकों के बारे में विस्तार से बताया। शाम को राहुल ने दिग्विजय से फोन पर चर्चा की, जिसके बाद उन्होंने अजय सिंह से एकांत में मंथन किया और फिर सिंह की राहुल से भी बात कराई। इस दौरान अरुण यादव की भी राहुल से बात हुई। इन तीनों ने कमलनाथ के नाम की ही सिफारिश करते हुए कहा कि उनके साथ सौ विधायकों का समर्थन है। फिर सिंधिया ने भी कमलनाथ को समर्थन देकर अपने कदम पीछे खींच लिए।