भोपाल/मनीष द्विवेदी/मंगल भारत। मप्र सरकार की
प्राथमिकता में महिला रक्षा और सम्मान है। लेकिन इसके बावजुद प्रदेश में महिलाओं के खिलाफ अपराध तो बढ़ ही रहे हैं, साथ ही पुलिस की कमजोर विवेचना के कारण 72 फीसदी आरोपी बच निकलते हैं। शायद यही वजह है कि प्रदेश में महिलाओं के प्रति घटने वाले अपराधों में कमी नहीं आ रही है।
प्रदेश में अपराधों की बढ़ती संख्या को देखते हुए सरकार ने भोपाल और इंदौर में कमिश्नर प्रणाली लागू कर दी है। वहीं अन्य जिलों में सख्ती बरतने को कहा है। लेकिन इससे महिला अपराधों में कमी आएगी इसकी संभावना कम है। इसकी वजह यह है कि पुलिस महिला अपराधों के प्रति संवेदनशील नहीं रहती है। यही कारण है कि हर साल दर्ज होने वाले कुल महिला अपराधों में पुलिस की पुअर विवेचना के कारण कोर्ट में औसतन 28 प्रतिशत प्रकरणों में ही आरोपियों को सजा मिली। वहीं 19 माह में एससी-एसटी पर अत्याचार के 16,297 प्रकरण दर्ज हुए हैं। इनमें 29,973 आरोपी बनाए गए लेकिन आज भी 2800 से ज्यादा आरोपी पुलिस के हाथ नहीं आ सके हैं।
36 प्रकरणों में 39 आरोपियों को फांसी की सजा
गृह विभाग के रिकॉर्ड बताते हैं कि वर्ष 2018 से 2021 के बीच प्रदेश में महिला अपराधों के कुल 21,395 प्रकरण कोर्ट में लंबित हैं। हालांकि 36 प्रकरणों में 39 आरोपियों को फांसी की सजा सुनाई गई है। वहीं 1 अप्रैल 2020 से 30 नवम्बर 2021 के बीच प्रदेश में अनुसूचित जाति और जनजाति वर्ग पर अत्याचार के 16,297 प्रकरण दर्ज हुए। इनमें 29,373 आरोपियों को गिरफ्तार किया गया। जबकि 2,857 आरोपी आज भी पुलिस के हाथ नहीं लगे हैं। यही कारण है कि कोर्ट में चालान पेश करने में देर हो रही है।
विभाग के रिकार्ड के अनुसार दर्ज अपराधों में 1,546 मामलों में चालान प्रस्तुत नहीं किए जा सके हैं। हालांकि एडीजी अजाक राजेश गुप्ता का कहना है कि एट्रोसिटी के मामलों में पुलिस बेहद संवेदनशीलता से कार्रवाई करती है। अनुसूचित जातियों के खिलाफ अपराध की दर 2020-21 में महज 3.1 प्रतिशत की दर से बढ़ी है, जोकि आबादी के ढाई प्रतिशत बढ़ने की दर के परिप्रेक्ष्य में सामान्य है। एट्रोसिटी के मामलों में अपराधियों के खिलाफ त्वरित कार्रवाई होकर सजाएं भी हो रही हैं।
2019 में सबसे अधिक को सजा
पिछले सात साल के महिला अपराधों का आंकलन करें तो वर्ष 2019 में सबसे अधिक आरोपियों को सजा दी गई है। 2019 में 29.39 फीसदी अपराधियों को सजा दी गई है। आंकड़ों के अनुसार 2015 में 27.16 फीसदी, 2016 में 27.34 फीसदी, 2017 में 26.98 फीसदी, 2018 में 23.15 फीसदी, 2019 में 29.39 फीसदी, 2020 में 26.10 फीसदी 2021 में 28.29 फीसदी अपराधियों को ही सजा दी गई। पूर्व मुख्य सचिव निर्मला बुच का कहना है कि प्रदेश में एससी-एसटी और महिलाओं पर हो रहे अत्याचार तथा अपराधों के दर्ज होने के बाद बहुत जरूरी है कि विवेचना पूरी ईमानदारी से हो। कोर्ट में जब चालान प्रस्तुत किया जाता है तो इसका ध्यान रखा जाए कि अभियोजन मजबूत हो। सुपरविजन भी ठीक होना जरूरी है।