भोपाल/मंगल भारत।मनीष द्विवेदी। आत्मनिर्भर मप्र
अभियान के तहत सरकार की कोशिश है की सभी वर्ग को ऐसे कार्य से जोड़ा जाए जिससे वे आत्मनिर्भर हो सकें। इसी कड़ी में इन दिनों प्रदेश के कई जिलों में महिलाएं फ्लाइएश (ताप विद्युत केंद्रों की राख) से ईंट बनाकर बेच रही हैं। इसको देखते हुए सरकार ने निर्णय लिया है कि अब प्रदेश की पंचायतों में होने वाले निर्माण कार्य महिलाओं द्वारा बनाई गई ईंटों से ही किया जाएगा। साथ ही प्रदेशभर में फ्लाइएश से ईंट बनाने की इकाईंयां भी खोली जाएंगी।
गौरतलब है की इन दिनों सरकार का सबसे अधिक फोकस महिला सशक्तिकरण पर है। इस दिशा में सरकार ने अभिनव प्रयास करते हुए महिलाओं को रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने के लिए बैतूल, खंडवा, सागर, सीधी, सिंगरौली जिलों में फ्लाइएश से ईंट बनाने की नौ इकाई शुरू की हैं। स्व-सहायता समूह द्वारा संचालित इकाईयों में बनने वाली ईंटों का इस्तेमाल ग्राम पंचायत स्तर पर निर्माण कार्यों में किया जा रहा है। इसके अलावा महिलाएं बाजार में भी ईंटें बेच सकती हैं। ईंट उत्पादन से जुड़ी महिलाओं को प्रतिदिन दो से तीन सौ रुपए की आमदनी होने भी लगी है।
पांच जिलों में बनाई जा रही ईंट
प्रदेश में वर्तमान समय में पांच जिलों में फ्लाइएश से ईंट बनाई जा रही है और जल्द ही सिवनी, नरसिंहपुर, शहडोल और उमरिया जिले में भी 10 इकाई शुरू होने वाली हैं। 23 स्व-सहायता समूह की महिलाएं ईंट बना रही हैं और उन्हें काम मिलता रहे, इसका जिम्मा सरकार ने संभाला है। संबंधित जिलों और क्षेत्रों में सरकारी निर्माण कार्यों में पंचायत विभाग ने ईंट लेना अनिवार्य किया है। जिससे ऑर्डर मिलने लगे हैं। राज्य आजीविका मिशन के प्रबंध संचालक एमएल बेलवाल कहते हैं कि फ्लाइएश ईंट के कई फायदे हैं। अव्वल तो ताप विद्युत केंद्रों से निकलने वाली राख का उपयोग हो रहा है। ईंट के खरीदार भी मिल रहे हैं। इसलिए चुनिंदा जिलों में नई इकाई जल्द शुरू करेंगे।
दीवार पर प्लास्टर की जरूरत नहीं
गौरतलब है कि कारखानों से निकलने वाली राख से यह ईंट बनती है, जो मिट्टी की ईंट की तुलना में ज्यादा फायदेमंद है। सबसे बड़ा फायदा इस ईंट की दीवार पर प्लास्टर की जरूरत नहीं होती। यह कम पानी सोखती है, इसलिए दीवार में रिसाव नहीं होता। इससे पुट्टी और कलर खराब नहीं होता। ढुलाई में दो प्रतिशत टूट फूट होती है। जबकि मिट्टी की ईंट 10 से 15 प्रतिशत टूटती हैं। यह ईंट तापरोधी भी होती है। इससे बने घर में गर्मी कम लगती है।
ईंट की लागत ढाई रुपए
सिंगरौली जिले से शुरू हुआ फ्लाइएश से ईंट बनाने का काम अब तेजी से बढ़ता जा रहा है। ईंट निर्माण इकाई के सदस्य बताते हैं कि ईंट की लागत ढाई रुपए है और वह चार से पांच रुपए में बिक जाती है। यानी एक हजार ईंट पर डेढ़ से ढाई हजार रुपए मिल जाते हैं। उल्लेखनीय है कि हाथ से संचालित इकाई 80 हजार और स्वचलित साढ़े पांच लाख रुपए में लग जाती है। महिलाओं ने इकाई स्थापना के लिए संकुल स्तरीय संगठन से कर्ज लिया है, जो वह चार से पांच साल में लौटाएंगी। फिलहाल हर इकाई से दो हजार ईंट बनाए जा रहे हैं।