भोपाल/मंगल भारत।मनीष द्विवेदी। प्रदेश में एक बार फिर से जिला सहकारी बैंकों की कमान अध्यक्ष संभालेंगे। क्योंकि जिला सहकारी बैंकों में प्रशासकों की नियुक्ति को उच्च न्यायालय ने निरस्त कर दिया है। इसके साथ ही पूर्व की व्यवस्था बहाल हो गई है। इस संबंध में न्यायालय ने 16 फरवरी को आदेश जारी कर दिया है। भोपाल में संतोष मीना ने उच्च न्यायालय के आदेश के बाद जिला सहकारी बैंक के अध्यक्ष का कार्यभार ग्रहण कर लिया है।
दरअसल, 14 फरवरी 2019 को बोर्ड भंग कर तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने प्रशासकों की नियुक्ति कर दी थी। इस निर्णय के विरोध में को-आॅपरेटिव बैंक अध्यक्ष व सदस्यों ने उच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी। इस पर तीन साल बाद न्यायालय ने निर्णय दिया है। इसके बाद प्रदेश के रायसेन, सागर, नरसिंहपुर भोपाल सहित 11 जिलों में पुराने बोर्ड बहाल हो गए हैं। भोपाल को-आॅपरेटिव बैंक के अध्यक्ष संतोष मीना ने बताया कि तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने सदस्यों को अपात्र कर दिया था। बोर्ड को भंग करने के पहले सुनवाई का मौका भी नहीं दिया गया था। उच्च न्यायालय ने इसे आधार मानते हुए बोर्ड के पक्ष में फैसला दिया है।
प्रदेश में सहकारी संस्थाओं की स्थिति बद से बदतर होती जा रही है। इसका कारण प्राथमिक सहकारी संस्थाओं से लेकर शीर्ष सहकारी संस्थाओं में चुने हुए प्रतिनिधियों का न होना है। मध्यप्रदेश शायद देश का पहला ऐसा राज्य होगा, जहां दस साल से प्राथमिक सहकारी संस्थाओं के चुनाव नहीं हुए। इसी कारण राष्ट्रीय स्तर की सभी सहकारी संस्थाओं में भी मध्यप्रदेश का प्रतिनिधित्व लगभग समाप्त हो गया है। सहकारी संस्थाओं के चुनाव को लेकर सरकार को भी कोई जल्दी नहीं है। इस कारण लगभग डेढ़ वर्ष से चुनाव अधिकारी का पद खाली पड़ा है।
बढ़ाते गए प्रशासक का कार्यकाल
सहकारी बैंकों के चुनाव दो साल से लंबित चल रहे हैं। लेकिन इस पर सरकार निर्णय ही नहीं ले पा रही है। सहकारी कानून में सहकारी बैंक के संचालक मंडल का कार्यकाल खत्म होने के बाद चुनाव न होने में सरकार छह-छह माह कर एक साल के लिए ही प्रशासक रख सकती है। इसके विपरीत 38 जिला सहकारी केंद्रीय बैंकों में से 37 में प्रशासक पदस्थ हैं। इनमें ज्यादातर को चार साल हो रहे हैं। यही स्थिति सहकारी समितियों की भी है। प्रदेश में 38 जिला सहकारी बैंक हैं। इनमें से मात्र छतरपुर में ही बोर्ड है। शेष 37 जिलों के सहकारी बैंकों में प्रशासक नियुक्त हैं। अपेक्स बैंक में ही 2014 से संचालक मंडल नहीं है और कमान प्रशासक के हाथ में ही है। मप्र सहकारिता अधिनियम के अनुसार सहकारी समिति में दो साल से ज्यादा प्रशासक को नहीं रखा जा सकता है। इसके बावजूद कई समितियों में दो साल से अधिक समय से संचालक मंडल नहीं है। बताया जा रहा है कि उच्च न्यायालय ने आदेश में कहा है कि सरकार चाहे तो समितियों में नई नियुक्तियां कर सकती है। इसके बाद अब गेंद सरकार के पाले में आ गई है। इस मामले में सरकार जल्द कोई निर्णय ले सकती है। साथ ही चुनाव के रास्ते भी खुल गए हैं।
2012 के बाद नहीं हुए समितियों के चुनाव
प्रदेश की 4 हजार से अधिक प्राथमिक सहकारी समितियों के चुनाव नहीं हो रहें। यहां प्रशासक काम देख रहे हैं। चुनाव वर्ष 2012 के बाद नहीं हुए। अधिकांश सहकारी समितियों का कार्यकाल मार्च 2018 में खत्म हो चुका है। वहां पहले अध्यक्ष या उपाध्यक्ष को ही कमान सौंप दी गई थी। विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस ने इस पर आपत्ति दर्ज कराई थी। इसके बाद सहकारिता विभाग ने अपने प्रशासक नियुक्त कर दिये थे। पहले विधानसभा और फिर लोकसभा चुनाव के चलते चुनाव नहीं हो सके। बाद में चुनाव कराने की जगह प्रशासकों कार्यकाल ही बढ़ता चला गया।