सरकार ऐसे मामलों में बेहद सख्त रुख अपनाने जा रही है भोपाल/अपूर्व चतुर्वेदी/बिच्छू डॉट कॉम। बीते कुछ दिनों से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भ्रष्टाचार के मामले में बेहद रौद्र रुख दिखा रहे है। शायद यही वजह है कि अफसरों को न चाहते हुए भी ऐसे मामलों में कार्रवाई करनी पड़ रही है। लंबे समय बाद यह देखने में आया है कि भ्रष्टाचार के मामले में किसी अफसर को सेवा से बर्खास्त किया गया हो। सरकार ने बीते रोज उच्च शिक्षा विभाग के ओएसडी संजय जैन को बर्खास्त कर दिया है। करीब दो माह पहले उनका एक आडियो वायरल हुआ था, जिसके बाद जांच के आदेश दिए गए थे। खास बात यह है कि जैन के मामले में विभागीय जांच दो माह में ही पूरी कर ली गई, जिसके बाद ही उनकी बर्खास्तगी कर दी गई है। जिस तरह से जैन के खिलाफ कार्रवाई की गई, उससे लग रहा है कि सरकार ऐसे मामलों में बेहद सख्त रुख अपनाने जा रही है। शायद यही वजह है कि हाल ही में एक माह में 75 मामलों में 119 शासकीय सेवकों के खिलाफ अभियोजन की स्वीकृतियां प्रदान की गई हैं। अब सीएमओ खुद रखेगा भ्रष्टों की कार्रवाई पर नजर प्रदेश में भ्रष्ट अफसरों की फाइलों से जल्द ही धूल हटने वाली है। इसकी वजह है भ्रष्टाचार में फंसे अधिकारियों-कर्मचारियों के अभियोजन के मामलों को अब खुद मुख्यमंत्री सचिवालय देखेगा। गौरतलब है की प्रदेश में भ्रष्ट अफसरों के खिलाफ लोकायुक्त और ईओडब्ल्यू में एफआईआर दर्ज है, लेकिन इन अफसरों के खिलाफ पिछले कई सालों से अभियोजन की मंजूरी ही नहीं दी गई है। मुख्यमंत्री सचिवालय के इस कदम से जहां भ्रष्टाचार के मामले में फंसे अफसरों की चिंताएं बढ़ गई हैं, वहीं लोकायुक्त और ईओडब्ल्यू के अफसरों को उम्मीद है की अब जल्द ही अभियोजन की स्वीकृति मिल जाएगी। उल्लेखनीय है कि विधानसभा बजट सत्र में नेता प्रतिपक्ष डा. गोविंद सिंह ने सरकार पर अनियमितता के दोषियों को बचाने के लिए अभियोजन की स्वीकृति न देने का आरोप लगाया था। इसके बाद सीएम शिवराज सिंह चौहान ने इसकी समीक्षा शुरू की तो विभागों से स्वीकृतियां मिलने में तेजी आने लगी है। अभी लोकायुक्त में दर्ज लगभग सवा दो सौ और ईओडब्ल्यू के 90 प्रकरणों में अभियोजन की स्वीकृति लंबित है। इसके अलावा सीबीआई व अन्य जांच एजेंसियों के मामले लंबित भी हैं। अब एक जगह से सभी की निगरानी हो सकेगी। अकेले लोकायुक्त संगठन में लगभग 25 और ईओडब्ल्यू में 10 आईएएस, आईपीएस और आईएफएस अधिकारियों के विरुद्ध अभियोजन की स्वीकृति लंबित है। कई अधिकारी अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर स्वीकृति नहीं मिलने देते। यही कारण है कि 10 वर्ष से भी ज्यादा कुछ पुराने मामलों में स्वीकृति नहीं मिली है। स्थिति यह है कि 24 विभागों के 90 कर्मचारियों के खिलाफ ईओडब्ल्यू में एफआईआर दर्ज है, सरकार ने इन अफसरों के खिलाफ पिछले कई सालों से अभियोजन की मंजूरी ही नहीं दी है। इनमें से कुछ तो ऐसे हैं जिनके खिलाफ 2017 में मामला दर्ज हुआ, मप्र में 2 बार सरकार बदल गई, इन अफसरों का कुछ नहीं बिगड़ा। आपको ये भी जानकर बड़ी हैरानी होगी कि मप्र में 2021 में सरकारी अधिकारी और कर्मचारियों के भ्रष्टाचार में पकड़े जाने के मामले साल 2020 के मुकाबले 65 फीसदी तक बढ़ गए, पूरे साल की भ्रष्टाचारी सलाखों के पीछे नहीं पहुंचा जबकि इनमें से 200 सरकारी अधिकारी और कर्मचारी तो रिश्वत लेते पकड़े गए थे। महिला अफसर का भी हो चुका है ऑडियो वायरल ग्वालियर शहर में परिवहन विभाग की महिला अधिकारी का ऑडियो वायरल हुआ था। जिसमें मौके पर तैनात महिला अधिकारी डंपर चालक से रिश्वत की डील करती सुनाई दे रही हंै। महिला अधिकारी आडियो में कह रही है कि 5000 रुपये लगेंगे, रसीद नहीं मिलेगी और एंट्री होगी महीने की। यहां तक की महिला अधिकारी आडियो में मुख्यमंत्री की बात करते हुए यह कह रही हैं कि सीएम साहब आने वाले हैं, अपन से जितनी गाडिय़ों की लिस्ट मांगी है, उसमें इस गाड़ी का नंबर दे देंगे। अधिकारी के साथ एक और किरदार है, यह मोबाइल पर यह पूरी डील कर रहा है, उसकी बातचीत सुनते हुए ही वह मैडम का जिक्र कर रहा है, पास में खड़ी मैडम यह सब बोल रही हैं। इसके बाद भी इस मामले में कोई कार्रवाई नहीं हुई । इसी तरह से कुछ सालों पहले एक वीडियो भी जमकर वायरल हुआ था। वह कथित वीडियो एक अतिरिक्त मुख्य सचिव स्तर के अफसर का बताया गया था। वायरल हो रहे वीडियो में अफसर अपने से आधी उम्र की युवती के साथ हमबिस्तर दिखाई दे रहे हैं। वीडियो एक मकान के अंदर का है। इसे कब और किसने रिकॉर्ड किया था, यह तो पता नही है, लेकिन इस मामले में भी अफसर के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई थी। घूस लेते पकडऩे पर भी हो गए पदोन्नत प्रदेश में कई ऐसे अफसर भी हैं जो रिश्वत लेते पकड़े जाने के बाद अब भी मैदानी स्तर पर मलाईदार जगहों पर पदस्थ हंै। इनमें से कई को उनके विभाग के आला अफसरों ने ऐसे जगह पदस्थ कर दिया है, जिसे अघोषित रूप से पदोन्नति माना जाता है। ऐसे कई केस हैं, जो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की बात को कमजोर कर रहे हैं। ऐसा ही उदाहरण है तत्कालीन एएसपी अनिता मालवीय और धर्मेंद्र छबई का है। उन पर कई साल पहले रेलवे थाना प्रभारी ने घूस मांगने का आरोप लगाया था। लोकायुक्त ने केस भी दर्ज किया। कोर्ट के आदेश के बाद रीइन्वेस्टिगेशन जारी है, लेकिन इस बीच अनिता और धर्मेन्द्र पदोन्नत होकर आईपीएस बन गए ।इसी तरह से उमरिया जिले के बिरसिंहपुर पाली में पदस्थ एसडीएम नीलांबर मिश्रा व सुरक्षा गार्ड चंद्रभान सिंह को 24 जुलाई 2019 को क्रेशर संचालन के बदले रिश्वत लेते लोकायुक्त रीवा की टीम ने पकड़ा था।

भोपाल/मनीष द्विवेदी।मंगल भारत। भले ही मप्र गेंहू उत्पादन


के मामले में कई सालों से देश में शीर्ष स्थान पर चल रहा है, जिसके चलते प्रदेश को कृषि क्षेत्र का प्रतिष्ठित कृषि कर्मण पुरस्कार भी कई सालों तक लगातार मिला है। इसके बाद भी विदेशी कृषि तकनीकी का अध्ययन करने विलायत भेजे जाने वाले किसानों को बीते पांच सालों से मौका नहीं दिया जा रहा है। यह हाल तब है जबकि मप्र उत्पादन और उत्पादकता के मामले में देश के पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों के बीच जाकर खड़ा हो चुका है। यही वजह है कि मप्र की कृषि क्षेत्र में हासिल उपलब्धियों को केंद्र सरकार द्वारा भी समय-समय पर सराहा जा चुका है। यही वजह है कि कृषि क्षेत्र में आ रहीं नई तकनीकों व उसकी लागत कम करने का अध्ययन करने के लिए प्रदेश की शिवराज सरकार द्वारा किसानों को विदेश भेजा जाने लगा था , लेकिन बीते पांच सालों से प्रदेश के किसी भी किसान को विदेश जाने का मौका ही नहीं दिया जा रहा है।
यह बात अलग है कि अब तक जो किसान विदेशों में खेती के अध्ययन के नाम पर भेजे गए , उनमें से कितनों ने विदेश तकनीक का फायदा उठाया यह न तो सरकार को मालूम है और न ही अफसरों को। गौरतलब है कि प्रदेश के किसान मामूली खर्चे पर सरकार की मेहरबानी से विलायत घूम आते थे , लेकिन अब इस योजना पर पूरी तरह से अमल बंद सा हो गया है। दरअसल प्रदेश में जब कमलनाथ की सरकार बनी तो इस योजना पर प्रतिबंध लगा दिया गया था, लेकिन डेढ़ साल बाद ही उनकी जगह भाजपा की सरकार बन गई , जिसके बाद से माना जा रहा था कि एक बार फिर सरकार प्रतिबंध हटाकर किसानों को विलायत जाने का मौका देगी, लेकिन अब तक ऐसा कुछ भी नहीं हुआ।
इसलिए शुरू की गई थी योजना
यह योजना प्रदेश के प्रगतिशील किसानों के लिए शुरू की गई थी। वे किसान जो कि कृषि उत्पादकता के मामले में अपने गांव, कस्बा और जिले में रोल मॉडल बने हुए हैं, जिन्होंने उत्पादकता के नए मापदंड तय किए हैं, जिससे कि खेती करना उनके लिए बेहद मुनाफे का सौदा साबित हुआ है। ऐसे किसानों को देश के दूसरे राज्यों के प्रगतिशील किसानों के साथ ही वहां अपनाए जा रही आधुनिक तकनीक से रूबरू कराने के लिए उनके भ्रमण की योजना तैयार की गई थी । जिसे अध्ययन यात्रा का नाम दिया गया था। इस तरह जिले के कुछ चुनिंदा प्रगतिशील किसानों को दुनिया भर में कृषि क्षेत्र में हो रहे नवाचार और वहां अपनाई जा रही नई तकनीक से अवगत कराने के लिए विदेश यात्रा की भी योजना बनाई गई थी। योजना लागू होने के कुछ साल तक तो किसानों को इस योजना का फायदा मिला। जिसके तहत उन्हें यूरोपीय देशों के अलावा ब्राजील, अर्जेंटीना आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड तक जाने का मौका मिला। हद तो यह रही कि भले ही सामरिक मामलों में भारत और चीन के रिश्तों में कड़वाहट बनी हुई हो लेकिन जब एशिया के देशों में मप्र के किसानों को स्टडी टूर पर भेजने की बारी आई तो सबसे ज्यादा प्रदेश के किसान चीन ही भेजे गए। इसके अलावा इजराइल भी स्टडी टूर के लिए पसंदीदा देश बना रहा।