पुलिस सीख रही साइन लैंग्वेज.
2010 बैच के आईपीएस अधिकारी राजेश सिंह चंदेल जिस जिले में पदस्थ रहे हैं वहां , उनके नवाचार चर्चा में रहे हैं। वर्तमान में साहब ग्वालियर जैसे महानगर में एसएसपी हैं। यहां साहब ने एक ऐसा नवाचार किया है जिसको प्रशासनिक मुख्यालय में भी सराहा जा रहा है। दरअसल, साहब की पहल पर जिले में पुलिस साइन लैंग्वेज सीख रही है। थानों में कई बार मूकबधिर पीडि़ताएं आती हैं। पुलिस इनकी पीड़ा समझ नहीं पाती, इसके चलते साइन लैंग्वेज एक्सपर्ट को बचाना होता है। कई बार साइन लैंग्वेज एक्सपर्ट न मिलने पर पुलिस पीड़िताओं की बात ही नहीं समझ पाती। यही वजह है कि अब महिला पुलिसकर्मी साइन लैंग्वेज भी सीख रही हैं। साहब ने महिला पुलिस अधिकारियों एवं ऊर्जा डेस्क के स्टाफ को निर्देशित किया है, थाने में आने वाली महिला फरियादिया से बात करने से लेकर उसकी पूरी बात समझने के लिए पुलिसिंग टेक्निकल स्किल्स को बढ़ाया जाए। इसी के चलते यह ट्रेनिंग करवाई जा रही है।
…और मिल गया आसरा
मालवा के सबसे बड़े जिले इंदौर के कलेक्टर डॉ. इलैयाराजा टी अपनी प्रशासनिक कार्यकुशलता के लिए ख्यात तो हैं ही, साथ ही अपनी सहृदयता के लिए भी खूब चर्चा बटोर रहे हैं। 2009 बैच के आईएएस अधिकारी जब से जिले के कलेक्टर बने हैं। यहां के लोगों की समस्याओं का त्वरित समाधान हो रहा है। इस कारण कलेक्टोरेट की जनसुनवाई में भीड़ भी उमड़ रही है। गतदिनों बड़ी उम्मीद के साथ जनसुनवाई में 15 साल की एक लडक़ी अपने छोटे भाई के साथ पहुंची। उसने साहब को अपनी व्यथा बताते हुए कहा कि माता-पिता का निधन हो जाने के बाद से हम दोनों इधर-उधर की ठोंकरे खा रहे हैं। सर, हमें रहने के लिए हॉस्टल दिला दें। लडक़ी की पीड़ा सुन कलेक्टर ने तुरंत फोन पर संबंधित अधिकारी से चर्चा कर हॉस्टल में रहने का इंतजाम कराया। साथ ही स्कूल में भी दाखिला कराया। इसके बाद दोनों बच्चे कलेक्टर को थैंक्यू बोल खुशी-खुशी लौट गए।
पहले कलेक्टर जो मोहल्ले में पहुंचे
हमेशा अपनी कार्यशैली के लिए चर्चित रहने वाले 2012 बैच के आईएएस अधिकारी नीरज कुमार सिंह एक बार फिर चर्चा में हैं। साहब वर्तमान में नर्मदापुरम में कलेक्टर हैं। साहब क्षेत्र में बाल श्रम रोकने एवं बाल शिक्षा को बढ़ावा देने नवाचार करते रहते हैं। इसी सिलसिले में गत दिनों साहब एसपी के साथ एक मोहल्ले में बच्चों की शिक्षा की स्थिति के बारे में पता करने पहुंच गए। मौके पर क्षेत्र के कई ऐसे बच्चे भी मिले , जिन्होंने कभी स्कूल ही नहीं देखा, न स्कूल में पढ़ाई की। कलेक्टर ने ऐसे बच्चों को स्कूल ले जाकर उनका एडमिशन कराया। जिस पर बच्चों के परिजनों ने कलेक्टर का आभार भी व्यक्त किया है। स्थानीय लोगों का कहना है कि आज तक कोई अधिकारी हमारे मोहल्ले में नहीं पहुंचा है। आप पहले अधिकारी है जो उनके क्षेत्र में पहुंचे हैं।
बेबस को मिला सहारा
गतदिनों सोशल मीडिया पर एक फोटो वायरल हुआ तो लोग उसे देखकर भावुक हुए और भूल गए। इस फोटो में एक बेबस मां अपनी दो बच्चियों के साथ आग उगलती सडक़ पर खड़ी है। बच्चों के पांव में चप्पल तक नहीं है, पैर में पन्नी बांधी हुई है। लेकिन श्योपुर कलेक्टर शिवम वर्मा ने इस वायरल फोटो को गंभीरता से लिया और अफसरों से इसकी पड़ताल कराई। अफसरों ने फोटो की पड़ताल की तो वह उसी जिले के बेबस परिवार के निकले, जहां के साहब कलेक्टर हैं। फिर क्या था साहब लाव-लश्कर के साथ बेबस परिवार के घर पहुंच गए। उन्होंने परिवार की व्यथा सुनी। फिर अफसरों को निर्देश दिया की महिला के बीमार पति का समुचित इलाज कराया जाए और परिवार को आर्थिक सहायता भी दिए जाने के निर्देश दिए। इस परिवार को सहारिया आदिवासियों को मिलने वाली सुविधाएं भी मुहैया कराई गई।
अब कुर्सी पर बैठेंगे आवेदक
2014 बैच की महिला आईएएस अधिकारी सलोनी सिडाना जब से आदिवासी जिले मंडला की कलेक्टर बनी हैं, वहां लोगों को हर सरकारी सुविधाएं मुहैया कराई जा रही हैं। इसी कड़ी में मैडम ने व्यवस्था की है की मंगलवार को होने वाली जनसुनवाई में अब आवेदक खड़े नहीं रहेंगे। इसके बाद से उन्हें बैठने के लिए कुर्सी मुहैया कराई जा रही है। दरअसल हाल ही में जिला स्तरीय जनसुनवाई में कलेक्टर ने लोगों की समस्याएं सुनी। इसी दौरान अपनी समस्या लेकर पहुंची एक महिला चक्कर आने से गिर गई। जिसे तत्काल सीएमएचओ के वाहन से अस्पताल पहुंचाया गया। वहीं घटना के बाद कलेक्टर ने जनसुनवाई के लिए पंजीयन कराने वाले आवेदकों व आवेदन देने के लिए इंतजार करने वाले लोगों के लिए कुर्सी की व्यवस्था कराई। ताकि पंखा के नीचे गर्मी से राहत पाते हुए अपनी बारी का इंतजार कर सकें। इसके बाद सभी आवेदकों की समस्याएं भी अधिकारियों ने अपने बगल में कुर्सी पर बिठा कर सुनी।