भोपाल/मंगल भारत।मनीष द्विवेदी। मप्र में कांग्रेस के कुछ नेता
ऐसे हैं जिनके द्वारा अपने क्षेत्रों को व्यक्तिगत रुप से अभेद गढ़ बनाया जा चुका है। यही वजह है कि भाजपा के पक्ष में अब तक जितनी भी लहरें चलीं, लेकिन उनके गढ़ों को कभी प्रभावित नहीं कर सकी हैं। इनमें ग्वालियर-चंबल के तहत पांच नेताओं के ऐसे ही गढ़ हैं। अब अंचल में कांग्रेस के इन पंच प्यारों के गढ़ों को भेदने के लिए खुद देश में चुनावी चाणक्य कहे जाने वाले अमित शाह ने चक्रव्यूह तैयार करने की योजना बनाई है। कांग्रेस के यह वे पंच प्यारे हैं, जिन्हें भाजपा के दिग्गज नेताओं द्वारा भी टस से मस नहीं किया जा सका है। यही वजह है कि भाजपा का इन पांच सीटों पर जीत का सपना अब तक पूरा नहीं हो सका है।
सूबे की सत्ता में करीब तीन दशक से मुख्यमंत्री बने हुए शिवराज सिंह चौहान को पार्टी का प्रदेश में ऐसा कामयाब चेहरा माना जाता है, जो अपनी ही दम पर विधानसभा से लेकर लोकसभा तक का चुनाव जिताने की क्षमता रखते हैं। वे अपनी इस क्षमता का पार्टी को कई बार अनुभव भी करा चुके हैं। इसके बाद भी उन्हें कांग्रेस के इन पंच प्यारों के सामने हार मानने पर मजबूर होना पड़ा है। यही वजह है कि वे जो एकमात्र विधानसभा का चुनाव हारे हैं, वह भी इन पांच में से एक गढ़ में। दरअसल पार्टी ने 2003 की उमा लहर में शिवराज दिग्विजय सिंह का राघौगढ़ का गढ़ फतह करने के लिए मैदान में उतारा था, लेकिन तब वे दिग्विजय सिंह के सामने जीत हासिल करने में नाकाम रहे थे। गुना जिले की राघौगढ़ विधानसभा सीट पर अब तक जीत पाने की लालसा भाजपा की पूरी नहीं हो सकी है। राघोगढ़ से 1990 और 1993 में लक्ष्मण सिंह, 98 और 2003 में दिग्विजय सिंह, 2008 में कांग्रेस के मूल सिंह और इसके बाद 2013 और 2018 में जयवर्धन सिंह जीते हैं। यही नहीं इस सीट के तहत निकाय और पंचायतों तक के चुनाव में भी कांग्रेस को ही विजय श्री मिलती आ रही है। इसी तरह से दूसरी सीट है भिंड जिले की लहार। इस सीट पर भी कांग्रेस लगातार 33 सालों से विजय हासिल करती आ रही है। यहां से लगातार डॉ. गोविंद सिंह जीत रहे हैं। सिंह ने लहार सीट पर 1990 की राम लहर, 2003 की उमा लहर, 2008 की शिवराज लहर और 2013 की शिवराज- मोदी लहर के बावजूद जीत दर्ज की है। वे 1990 से 2018 तक के सभी 7 विधानसभा चुनाव जीते हैं। तीसरी सीट है शिवपुरी जिले की पिछोर।
यहां से कांग्रेस के केपी सिंह बीते तीन दशक से जीत रहे हैं। वे पिछले 6 चुनाव से लगातार विधायक निर्वाचित हो रहे हैं। भाजपा द्वारा कड़ी मशक्कत करने के बाद भी इस सीट पर जीत का सपना अधूरा ही बना हुआ है। केपी सिंह को हराने के लिए भाजपा द्वारा उनके खिलाफ मुख्यमंत्री रही उमा भारती के भाई स्वामी प्रसाद लौधी और समधी प्रीतम लोधी तक को उतारा जा चुका है। सिंह यहां से 1993 से अब तक लगातार छह विधानसभा चुनाव जीत चुके हैं। इसी तरह से ग्वालियर जिले की भितरवार सीट है, जो 2008 में अस्तित्व में आई थी, जिसके बाद से कांग्रेस के लाखन सिंह यादव लगातार जीत दर्ज कर रहे हैं। शिवराज लहर हो या फिर शिवराज मोदी लहर, इसके बाद भी भाजपा यहां से जीत दर्ज नहीं कर सकी है। 2013 और 18 में इस सीट पर कद्दावर नेता अनूप मिश्रा भी हार चुके हैं। इसी तरह से ग्वालियर जिले की डबरा सीट है। यहां पर भी बीते डेढ़ दशक से कांग्रेस का परचम लहरा रहा है। 2008, 2013 और 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की इमरती देवी यहां से जीती हैं। 2020 के उपचुनाव में जब इमरती देवी सिंधिया के साथ दलबदल कर बीजेपी में गयीं। तब भी डबरा सीट कांग्रेस के खाते में ही गई है।
शाह की मर्जी से ही होगा प्रत्याशी का चयन
इन सीटों पर इस बार बीजेपी नेता अमित शाह की नजर है। बीजेपी के आला नेताओं ने मंथन किया था उसमें ये निकलकर आया कि कांग्रेस के इन गढ़ पर बीजेपी वॉक-ओवर देने के हिसाब से कमजोर उम्मीदवार उतारती है। यही वजह है कि जब बात शाह तक पहुंची तो इस बार इन सीटों पर उम्मीदवार उनकी मोहर लगने के बाद तय होंगे। उद्यानिकी मंत्री भारत सिंह कुशवाहा का कहना है जिन सीटों पर हमें लगातर हार का सामना करना पड़ा उन सीटों पर हम मजबूत उम्मीदवार उतारेंगे।