बीते चुनाव में निर्दलीय दिखा चुके हैं ताकत.
चुनाव में जब भी टिकट वितरण होता है, राजनैतिक दलों में असंतोष भडक़ जाता है। जिस दावेदार को टिकट नहीं मिलता है या फिर जिसका टिकट काट दिया जाता है, वह अपने समर्थकों के साथ सडक़ पर नजर आने लगता है। इस दौरान तरह -तरह के भावुक करने वाले आडियो जारी कर उन्हें वायरल कराया जाता है। इसके बाद शुरू होता विरोध का दौर, जिसमें प्रदेश अध्यक्ष से लेकर पार्टी कार्यालय तक धक्का-मुक्की, नारेबाजी, प्रदर्शन तक किया जाता है। इसके बाद यह बागी चुनावी मैदान में उतर कर पार्टी के लिए मुश्किलें खड़ी कर देते हैं। इसके गवाह चुनावी आंकड़े भी हैं। यह बागी भले ही खुद न जीतें , लेकिन पार्टियों के समीकरण जरुर बिगाड़ देते हैं। मप्र में भी चुनावी बिगुल बज चुका है। बीजेपी, कांग्रेस समेत अन्य राजनीतिक दल अपने उम्मीदवारों की सूची पर सूची जारी कर रहे हैं। भाजपा व कांग्रेस दोनों दलों को लग रहा है कि इस बार उनके दल की जीत तय है। इसकी वजह से एक – एक सीट पर कई दावेदार होने से पार्टियों में उथल-पुथल वाला माहौल बना हुआ है। इसकी वजह से दावेदार समर्थकों के साथ विद्रोह के अब तक के सारे रिकॉर्ड तोड़ रहे हैं। उन्हें मनाने के लिए बीजेपी से लेकर कांग्रेस तक में मान-मनोव्वल का दौर चल रहा है। नाराज नेता और उनके समर्थक विधानसभा क्षेत्र से लेकर भोपाल तक चक्कर काट रहे हैं। कुछ नेताओं ने बगावत करते हुए अपने ही दल के कैंडिडेट को हराने की कसम खाकर चुनाव में उतरने का ऐलान कर दिया है। अगर बीते चुनाव परिणामों पर नज़र डालें तो बीजेपी ने 109 सीटें जीती थीं और कांग्रेस को 114 सीटें मिलीं थीं। जबकि बहुमत के लिए जरूरी आंकड़ा 116 सीट का है। यानी सरकार बनाने के लिए ना बीजेपी के पास बहुमत था, ना कांग्रेस के पास। इतना ही नहीं, 2018 के आंकड़े यह भी बताते हैं कि तब टिकट कटने के बाद उतरे बागी प्रत्याशियों ने कड़े मुकाबले में बीजेपी को 5 सीट और कांग्रेस को सात सीट हरवा दी थीं। यानी कटे हुए टिकट के बाद उतरा बागी जीतती सीट हरवा कर किसी के भी सरकार बनने के सपनों को काट सकता है। प्रदेश में बीजेपी गुना और विदिशा को छोडक़र 228 सीटों पर प्रत्याशियों का नाम ऐलान कर चुकी है। इस बीच जिन नेताओं के टिकट कटे या जो दावेदारी करते रह गए, वो बगावत पर उतर आए हैं। प्रदेश की अब तक 26 सीटों पर टिकट कटने के बाद बीजेपी को चुनावी बगावत का सामना करना पड़ रहा है। इस बार भी अगर कांटे की टक्कर हुई तो टिकट कटने से बागी बनकर उतरा कैंडिडेट सिर्फ सीट ही नहीं बल्कि सत्ता भी हिला सकते है, इसीलिए पार्टी पूरी कोशिश में जुटी है कि जो नाराज हैं, उन्हें आगे एडजस्ट करने की समझाइश देकर फिलहाल बागी बनने से रोका जाए। यह आत अलग है कि वे इस पर भी मानने को तैयार नहीं है। इसकी वजह है बीते चुनाव में किए गए वादों पर अमल नहीं किया जाना।
कांग्रेस में सर्वाधिक विद्रोह
प्रदेश में बीजेपी से ज्यादा टिकट बांट चुकी कांग्रेस का ज्यादा बागियों से सामना हो रहा है। कई नेता अब टिकट कटने के बाद खुद मैदान में उतरकर कमलनाथ के सपनों को पूरा ना होने देने का दावा करने लगे हैं, जबकि कांग्रेस दावा करती है कि अबकी बार जितनी पारदर्शिता से और ग्राउंड लेवल तक सर्वे कराके टिकट बांटे हैं। ऐसा पहले कभी मध्य प्रदेश में नहीं हुआ। यह बात अलग है कि इसके बाद भी टिकट कटने से नाराज नेता और उनके समर्थक भोपाल में डेरा डाल रहे हैं। कांग्रेस के खेमे में कहीं प्रदर्शन का बम चुनावी युद्ध में फूट रहा है तो कहीं आंसुओं का रॉकेट चल रहा है। इनमें भी वे अधिक विरोध कर रहे हैं , जो हाल ही में दूसरे दलों से कांग्रेस में आए हैं। विरोध की यही आग बढ़ती जाए तो जीत के सारे दावे धरे के धरे रह जाते हैं। कमलनाथ के घर के बाहर नाराज नेताओं ने टायर जला दिया है, लेकिन इससे पहले जो हुआ वो और गंभीर है। बडऩगर से सिटिंग कांग्रेस विधायक मुरली मोरवाल के समर्थकों ने पेट्रोल डालकर आत्मदाह की कोशिश कर दी। कांग्रेस सभी टिकट का ऐलान कर चुकी है। दावा है कि कांग्रेस के खेमे में 40 से ज्यादा सीट पर अब तक बागी खुद मैदान में उतरने का ऐलान करने लगे हैं।
बागी बने थे सत्ता से
दूरी की वजह!
2018 में दमोह सीट पर बागी बीजेपी नेता राहुल सिंह को 1,131 वोट मिले थे, जिसकी वजह से बीजेपी का उम्मीदवार 798 वोट से हार गया था। इसी तरह से पथरिया सीट पर बागी बीजेपी नेता रामकृष्ण कुसमारिया को 8755 वोट मिले थे , जिससे की बीजेपी कैंडिडेट को 2205 वोटों से हारना पड़ा था। ग्वालियर दक्षिण सीट पर बीजेपी की बागी कैंडिडेट समीक्षा गुप्ता 30 हजार से ज्यादा वोट ले गई थीं, जिससे भाजपा प्रत्याशी को 121 वोट से हारना पड़ा था। 2018 में भाजपा कांग्रेस से महज पांच सीट पीछे रह गई थी। पांच सीट ही बीजेपी ने 2018 में बागी कैंडिडेट की वजह से गंवाई थी। उधर, कांग्रेस को भी बागियों की वजह से सात सीटों का नुकसान उठाना पड़ा था। झाबुआ में कांग्रेस के बागी जेवियर मेड़ा को 35,943 वोट मिले थे, जिसकी वजह से कांग्रेस प्रत्याशी को 10437 मतों से हारना पड़ा था। पंधाना सीट पर बागी उम्मीदवार 25456 को मत मिले फलस्वरुप कांग्रेस प्रत्याशी 23000 वोट से हार गया। इसी तरह से उज्जैन दक्षिण सीट पर बागी को 19560 वोट मिले थे ,जिसकी वजह से कांग्रेस उम्मीदवार 18960 वोट से हार गया था।