भाजपा सरकार की कथनी व करनी में कितना अंतर है यह उसके द्वारा करीब डेढ़ दशक पहले किए गए चुनावी वादे को अब तक पूरी तरह से लागू नहीं कर पाने से समझा जा सकता है। खास बात यह है कि यह चुनावी वादा तीन मुख्यमंत्री और अपनी ही तीन सरकारों के कार्यकाल में भी पूरा नहीं किया गया है। इससे सरकारी कर्मचारियों में रोष व्याप्त है। दरअसल भाजपा ने प्रदेश में अपनी विजयी पारी शुरू करने से पहले 2003 के विधानसभा चुनाव के घोषणा पत्र में सरकारी कर्मचारियों का प्रोफेशनल टैक्स माफ करने का वादा किया था, लेकिन 15 साल की भाजपा सरकार इसे पूरा माफ नहीं कर सकी। 2003 में उमा भारती मुख्यमंत्री बनी थीं। उनके बाद बाबूलाल गौर और शिवराज सिंह चौहान भी इस वादे को पूरा नहीं कर पाए। जबकि, इस दौरान प्रदेशभर के कर्मचारी संगठन प्रोफेशनल टैक्स पूरी तरह माफ करने की मांग करते रहे। अब चुनावी साल में सरकार ने मौजूदा विस के अंतिम सत्र में मध्यप्रदेश वृत्ति कर संशोधन विधेयक-2018 हंगामे के बीच बिना चर्चा के पारित कर दिया। दरअसल, भाजपा जब विपक्ष में थी तो दिग्विजय शासनकाल में लगे प्रोफेशनल टैक्स के खिलाफ थी। भाजपा ने इसे जजियां कर बताकर अपनी सरकार आने पर माफ करने का वादा किया था, लेकिन सरकार बनने के बाद भूल गई। इन 15 सालों में मार्च 2016 और 2017 में दो बार इसके नियमों में बदलाव किए गए। पहले यह सभी पर समान रूप से 2500 रुपए प्रतिवर्ष लगता था। बाद में स्लैब बनाए गए। अब इसको भी बदला गया है। साथ ही छूट का दायरा बढ़ाया गया। सातवां वेतमान मिलने से कई कर्मचारियों की सालाना इनकम 2.5 लाख रुपए से ऊपर हो गई है। इन्हें यह छूट नहीं मिलेगी।
88 प्रतिशत को नहीं होगा फायदा
सरकार ने चुनाव के पहले कर्मचारियों को साधने की कोशिश की है, लेकिन नए स्लैब का फायदा 10-12 प्रतिशत कर्मचारियेां को ही मिलेगा। इसमें 1.50 लाख से छूट बढ़ाकर 2.50 लाख सालाना कर दी गई है। सातवां वेतनमान लगने के कारण 90 फीसदी कर्मचारी छूट के दायरे से बाहर हो गए हैं।
सभी के लिए समान
स्लैब 1000,1500 और 2500 रुपए सालाना कर दिए गए हैं। इससे कर्मचारियों को कोई विशेष फायदा नहीं है। क्योंकि, यह स्लैब समान रूप से सरकारी और निजी कर्मचारी सहित व्यवसायिकों पर भी लागू है।
जीएसटी है तो प्रोफेशनल टैक्स क्यों: कांग्रेस
कांग्रेस का कहना है कि देश में जीएसटी वसूली जा रहा है तो प्रोफेशनल टैक्स क्यों? कांग्रेस विधायक सुंदरलाल तिवारी कहते हैं, सरकारी कर्मचारी को जीएसटी में छूट तो है नहीं। विधेयक लाने से पहले विधायकों को 48 घंटे अध्ययन के लिए मिलना चाहिए, लेकिन विधानसभा में हंगामा के बीच अनुपूरक बजट भी पास करा लिया और विधेयक भी पास कर दिया। ये सरकार की मंशा पर सवाल उठता है।