टिकटों को लेकर नाथ व सिंधिया के बीच जारी है जोर आजमाइस

प्रदेश में बीते डेढ़ दशक से सत्ता का वनवास भोग रही कांग्रेस में अब भी चुनावी समय में भी कांग्रेस के बड़े नेताओं में भाजपा की जगह आपसी जंग होती दिख रही है। इसका असर पार्टी की घोषित अब तक की तीनों सूची में साफ तौर पर दिखाई दिया है। इस दौरान उनके बीच खुलकर मतभेद होने की खबरों ने भी खूब सुर्खियां बटोरी हैं। शेष बची सीटों पर अब भी इन नेताओं के बीच

कशमकश जारी है। यही वजह है कि अब भी कई सीटें ऐसी हैं, जिन पर फैसला होने में मुश्किलें खड़ी हो रही हैं।
मजबूत दावेदारी है बड़ी वजह
कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीच केबीसी- 2018 यानी ‘कौन बनेगा चीफ मिनिस्टर’ को लेकर यह जंग चल रही है। पार्टी की परंपरा के मुताबिक जिसके जितने ज्यादा विधायक होंगे, सीएम की कुर्सी पर उसकी दावेदारी उतनी ही मजबूत होगी। यही वजह है कि यह नेता अपने ज्यादा से ज्यादा समर्थकों को टिकट दिलाने के लिए जोर लगा रहे हैं। दोनों चुनाव नहीं लड़ रहे हैं, जिससे पूरा दारोमदार विधायकों की संख्या पर ही होगा। पहली सूची में कमलनाथ समर्थकों के नाम ज्यादा हैं , इस सूची में सिंधिया ग्वालियर चंबल में ही अपना प्रभाव दिखा पाए। हालांकि दूसरी सूची में वे भारी नजर आए , लेकिन तीसरी सूची में वे एकबार फिर पिछड़े हुए नजर आए। यही वजह है कि अब अंतिम सूची में दोनों नेताओं का जोर अपने समर्थकों को ज्यादा से ज्यादा टिकट दिलाने पर है।
पहली सूची में किस गुट को कितने टिकट….
कमलनाथ- 171 उम्मीदवारों में से 51 उम्मीदवारों को मिला टिकट
ज्योतिरादित्य सिंधिया- ग्वालियर-चंबल संभाग की 23 सीटों पर सीधा प्रभाव। कुछ समर्थक मालवा से भी।
दिग्विजय सिंह – दिग्विजय गुट में यदि अजय सिंह, कांतिलाल भूरिया और अरुण यादव को भी मिला लें तो उनके खाते में करीब 50 सीटें आती हैं, जिनमें उनके गुट को तरजीह दी गई है।
विधायक बनाएंगे सीएम…..
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी साफ कर चुके हैं कि बहुमत मिलने पर जनता और कार्यकर्ता ही मुख्यमंत्री तय करेंगे। ऐसे में विधायक दल की बैठक में प्रदेश अध्यक्ष के नाते कमलनाथ का दखल रहेगा। सिंधिया शामिल नहीं हो पाएंगे। वे इससे निपटने अपने समर्थकों की संख्या बढ़ाने के लिए जोर लगा रहे हैं।
दिग्विजय ऐसे बने थे सीएम….
1993 में सरकार बनने पर सीएम की दौड़ में माधवराव सिंधिया और श्यामाचरण शुक्ल थे। तब पीसीसी अध्यक्ष दिग्विजय सिंह थे। विधायक दल की बैठक में केंद्रीय पर्यवेक्षकों ने गुप्त मतदान कराया। डिब्बा खुला तो दिग्विजय मुख्यमंत्री बन गए। ये माना गया कि वे ज्यादा अपने ज्यादा समर्थकों टिकट दिला पाए थे।
दिग्विजय की अहम भूमिका….
अब तक आए नामों से जाहिर है कि पार्टी में दिग्विजय की भूमिका बरकरार है। वे कमलनाथ के करीबी हैं। पिछले तीन दिनों के हाईवोल्टेज ड्रामा ने सिंधिया के साथ उनकी दूरी को और बढ़ा दिया है। अब कमलनाथ को दिग्विजय गुट का समर्थन मिलेगा।