?✍️भगवान कृष्ण के परम भक्त एवं गायक विनोद अग्रवाल अब नहीं रहे ,?✍?64 साल की उम्र में दुनिया से विदा ले चुके भजन गायक विनोद अग्रवाल ने जीते जी ही अपनी आखिरी इच्छा जाहिर कर दी थी, ?✍️जानना चाहेंगे वे कैसी मौत चाहते थे?

?✍️भगवान कृष्ण के परम भक्त एवं गायक विनोद अग्रवाल अब नहीं रहे ,

?✍?64 साल की उम्र में दुनिया से विदा ले चुके भजन गायक विनोद अग्रवाल ने जीते जी ही अपनी आखिरी इच्छा जाहिर कर दी थी,

✍???जानना चाहेंगे वे कैसी मौत चाहते थे?

मंगलभारत,64 साल की उम्र में दुनिया से विदा ले चुके भजन गायक विनोद अग्रवाल ने जीते जी ही अपनी आखिरी इच्छा जाहिर कर दी थी, जानना चाहेंगे वे कैसी मौत चाहते थे?

मैं अपना सारा सामान समेटकर वृंदावन आ गया हूं। मेरी इच्छा यही है कि यदि मेरी मौत आए तो वृंदावन में ही आए। मैं दुनिया का हर सुख भोग चुका हूं। यह बात 7 अक्तूबर 2018 को सेक्टर-29 के अवल टेंट हाउस के ऑफिस में अमर उजाला के साथ खास बातचीत के दौरान प्रसिद्ध भजन गायक विनोद अग्रवाल ने कही थी। अब वे इस दुनिया में नहीं रहे। पेश है मंगलभारत से हुई उनकी खास बातचीत…

विनोद अग्रवान ने 1978 से गायकी शुरू की। संगीत तो सीखा भी नहीं। कहते हैं कि संगीत विशाल समुद्र है। परिवर्तन सृष्टि का नियम है। पाश्चात्य संगीत तो उत्तेजना भरता है। संगीत में शब्दों की प्रगाढ़ता भी जरूरी है। संगीत के नाम पर शोर हो रहा है। शब्दों का सही इस्तेमाल नहीं हो रहा है। शब्दों का सही इस्तेमाल होना चाहिए। सीने में दर्द की शिकायत के बाद उन्हें मथुरा के नयति मेडिसिटी हॉस्पिटल में भर्ती करवाया गया था, जहां उनका देहांत हो गया।

भजन गायक विनोद अग्रवाल सेक्टर-29 में एक शाम श्री राधामाधव के नाम कार्यक्रम में भजन पेश करने आए थे। इसी क्रम में उन्होंने अमर उजाला से खास बात की। विनोद अग्रवाल बताते हैं कि वे कपड़े के व्यापारी थे। अब मुंबई से बाइंड अप कर पत्नी के साथ वृंदावन आ गए। उन्होंने बताया कि हर प्रकार का सुख भोग लिया। मेरी पहले से ही इच्छा थी कि जिंदगी का एक चौथाई हिस्सा वृंदावन में गुजरे और प्राण भी वहीं पर जाए। उन्होंने कहा कि वह कोई उपदेशक या वक्ता और सुधारक नहीं है। साधारण गृहस्थ हैं। बेटे का अपना कारोबार है।

मुझे तो बदलेव ने मुंबई से निकाला..
विनोद अग्रवाल का कहना कि मुंबई में अपने बिजनेस स्थल पर हर रविवार को कीर्तन करते थे। दिल्ली से बलदेव मुंबई ट्रांसफर होकर आए थे। वे प्राइवेट कंपनी में जॉब करते थे। 1993 में मुलाकात हुई और हम दोनों साथ साथ भजन गाते थे। अब तक तीन हजार से भी अधिक कार्यक्रम पेश कर चुके हैं। देश के करीब सभी भागों में भजन गाए और विदेशों में भी धूम मचाई।

भजन पेश करते हुए आखों में आंसू क्यों आते हैं इस पर विनोद अग्रवाल का कहना था कि यह तो भाव की बात है। जब दिल में नहीं समाते तो आंखों में आते हैं। विनोद अग्रवाल कहते हैं कि वृंदावन के संतों द्वारा रचित गीत ही वे गाते हैं। हां वे गीत जो अब तक किसी ने नहीं गया हो। भजनों में शायरी पढ़ता हूं। सूफी संगीत काफी शुकून देता है। उर्दू की शायरी भी भजनों के दौरान करते हैं। उनका कहना है कि सूफी तो विशालता है। संकीर्णता और कट्टरता नहीं है।

फ्रंटियर मेल से मुंबई जा रहे थे..
बात 1993 की है। भजन गायक विनोद अग्रवाल अमृतसर से फ्रंटियर मेल से मुंबई जा रहे थे। जगाधरी में डेढ़ सौ से भी अधिक लोग विनोद अग्रवाल से मिलने आ गए। ट्रेन से वहीं उतार लिया। जगाधरी में श्याम स्नेही संकीर्तन मंडल का हर रविवार को कीर्तन होता है। वहीं पर ले गए। बलदेव कृष्ण ने कहा कि वे दिल्ली में प्राइवेट कंपनी में जॉब करते थे। उनका ट्रांसफर मुंबई कर दिया गया। वहां पर संकीर्तन का साधन नहीं था। अपने बॉस को बोले कि मुझे दिल्ली बुला लो। बॉस ने कहा सभी तो मुंबई जाते हैं आप वहां से क्यों आना चाहते हैं।

फिर वे अपने दोस्तों और अन्य लोगों से पता किया कि मुंबई में विनोद अग्रवाल बिजनेसमैन हैं और वे हर रविवार अपने गद्दी पर संकीर्तन करते हैं। फिर पता कर वहां गया। फिर क्या था। ऐसी मिलनी हुई कि पता आज तक नहीं चला। यह बात जून 1988 की है। बलदेव कृष्ण बताते हैं कि 1993 में विनोद को मुंबई से निकाला। उसके बाद अब तक सफर के साथी हैं। पहली बार विनोद के साथ जगाधरी में गाया। उनका कहना है कि एक  वर्ष में 150 कार्यक्रम होते हैं। ढाई सौ से अधिक एलबम हैं।

ट्राइसिटी में आने पर वे चंडीगढ़ के सेक्टर-15 में ठहरते थे…
गायक विनोद अग्रवाल जब भी ट्राइसिटी में कार्यक्रम मे लिए आते तो वे चंडीगढ़ के सेक्टर-15सी में जयचंद बंसल के घर पर ही ठहरते थे। जयचंद बंसल के बेटे सुनील बंसल का कहना है कि 20 वर्ष पहले वे सेक्टर-15 में पहली बार कीर्तन करवाया था। वे चंडीगढ़ में पहले से भी कीर्तन करते थे। उन्होंने बताया कि उनका परिवार उनसे वर्ष 1941 से ही जानता था। सुनील बंसल का कहना है कि वे भजन गायक विनोद अग्रवाल को अपना गुरु मानते थे। कभी साथ में नहीं बैठा हमेशा उनके सामने खड़ा ही रहता था। सुनील बंसल का सेक्टर-14 में बंसल टेक्सटाइल नाम से शोरूम है।

मैं मंगलभारत का सलाहकार संपादक बलराम पाण्डे दुख प्रकट करते हुए उनके आत्मा को भगवान कृष्ण अपने चरणों मे स्थान दे  कामना करता हूं