मंगल भारत शहडोल। मन में कोई काम करने का संकल्प हो तो कुछ भी असंभव नहीं है। हमारे समाज में गरीबी से भी लड़ने के लिए कई लोग जूझ रहे हैं। ऐसे ही जिले के लगभग एक सैकड़ा आदिवासी महिलाएं
गांव की अन्य महिलाओं को सेनेटरी नैपकीन बेचकर उन्हें जागरूक कर रही हैं। उनके इस प्रयास समूह के माध्यम से महिलाएं नैपकीन की पैकिंग करके गांवों में बेचती हैं। प्रति पैकेट एक से दो रुपए का मुनाफा अभी इन्हें हो रहा है।
कई ब्रांडेंड कपंनियों की सेनेटरी मार्केट में उपलब्ध है ऐसी स्थिति में महिलाओं को खुद की पैक की गई नैपकीन बेच रही हैं। इस दौरान ये महिलाएं ग्रामीण महिलाओं को स्वास्थ्य के प्रति समझाइश भी देती हैं। पिछले एक साल से यह पहल जिले में हो रही है। पांचों ब्लॉक में एक-एक सेंटर है जहां अभी तक करीब 100 महिलाएं जुड़ गई हैं। एक समूह में अधिकतम 25 महिलाओं को जोड़ने का टारगेट है।
ये वह महिलाएं हैं जो खुद कभी नैपकीन का उपयोग नहीं करती थीं, लेकिन अब खुद उपयोग कर रही हैं और घूम-घूमकर अन्य ग्रामीण महिलाओं को जागरुक करते हुए नैपकीन का उपयोग करने के लिए प्रेरित कर रही हैं। हर ब्लॉक में एक महिला को चार गांव की जवाबदारी तय की गई है।
नैपकीन बेचकर यह महिलाएं अब इतना कमा रही हैं कि उन्हें अपनी रोजमर्रा के लिए आर्थिक तंगी का सामना नहीं करना पड़ रहा है। पहले वह दूसरे पर निर्भर रहती थीं।
समूह की गरीब महिलाएं नैपकीन भोपाल, इंदौर व अन्य शहरों से बड़े-बड़े पैकेटों में एक साथ मंगा लेती है इसके बाद छोटे-छोटे पैकेटों में खुद पैक करती हैं। एक पैकेट में लगभग 12 पीस रहते हैं जिसकी कीमत 15 से 17 रुपए होती है। जबकि यही नैपकीन बाजार में 50 रुपए से अधिक में मिलती है सिर्फ ब्रांड का अंतर रहता है। मासिक धर्म के समय महिलाएं इसका उपयोग करती हैं।
ग्रामीण क्षेत्रों में अधिकांश महिलाएं कपड़े का उपयोग करती थीं, लेकिन अब धीरे-धीरे समूह की महिलाएं इन्हें जागरुक कर रही हैं और अब नेपकीन का उपयोग करने के लिए मजबूर कर दिया है। आजीविका मिशन के माध्यम से ये गरीब आदिवासी महिलाएं इस पहल को आगे बढ़ा रही हैं।