भोपाल। मध्यप्रदेश चुनाव 2018 में मतदान के 48 घंटे पहले 230 में से 138 सीटों की स्थिति दोनों पार्टियों के दिग्गजों के सामने स्पष्ट हो चुकी है। कुछ सीटों पर अंतर इतना ज्यादा है कि उसे पाटा ही नहीं जा सकता, इसलिए नई रणनीति के तहत आने वाले 48 घंटों में उन पर कोई बात नहीं होगी। भाजपा और कांग्रेस के भाग्यविधाओं की डायरी में अब केवल 92 सीटें ऐसी रह गईं हैं जहां पार्टी ने पूरा फोकस कर दिया है। यहां सिर्फ 1% वोट चुनाव के परिणाम बदल देंगे। नोटा घातक सिद्ध होगा और निर्दलीय भी हार का कारण बन जाएगा।
इन सीटों पर मुकाबला सबसे ज्यादा कठिन
मंधाता, हरसूद, खंडवा, पंधाना, नेपानगर, बुरहानपुर, भीकनगांव, बड़वाह, महेश्वर, कसरावद, खरगोन, भगवानपुरा, सेंधवा, राजपुर, पानसेमल, बड़वानी, अलीराजपुर, जोबट, झाबुआ, थांदला, पेटलावद, सरदारपुर, गंधवानी, कुक्षी, मनावर, धरमपुरी, धार, बदनावर, उदयपुरा, भोजपुर, सांची, सिलवानी, विदिशा, बसौदा, कुरवाई, सिंरोज, शमसाबाद, बैरसिया, भोपाल उत्तर, नरेला, भोपाल दक्षिण पश्चिम, भोपाल मध्य, गोविंदपुरा, हुजूर, बुदनी, आष्टा, इच्छावर, सीहोर, नरसिंहगढ़, ब्यावरा, खिलचीपुर, सारंगपुर, सुसनेर, आगर, शाजापुर, शुजालपुर, कालापीपल, सोनकक्ष, देवास, हाटपिपल्या, खातेगांव, बागली, देपालपुर, इंदौर-1, इंदौर-2, इंदौर-3, इंदौर-4, इंदौर-5, मऊ, राऊ, सुरनेर, नागदा, महिदपुर, तराना, घटिया, उज्जैन उत्तर, उज्जैन दक्षिण, बड़नगर, रतलाम ग्रामीण, रतलाम सिटी, सैलाना, जावरा, आलोट, मंदसौर, मल्हारगढ़, सुवासरा, गरोठ, मनासा, नीमच, जावद।
BJP अब मालवा-निमाड़ पर निर्भर
मालवा-निमाड़ और मध्यभारत के 20 जिलों की 91 सीटों में से भाजपा अगर 50 से कम सीटें लाती है तो उसकी सरकार बनाने की संभावनाएं कमजोर हो जाएंगी। कांग्रेस उसे 45 या उससे कम पर रोकने में सफल रही तो 15 साल बाद फिर सत्ता में आ सकती है। वजह, चंबल में भाजपा को थोड़ा नुकसान है, जबकि महाकौशल में वह मामूली अंतर से आगे है। विंध्य में कांग्रेस और भाजपा के बीच बराबर सीटें बंट सकती हैं। ऐसे में मालवा-निमाड़ और मध्य भारत का हिस्सा सरकार बनाने में अहम साबित हो सकता है। अक्टूबर अंत में आए ओपीनियन पोल में भाजपा-कांग्रेस के बीच महज 1% वोट का फर्क था। इन पोल्स की अहम बात यह है कि प्रत्याशी घोषित होने और मतदान के बीच के 15 दिन में करीब 30% लोग अपना मन बदल लेते हैं।