प्रदेश में हाल ही में विधानसभा चुनाव के दौरान बनी परिस्थितियों से सबक लेते हुए संघ ने लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा में अपना दखल बढ़ाना लगभग तयकर लिया है। इसके तहत संघ अपने कुछ संगठन में दक्ष पदाधिकारियों को भाजपा में भेजकर उन्हें महत्वपूर्ण जिम्मेदारी देने की तैयारी में है। यही नहीं भाजपा के कुछ संभागीय संगठन मंत्रियों के प्रभार भी बदलने जा रहा है। दरअसल विस चुनाव के दौरान भाजपा में अनुशासनहीनता और बगावत की स्थिति बनी रही। भाजपा संगठन इस पर पूरी तरह से काबू पाने में असफल रहा। इसका खमियाजा चुनाव में पार्टी प्रत्याशियों पर
पडऩा तय माना जा रहा है। यही वजह है कि अब संघ को इस तरह का निर्णय करना पड़ा है। चुनाव के दौरान संघ की पृष्ठभूमि से जुड़े और खाटी नेता सरताज सिंह ने इस चुनाव में जहां पार्टी छोड़ दी वहीं रामकृष्ण कुसमरिया और केएल अग्रवाल बागी होकर मैदान में उतर गए। भाजपा के ऐसे पुराने नेताओं के पार्टी छोड़ देने से संघ की चिंता बढ़ रही है। इसी के चलते संगठन मे बड़ी सर्जरी करने की तैयार शुरु कर दी गई है। इधर भाजपा के प्रदेश सह संगठन महामंत्री अतुल राय पूरे चुनाव से लगभग नदारद ही रहे। पहले उन्हें महाकौशल और विंध्य का जिम्मा दिया गया था लेकिन वहां भी उनकी सक्रियता कम ही रही है।
टिकट वितरण में भी संघ की नहीं चली
संघ के क्षेत्र प्रचारक दीपक विस्पुते और पूर्व क्षेत्रप्रचारक अरुण जैन को चुनावी जिममेदारी दी गई थी। इसके बाद भी भाजपा के प्रभावशाली कुछ नेताओं ने अपने हिसाब से टिकट बांटे और संघ की सलाह की पूरी तरह से अनदेखी की, जिसकी वजह से भाजपा में बगाबत की स्थिति बन गई। यही वजह है कि चुनाव के बीच संघ के इन बड़े पदाधिकारियों को सीएम शिवराज सिंह चौहान, प्रदेश अध्यक्ष राकेश सिंह और संगठन महामंत्री सुहास भगत को तलब करना पड़ा।
दखल के ये कारण
भाजपा में संगठन से ज्यादा व्यक्ति का महत्व बढ़ा। निर्णयों में भी व्यक्तिगत पसंद हावी रही इसके चलते भाजपा का काडर कमजोर हो रहा है। भाजपा फिर से संघ के संगठनात्मक ढांचे को सुधारने की कोशिश में जुट रहा है। राम मंदिर के लिए संघ अहम भूमिका में आ गया है। संकल्प यात्रा दिल्ली से शुरू हो गई है। 11 दिसंबर के बाद संघ मप्र में भी राम मंदिर को लेकर सक्रिय भूमिका निभाएगा।
मिशन 2019 के लिए भाजपा को मजबूत बनाने में संघ अपनी भूमिका निभाएगा।
भाजपा के पुराने और खाटी नेताओं की नाराजगी, उनका पार्टी से दूर होना और विचारधारा में कमी आना एक अहम कारण है। संघ उन नेताओं को फिर से संगठन से जोडऩे की दिशा में काम करेगा।