शिव के एक दर्जन दिग्गजगणों पर हार का साया

मतदान होने के बाद से प्रदेश के दिग्गज कहे जाने वाले एक दर्जन मंत्रियों पर हार का खतरा माना जा रहा है। यह मंत्री प्रचार व मतदान के दौरान पूरी तरह से कड़े मुकाबले में संघर्ष करते नजर आए हैं। यही नहीं इसके पहले भी पिछले चुनाव के दौरान 2013 में भी शिवराज सरकार के दस मंत्रियों को भी हार का सामना करना पड़ा था। इस बार जिन मंत्रियों पर हार का खतरा बताया जा रहा है, उसकी वजह पार्टी के बागी और उनके खिलाफ एंटी-इंक बेंसी को बताया जा रहा है। यही नहीं इन मंत्रियों के लिए मतदान के प्रतिशत में हुई अप्रत्याशित घट-बढ़ भी चिंता

का कारण बन गई है। यह हाल तब है जबकि भाजपा ने हार की संभावना के चलते पहले ही शिव सरकार के पांच मंत्रियों को इस बार टिकट नहीं दिया था। अगर इन मंत्रियों के टिकट नहीं काटे जाते तो हारने वाले संभावित मंत्रियों का आंकड़ा डेढ़ दर्जन तक पहुंच जाता।
जयंत मलैया: 2018 में मतदान 74.34 प्रतिशत
पिछली बार दमोह में महज 4953 मतों से चुनाव जीते थे। इस बार त्रिकोणीय संघर्ष में फंसे हैं। यहां भाजपा के बागी पूर्व मंत्री रामकृष्ण कुसमरिया ने उनकी मुश्किल बढ़ा दी है। कांग्रेस के प्रत्याशी राहुल लोधी ने भी लोधी वोटों को प्रभावित किया है।
रुस्तम सिंह : 2018 में मतदान 62.98 प्रतिशत- मुरैना से पिछला चुनाव महज 1700 मतों से जीते थे। इस बार यहां बसपा से दिमनी के विधायक बलबीर सिंह दंडोतिया और कांग्रेस के रघुराज सिंह कंसाना उन्हें कड़ी टक्कर दे रहे हैं। मुरैना में पिछले चुनाव की तुलना में तीन फीसदी ज्यादा मतदान हुआ है।
उमाशंकर गुप्ता: 2018 में मतदान 62.58 प्रतिशत- भोपाल दक्षिण-पश्चिम से 2013 में 18 हजार मतों से जीते थे। इस बार कांग्रेस के पीसी शर्मा कड़ी टक्कर दे रहे हैं। आम आदमी पार्टी के आलोक अग्रवाल ने भी मुश्किल बढ़ाई है। राजधानी की इस सीट पर डेढ़ फीसदी वोट पिछले चुनाव की तुलना में कम हुआ है।
राजेंद्र शुक्ला: 2018 में मतदान 66.13 प्रतिशत- सिलवानी से पिछला चुनाव 17 हजार मतों से जीते थे। उदयपुरा से लडऩा चाहते थे, लेकिन संगठन ने सीट नहीं बदली। यहां रामपाल की बहू की आत्महत्या मामले में रघुवंशी समाज में नाराजगी है। कांगे्रस के देवेंद्र पटेल व सपा के प्रदेश अध्यक्ष गौरीसिंह यादव ने मुश्किल खड़ी की है।
भूपेंद्र सिंह: 2018 में मतदान 81.25 प्रतिशत- खुरई सीट से पिछला चुनाव 6 हजार मतों से जीते थे। 2008 में भूपेंद्र को चुनाव हराने वाले कांग्रेस प्रत्याशी अरुणोदय चौबे फिर मैदान में हैं। खुरई सीट पर पिछले चुनाव की तुलना में साढ़े 5 फीसदी मतदान बढ़ा है। तेजी से मतदान बढऩा भी चिंता का एक विषय है।
जयभान सिंह पवैया : 2018 में मतदान 55.05 प्रतिशत- ग्वालियर विधानसभा सीट पर पवैया 2013 के चुनाव में 15561 मतों से जीते थे। कांग्रेस के प्रद्युम्र सिंह तोमर इस बार उन्हें कड़ी टक्कर दे रहे हैं। हालांकि ग्वालियर सीट पर इस बार पिछले चुनाव की तुलना में साढ़े पांच प्रतिशत कम मतदान हुआ है।
शरद जैन: 2018 में मतदान 63.79 प्रतिशत- जबलपुर उत्तर से 2013 में 33563 मतों से जीते थे। इस बार भाजपा के बागी धीरज पटेरिया व कांग्रेस के विनय सक्सेना ने मुकाबला त्रिकोणीय बना दिया है। मंत्री होने के बाद भी मतदान के पहले क्षेत्र में बेकाबू हुए चिकनगुनिया व डेंगू से जनता में नाराजगी है।
सुरेंद्र पटवा: 2018 में मतदान 77.72 प्रतिशत- भोजपुर से पिछला चुनाव 20 हजार मतों से जीते थे। पटवा के लिए यहां कांग्रेस के दिग्गज नेता सुरेश पचौरी ने मुश्किल खड़ी कर रखी है। पटवा की सीट पर पिछले चुनाव की तुलना में इस बार अप्रत्याशित रूप से साढ़े पांच फीसदी ज्यादा मतदान हुआ है।
ललिता यादव: 2018 में मतदान 70.08 प्रतिशत- पिछला विधानसभा चुनाव ललिता यादव ने छतरपुर से जीता था, लेकिन इस बार सीट बदलकर मलहरा पहुंचीं। यहां स्थानीय नेताओं का सहयोग नहीं मिलने के कारण स्थिति कमजोर है। यहां भाजपा के बागी सुनील घुवारा ने मुकाबला त्रिकोणीय बना दिया है।
लालसिंह आर्य: 2018 में मतदान 59.30 प्रतिशत- पिछला चुनाव गोहद विधानसभा सीट से 19814 मतों से जीते थे, लेकिन इस बार कांग्रेस प्रत्याशी रणवीर जाटव टक्कर दे रहे हैं। बहुजन समाज पार्टी ने यहां से व्यापमं के आरोपी जगदीश सगर को उतारकर मुकाबले को त्रिकोणीय कर दिया है।
2013 में यह मंत्री हारे थे
अनूप मिश्रा: क्षेत्र बदलकर भितरवार से लड़े। त्रिकोणीय संघर्ष में फंस कर हारे।
केएल अग्रवाल: बमौरी में नाराजगी भारी पड़ी। यहां भी विरोध में बंपर वोटिंग हो गई।
हरीशंकर खटीक: 2008 की तुलना में जतारा में 11 फीसदी ज्यादा वोट पड़े। विरोध में पड़े वोट के कारण जीतते हार गए ।
रामकृष्ण कुसमारिया: पथरिया से सीट बदलकर राजनगर से चुनाव लड़े। स्थानीय बनाम बाहरी का मुद्दा भारी पड़ा।
बृजेंद्र प्रताप सिंह: आखिरी वक्त पर मंत्री बने, लेकिन पवई क्षेत्र में उनकी कार्यप्रणाली से भारी असंतोष ने हार तय कर दी।
अजय विश्नोई: पाटन में विश्रोई के मुकाबले कांग्रेस का युवा चेहरा नीलेश अवस्थी मतदाताओं को ज्यादा पसंद आया।
जगन्नाथ सिंह: चितरंगी में एंटी-इन्कंबेंसी का असर रहा। बढ़े हुए वोटों ने हराया।
लक्ष्मीकांत शर्मा: व्यापमं घोटाले से सिरोंज में विरोध बढ़ा। 2008 की तुलना में साढ़े चार प्रतिशत वोट बढ़ गया।
करन सिंह वर्मा: इछावर में काम न करने की नाराजगी का खामियाजा भुगता। 2008 की तुलना में 4.5प्रतिशत ज्यादा मतदान हुआ।
दशरथ सिंह लोधी: जबेरा में 2011 के उपचुनाव में जीते, 2013 में उपचुनाव की तुलना में 25 फीसदी मतदान बढ़ गया।