सीएमओ चुरहट का देहांत हृदयघात या प्रशासनिक घात

सीएमओ चुरहट का देहांत हृदयघात या प्रशासनिक घात

सीएमओ नगर परिषद चुरहट की प्रशासनिक दबाब के चलते हृदयाघात या सामान्य हृदयघात से मृत्यु ….
क्या यह हृदयघात  प्रशासनिक था ?  हृदयघात भी प्रशासनिक होता है क्या ? वाकई नहीं होता ,क्योंकि अभी ऐसी कोई पद्धति नहीं है जिससे यह पता किया जाए।

आखिर क्या कारण रहे कि नगर परिषद चुरहट के सीएमओ का चार्ज छुट्टी से वापस आने के बाद भी उन्हें नहीं दिया जा रहा था।
कमिश्नर रीवा ने भी सीएमओ स्व परिहार की 2 वेतन वृद्धियाँ रोक रखी थी। एसडीएम चुरहट की सैकड़ो धांधलियों के वावजूद नही हुई कोई कार्यवाही।

हुआ यूं था कि सीएमओ साहब ने अपने इलाज के लिए अवकाश लिया था तो प्रशासक ने उनका चार्ज आर आई नगर पालिका चुरहट को को दे दिया था। जब सीएमओ साहब वापस आ गए तो भी उनका चार्ज उन्हें नहीं दिया गया था और तरह तरह से प्रताड़ित किया जाने लगा था। ये मेडिकल दो,वो मेडिकल दो । अब बड़े साहब का रुतबा और भय चुरहट में इतना है कि सीएमओ साहब बेचारे भटकते रहे, उन्होंने सभी मेडिकल दे दिए तो उन्हें चुनाव में कंट्रोल रूम में कोई दायित्व दे दिया और फिर  प्रताड़ना शुरू।

देहांत से करीब 12- 15 घंटे पहले वो एक जंग हार गए थे, यह जंग थी अपनके पद सीएमओ का चार्ज प्राप्त करने की, क्योंकि जिस दिन उनका देहांत हुआ उसी दिन माननीय प्रशासक और जिला कलेक्टर की भूमिका से सीएमओ का चार्ज स्व परिहार को ना देते हुए सीधी नगरपरिषद के सीएमओ को आर आई चुरहट से लेकर दे दिया था।
शायद यह एक ऐसा सदमा था जिसे वो बर्दास्त न कर पाए हो ,क्योंकि लगातार प्रताड़ना भी मानसिक तनाव का कारण हो सकती है।

इसे दबाए जा रहा है लेकिन आज ये चर्चा बाजार में भी सुनी कि उन्हें चार्ज नहीं दिया जा रहा था, शायद उन्हें नगर परिषद की लूट में शामिल किया जाना आसान नहिं रहा होगा। इसलिये उन्हें लगातार प्रताड़ित किया जा रहा था।
एक इंजीनियर को भी कुछ दिनों पहले कुछ इसी तरह परेशान किया गया, उसे रिलेव करने में बहुत ड्रामे हुए।

अब परिवार शोक में डूबा हुआ है, तो करे कौन साहबों के गठबंधन का अत्याचार पर सवाल ???   कि “आखिर सीएमओ साहब को उनका चार्ज क्यों नहीं दिया जा रहा था “???  जबकि उनके द्वारा सभी चिकित्सकीय दस्तावेज दे दिए गए थे, छुट्टियां पूरी होने के बाद वो जॉइन करने आये थे, उनका चार्ज आर आई पर था, और आर आई से वो सीधी नगरपरिषद पे चला गया।

इस सवाल का जबाब कौन दे , ऊपर से नीचे तक सब तो खामोश हैं। लगता है कि अंग्रेजी राज की अफसरी में जी रहे हैं हम लोकतंत्र के घायल परिंदे।
क्योंकि साहब की मनमानियों ने बाईपास का पूरा मुआवजा उड़ा दिया, दोस्तों को जी भरकर बांटा और किसानों को ठगा लिया,
तहसील के लोग तरस रहे हैं तनख्वाहों के लिए, साहब बरस रहे हैं अफवाहों के लिए।

वो प्रताड़ित कर रहा है और हमारा शहर रो रोकर सो रहा है।
खामोश इस देश मे लोक से तंत्र का साक्षात्कार हो रहा है।