कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने मध्य प्रदेश के लिए 72 वर्षीय कमलनाथ और राजस्थान के लिए 67 वर्षीय अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री चुना है.लेकिन वो युवाओ के पक्षधर रहे है,हर जगह केवल युवा का नारा प्रबल रहा लेकिन….
उन्होंने मध्य प्रदेश के सीएम पद के लिए ग्वालियर के राजपरिवार से जुड़े ज्योतिरादित्य सिंधिया और राजस्थान के सीएम पद के लिए पूर्व केंद्रीय मंत्री सचिन पायलट के दावों को ख़ारिज करके ये फ़ैसला लिया है.
ज्योतिरादित्य सिंधिया और सचिन पायलट दोनों को कांग्रेस के युवा चेहरों में गिना जाता है.
राहुल ने आख़िर पुराने नेताओं को क्यों चुना?
राहुल गांधी ने ये फ़ैसला इसलिए लिया क्योंकि इस समय माहौल उनकी पार्टी के पक्ष में बन रहा है और बीजेपी को चुनौती देने के लिए उन्हें इस समय का पूरा फ़ायदा उठाना है. लेकिन फिर युवाओ को मोहरा क्यो बनाया जाता है इसका जबाब तो राष्ट्रीय अध्यक्ष के पास ही मिल सकता है,इसके साथ-साथ उन्हें भविष्य को भी देखना है.
2019 के लोकसभा चुनावों की रणनीति बनाने, चुनाव अभियान चलाने और पैसा जुटाने के लिए राहुल गांधी को वरिष्ठ नेताओं के अनुभव की ज़रूरत है. इन नेताओं के पास ज़रूरी अनुभव के अलावा राजनीतिक चतुराई भी है और ये समय पर नतीजे दे सकते हैं. राहुल के पास समय बहुत कम है.
वरिष्ठता की अहमियत
2013 में पार्टी उपाध्यक्ष बनने के बाद से राहुल गांधी ने पार्टी के इन वरिष्ठ नेताओं पर विश्वास करना सीखा है. शुरुआती दिनों में राहुल गांधी युवाओं को तरजीह दे रहे थे क्योंकि उनके साथ वो ज़्यादा सहज थे. इसी वजह से पार्टी के वरिष्ठ नेता अपने भविष्य को लेकर चिंतित भी थे.
पार्टी के कुछ वरिष्ठ नेताओं को राहुल गांधी के तौर तरीक़ों, उनकी बेसब्री, वरिष्ठ नेताओं के साथ तारतम्य बैठाने में अक्षमता और राजनीति पर पूरा ध्यान केंद्रित न होने की वजह से असंतोष भी था.
बीते साल जब उन्होंने पार्टी के अध्यक्ष पद की कमान संभाली तो उन्होंने अपनी नई टीम को बेहद ध्यान से चुना और कुछ चुनिंदा पुराने नेताओं को भी उसमें शामिल किया.
राहुल को ये अहसास भी हुआ है कि पार्टी को वरिष्ठ नेताओं के अनुभव की ज़रूरत है. यही वजह है कि अहमद पटेल, एके एंटनी, पी. चिदंबरम, कैप्टन अमरिंदर सिंह, सिद्धरमैया, मल्लिकार्जुन खड़गे, अशोक गहलोत और कमलनाथ जैसे नेताओं को कांग्रेस की समितियों में शामिल रखा गया. हालांकि उन्होंने जनार्दन द्विवेदी और दिग्विजय सिंह जैसे नेताओं को बाहर भी रखा.ज्योतिरादित्य सिंधिया, कमलनाथ
कमलनाथ को तरजीह क्यों
2019 की चुनावी तैयारी की लिए गठित कांग्रेस कार्यसमिति, अखिल भारतीय कांग्रेस समिति और अन्य पैनलों में भी राहुल गांधी ने पुराने नेताओं को शामिल रखा.
राहुल गांधी को ये अहसास हो गया कि कांग्रेस को ऐसे युवा नेतृत्व की ज़रूरत है जिसे पुराने नेताओं का सहयोग हासिल हो. यही वजह है कि कांग्रेस में कुछ समय से पुराने नेता फिर से एक्शन में हैं.
इसी संदर्भ में अशोक गहलोत और कमलनाथ के चुनाव को भी देखा जाना चाहिए. अगर बात कमलनाथ की ही की जाए तो उन्हें चुनने की सबसे बड़ी वजह 2019 के लोकसभा चुनाव हो सकते हैं.
कमलनाथ के पास कांग्रेस की कई सरकारों में अहम ज़िम्मेदारियां संभालने का अनुभव है और वो पार्टी में भी कई अहम पदों पर चुके हैं. उन्हें पार्टी में काम करने वाले व्यक्ति के तौर पर देखा जाता है.
दूसरा कारण ये हो सकता है कि सिंधिया अभी 40 के आसपास के ही हैं और वो इंतज़ार कर सकते हैं.
72 की उम्र में हो सकता है कि कमलनाथ को ये भी लग रहा हो कि उनके पास यह अंतिम मौक़ा है. तीसरा कारण ये है कि कमलनाथ के उद्योगपतियों से संबंध अच्छे हैं और चुनावी मौसम में पार्टी को पैसों की ज़रूरत है.
चौथी वजह ये भी हो सकती है कि मुख्यमंत्री पद न मिलने पर कमलनाथ परेशानी भी पैदा कर सकते थे. मध्य प्रदेश में कांग्रेस में बंटवारा भी काफ़ी है और यहां कमलनाथ को दिग्विजय सिंह का पूरा समर्थन भी हासिल है.अशोक गहलोत, राहुल गांधी, सचिन पायलट
गहलोत को क्यों मिली कमान
इसी तरह अशोक गहलोत ने गुजरात चुनावों के दौरान राहुल गांधी को काफ़ी प्रभावित किया और कांग्रेस ने उल्लेखनीय सुधार किया.
दो बार मुख्यमंत्री रह चुके गहलोत के राज्य में अपने संपर्क-संबंध और वफ़ादार हैं. दूसरी वजह ये है कि गहलोत सबको साथ लेकर चलने में माहिर हैं.
वो विभिन्न जातियों और उनकी परेशानियों से पायलट के मुक़ाबले बेहतर तरीक़े से निपट सकते हैं. तीसरी वजह है कि पार्टी को ऐसा व्यक्ति चाहिए जो प्रभावी तरीक़े से सरकार चला सके, वो भी ऐसे समय में जब पार्टी के पास कमज़ोर बहुमत हो.
चौथी वजह ये है कि सिंधिया की ही तरह पायलट भी अभी इंतज़ार कर सकते हैं. गहलोत भी कमलनाथ की तरह पार्टी के लिए पैसा जुटा सकते हैं. सबसे अहम उनके पास ज़्यादा विधायकों का समर्थन है.
राहुल गांधी समझते हैं कि 2019 में बीजेपी का मुक़ाबला करने के लिए इस समय पार्टी को सबसे ज़्यादा ज़रूरत एकजुटता की है. यही उनकी प्राथमिकता भी है. सिंधिया और पायलट ने राहुल गांधी की बात समझी और वो उनकी बात मान गए.
ये पहली बार नहीं है जब पीढ़िगत बदलाव हो रहा है. इंदिरा गांदी ने एन संजीव रेड्डी, मोरारजी देसाई, एस निजालिंगप्पा जैसे नेहरू युग के नेताओं को किनारे करके अपनी टीम बनाई थी.
राजीव गांधी ने इंदिरा गांधी के क़रीबी लोगों को किनारे करके अर्जुन सिंह, अरुण नेहरू, ऑस्कर फ़र्नांडीज़ और अहमद पटेल जैसे नेताओं को अपना क़रीबी बनाया था. सोनिया ने भी अपने सलाहकार चुने थे और अब बारी राहुल गांधी की है. इस तरह के बदलाव हमेशा होते ही रहते हैं.