इंदौर के मोह में फंसी मैडम

इंदौर के मोह में फंसी मैडम.


प्रदेश की प्रशासनिक वीथिका में मंत्रालय को वृद्धाश्रम कहा जाता है। यानी मान्यता है कि मंत्रालय में उम्रदराज अफसरों की ही पदस्थापना होती है। इस कारण कई अफसरों को मंत्रालय की आबोहवा पसंद नहीं आती है। इन दिनों एक महिला अधिकारी चर्चा में हैं, जिन्हें मंत्रालय रास नहीं आ रहा है। दरअसल, मैडम व्यावसायिक राजधानी इंदौर में एक निगम में पांच साल से प्रबंध संचालक के पद पर आसीन थीं। लेकिन अब उनका स्थानांतरण मंत्रालय में कर दिया गया है। लेकिन मैडम को मंत्रालय रास नहीं आ रहा है और वे आज भी उसी निगम की गाड़ी-बंगले और सुविधाओं का लाभ उठा रही हैं। बताया जाता है कि मैडम का इंदौर से ट्रांसफर हुए तीन महीने हो गए पर मंत्रालय में आमद दे कर वे वापस इंदौर आ गई हैं और उसी निगम के कर्मचारी उनकी सेवा चाकरी कर रहे  है। नए प्रबंध संचालक के पास अतिरिक्त चार्ज है तथा उनसे जूनियर है। अत: संकोच  में कुछ  कह नहीं पा रहे। सूत्रों का दावा है कि मैडम किसी अन्य निगम में पदस्थापना के लिए कोशिश कर रही हैं। क्योंकि मंत्रालय की आबोहवा उन्हें पसंद नहीं आई है।

आ अब लौट चलें…
मौका देखकर पासा पलटने वाले प्रदेश के एक बड़े शराब व्यावसायी के दिन इन दिनों खराब चल रहे हैं। इसकी वजह यह है कि उन्होंने अपना कारोबार इतना फैला लिया है कि उस पर हर किसी की नजर पड़ने लगी है। उक्त व्यावसायी पहले भगवा दल में थे, लेकिन तीन साल पहले सत्ता परिवर्तन के बाद उन्होंने पार्टी भी बदल ली थी। लेकिन वे जिस पार्टी में गए उसकी सरकार अधिक दिन नहीं टिक पाई। अब आए दिन अधिकारी उन्हें परेशान करते रहते हैं। आलम यह है कि कभी भी उनकी संपत्तियों की नापजोख शुरू हो जाती है।  इससे वे परेशान हो गए हैं। सूत्र बताते हैं कि अब उन्होंने एक बार फिर से अपनी पुरानी पार्टी में लौटने का मन बना लिया है, ताकि रोज-रोज की परेशानियों से निजात मिल सके। बताया जाता है कि इसके लिए उन्होंने सरकार के एक दमदार मंत्री की परिक्रमा करनी शुरू कर दी है। अक्सर उन्हें मंत्रीजी के आसपास मंडराते हुए देखा जा रहा है। अब देखना यह है कि उक्त शराब व्यावसायी की कब तक घर वापसी होती है या फिर उन्होंने पूर्व में जो गलती की है, उसे भुगतना पड़ेगा।

…यहां भी नहीं मिला सम्मान
जब भी किसी नेता को पद या कुर्सी मिलती है, वह चाहता है कि इसका भरपूर जश्न मनाया जाए।  लेकिन संघ पृष्ठभूमि के एक नेताजी को एक निगम  में अध्यक्ष की  कुर्सी मिली फिर भी उनकी यह आस पूरी नहीं हो पाई।  इसकी वजह गुटबाजी मानी जा रही है। नेताजी का संबंध संस्कारधानी से है। लंबे वक्त से हाशिए पर चल रहे इन नेताजी को संगठन ने बड़ी जिम्मेदारी दी। बताया जाता है कि नेताजी को यह जिम्मेदारी एक केंद्रीय मंत्री के साथ विधायक और संगठन में पकड़ के कारण मिली है। लेकिन नेताजी को हैरानी उस समय हुई जब स्थानीय स्तर पर उनकी नियुक्ति का रंग फीका दिखा। यहां तक की इंटरनेट मीडिया में भी चुनिंदा समर्थकों ने ही नियुक्ति की खुशी को साझा किया। खबर है कि कई नेता तो गुपचुप बधाई देने पहुंचे लेकिन फोटो खिंचवाने से परहेज किया। उन्हें डर था कि कहीं शहर में नेताजी के विरोधियों को उनका मिलना बुरा न लग जाए। सम्मान की ललक लिए नेताजी भोपाल में कुर्सी पर बैठने पहुंचे तो यहां भी उन्हें मनचाहा सम्मान नहीं मिला। अब नेताजी जांच-पड़ताल में जुट गए हैं कि आखिर इसकी वजह क्या है।

महाराज प्रेम या व्यंग्य?
अपने एक बयान से बना बनाया खेल बिगाड़ने के लिए ख्यात प्रदेश के एक कद्दावर नेता का महाराज प्रेम इन दिनों सुर्खियों में बना हुआ है। दरअसल, माननीय ने विगत दिनों एक प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित की और कहा कि मुझे हिंदू और संघ विरोधी कहा जाता है, तो मैं संघ से कहना चाहता हूं कि वह मप्र में महाराज (ज्योतिरादित्य सिंधिया) को मुख्यमंत्री बना दें तो मैं उसका विरोध करना बंद कर दूंगा। हालांकि उनकी इस बात को किसी ने गंभीरता से नहीं लिया, क्योंकि वे ऐसे शगूफे छोड़ते रहते हैं। लेकिन राजनीतिक वीथिका में नेताजी का यह बयान चर्चा में है। लोग इसे महाराज से उनका प्रेम माने या व्यंग्य किसी की समझ में नहीं आ रहा है। ऐसे बता दें कि महाराज और महल से उक्त नेताजी का शुरू से झगड़ा रहा है। इसलिए लोग यह मानकर चल रहे हैं कि नेताजी ने व्यंग्य कसा होगा कि जिस कुर्सी के लिए महाराज ने पार्टी बदली वे फिलहाल वहां तक तो नहीं पहुंचे और शायद ही भविष्य में पहुंच पाएं।

होटल संस्कृति हो रही हावी
चाल, चेहरा और चरित्र वाली पार्टी में इस समय बहुत कुछ बदल रहा है। इसमें से एक बदलाव यह दिख रहा है कि दरी और जाजम बिछाकर बैठक करने वाली पार्टी पर होटल संस्कृति हावी हो रही है। भाजपा में पहले प्रदेश कार्यकारिणी की बैठकें व प्रशिक्षण शिविर होटलों में आयोजित होते रहे हैं, क्योंकि उसमें प्रदेश भर से पदाधिकारी आते थे, लेकिन अब जिला और शहर स्तर पर होने वाली बैठकें और शिविर भी होटलों में करने की नई परंपरा शुरू हो गई है। विगत दिनों राजधानी के पड़ोसी जिले के एक होटल में जिला भाजपा के  पदाधिकारियों को प्रशिक्षण चर्चा का विषय बना हुआ है। भोपाल-इंदौर सड़क पर बने इस होटल में तीन दिनों तक पदाधिकारियों की बैठक चली। बताया जाता है कि आगामी दिनों में होने वाली बैठकों के लिए पदाधिकारियों ने अपने नेता को किसी हिलस्टेशन पर जाने की सलाह दी है। इसकी वजह यह है कि पार्टी के काम के साथ-साथ नेताओं को पर्यटन का मौका भी मिल जाता है। अब देखना यह है अगली बैठक कहां होती है।