भोपाल/मनीष द्विवेदी।मंगल भारत। सरकार भ्रष्टाचार
के मामले में जीरो टॉलरेंस का कितना भी दावा करे , लेकिन प्रदेश में स्थिति इससे उलट ही है। हालात यह हैं कि बीते एक साल में भ्रष्टाचार के मामलों में कमी आने की जगह वह तीन गुना तक बढ़ गया है। यह खुलासा हुआ है प्रदेश में इस तरह के मामलों में कार्रवाई करने वालीं लोकायुक्त और आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो (ईओडब्ल्यू) द्वारा बीते एक साल में की गई कार्रवाई से। बीते साल वर्ष 2021 में इन दोनों ही एजेंसियों ने कुल 341 भ्रष्ट अफसरों के यहां छापे मारकर उनके ठिकानों से बड़ी मात्रा में अकूत संपत्ति का पता लगाया है। खास बात यह है कि इस पूरे एक साल में सर्वाधिक भ्रष्ट अफसर राजस्व विभाग के ही पकड़े गए हैं। इस मामले में दूसरे स्थान पर पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के अफसर रहे हैं तो वहीं तीसरे स्थान पर नगरीय प्रशासन विभाग और चौथे नंबर पर गृह विभाग बना हुआ है। खास बात यह है कि यह हाल तब रहा है जब कोराना संकट की वजह से प्रदेश में न केवल लॉकडाउन रहा, बल्कि सरकारी कार्यालयों में भी काम काज प्रभावित रहा है। इसके बाद भी प्रदेश में बीत चार सालों की तुलना में सर्वाधिक भ्रष्टाचार के मामले पकड़े गए हैं।
बीते एक साल में लोकायुक्त ने जहां 250 तो ईओडब्ल्यू ने 91 मामले दर्ज किए हैं। अगर इसके पहले के साल 2020 की बात की जाए तो एक साल में महज 118 मामले ही सामने आए थे। खास बात यह है कि इनमें से भ्रष्टाचार के अधिकांश मामले वे हैं, जिनमें रिश्वत लेते कर्मचारी पकड़े गए हैं। अगर पर्याप्त अमला इन एजेंसियों के पास हो तो छापे मारने की कार्रवाई को और गति मिल सकती है। अगर ऐसा होगा तो भ्रष्टाचार के प्रकरण कई गुना सामने आएंगे। अगर ऐसे मामलों में शहरों की बात की जाए तो इस मामले में प्रदेश की आर्थिक राजधानी के रूप में पहचाना जाने वाला इंदौर शहर इस मामले में पहले स्थान पर बना हुआ है, जबकि भोपाल छठवें स्थान पर है। प्रदेश के सातों संभागों की अगर बात की जाए तो सातों संभागों में इंदौर में सर्वाधिक 53 प्रकरण दर्ज हुए हैं। इनमें से अकेले 33 मामलों में तो कर्मचारियों को रंगे हाथों रिश्वत लेते पकड़ा
गया है।
चपरासी से लेकर अफसर तक पकड़े गए
खास बात यह है कि बीते साल लोकायुक्त पुलिस द्वारा चपरासी से लेकर पटवारी, बाबू, नायब तहसीलदार, तहसीलदार और एसडीएम स्तर तक के अफसरों को पकड़ा गया है। खास बात एक और है कि पंचायत विभाग में सचिव, सरपंच और जनपद पंचायत के सीईओ तो वहीं नगरीय निकाय में बाबू से लेकर जनपद के सीईओ को रिश्वत लेते पकड़ा गया है। इसी तरह से शहरों में की गई कार्रवाई को देखें तो इंदौर के कुल 53 मामलों से 33 रिश्वत के मामले रहे हैं। इसी तरह से जबलपुर में 49 मामलों मे से41,रीवा जिले में 33 मे से 25, ग्वालियर में 31 में से 27, सागर में 31 में से 28, भोपाल में 29 में से 26 और उज्जैन में 24 से 20 मामले रिश्वत के शामिल हैं।
31 मार्च 2020 कीयह है स्थिति
बीते साल रिश्वत लेने के मामले में सबसे बड़े अफसर के रूप में डिप्टी कलेक्टर जा बतौर एसडीएम पदस्थ थे उन्हें अमले के साथ पकड़ा गया। इस मामले में रायसेन जिले की गैरतगंज तहसील में पदस्थ एसडीएम मनीष जैन के अलावा उनके कार्यालय में ओएसडी दीपक श्रीवास्तव हैं और एक प्राइवेट कंप्यूटर आॅपरेटर रामनारायण अहिरवार को भी एक साथ रिश्वत लेने के मामले में पकड़ा गया। यह रिश्वत एक क्रेशर की अनुमति देने के एवज में ली जा रही थी। इस मामले में आवेदक से एक लाख रुपए की रिश्वत मांगी गई थी।
यह हैं बेहद लापरवाह विभाग
दरअसल प्रदेश में भ्रष्टाचार के मामलों में लगाम नहीं लग पाने की बड़ी वजह है इस तरह के मामलों में शासन का लापरवाहीपूर्ण रवैया है। रसूखदार कर्मचारियों व अफसर के पकड़े जाने के बाद उन्हें निलंबित करना तो दूर उनका तबादला तक नहीं किया जाता है। यही नहीं जांच पूरी होने के बाद भी सालों तक चालान पेश करने की अनुमति भी नहीं दी जाती है।