- भतीजे और उसके साले के खिलाफ दर्ज हैं कई मामले…
भोपाल। कांग्रेस को अपने एक पूर्व पदाधिकारी का सिमी
कनेक्शन भारी पड़ सकता है। बताया जा रहा है कि आगामी विधानसभा चुनाव में भाजपा इसे बड़ा मुद्दा बना सकती है। यह पूरा मामला जबलपुर के कांग्रेस नेता शफीक अहमद के परिवार से जुड़ा हुआ है। वे कांग्रेस के जबलपुर अल्पसंख्यक मोर्चा के अध्यक्ष रह चुके हैं। इसके अलावा उनकी पत्नी फिरदौश निशा कांग्रेस के टिकट पर पिछली बार पार्षद भी रही हैं। दरअसल विवाद की वजह बन रहे हैं उनके कई पारिवारिक सदस्यों के अलावा करीबी रिश्तेदारों का प्रतिबंधित आतंकी संगठन सिमी से संपर्क रहना। शफीक के भतीजे मोहम्मद अली सिमी के पूर्व सदस्य हैं और उसके खिलाफ जबलपुर में चार और अहमदाबाद में एक प्रकरण दर्ज है। यह प्रकरण भी गंभीर प्रकृति के हैं। इनमें हत्या के अलावा यूएपीए की कई धाराओं वाले मामले दर्ज हैं। शफीक के एक भाई मुहर्रम अली पेशे से वकील हैं। वे मोहम्मद अली के पिता हैं। मुहर्रम द्वारा ही सिमी के प्रकरणों की पैरवी की जाती है। उनके बारे में कहा जाता है कि वे लगातार सभी सिमी और इंडियन मुजाहदीन के सदस्यों के परिजनों के संपर्क में रहते हैं। यही नहीं बताया जाता है कि मोहम्मद अली का एक साला मो शफीक भी गुजरात में इसी तरह के दो मामलों में आरोपी रह चुका है।
यह मामले हैं दर्ज
मोहम्मद अली के खिलाफ जबलपुर में चार मामले दर्ज हैं। इन चारों अलग-अलग मामलों को देखें तो गोहलपुर थाने में अलग-अलग समय पर उसके खिलाफ आईपीसी की धारा 13-ए, 13 यूएपीए , 147,148, 295 ए, 353,332,और 186 आईपीसी के अलावा 3,10,13 यूएपीए 120 ए,153ए, 153बी 295ए 34 आईपीसी के तहत दर्ज हैं। इसके अलावा उस पर एक मामला गुजरात के अहमदाबाद में भी दर्ज है। यह मामला 302, 307, 121बी,के अलावा 16,18,19,20, यूएपीए के तहत दर्ज है। यह सभी मामले फिलहाल कोर्ट में लंबित हैं।
किस मामले में लगाई जाती है धारा 153
भारतीय दंड संहिता की धारा 153 के अनुसार, जो भी कोई अवैध बात करके किसी व्यक्ति को द्वेषभाव या बेहूदगी से प्रकोपित करने के आशय से या यह सम्भाव्य जानते हुए करेगा कि ऐसे प्रकोपन के परिणामस्वरूप उपद्रव का अपराध हो सकता है। यदि ऐसे प्रकोपन के परिणामस्वरूप उपद्रव का अपराध होता है, तो उसे किसी एक अवधि के लिए कारावास की सजा जिसे एक वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है, या आर्थिक दण्ड या दोनों से दण्डित किया जाएगा, और यदि उपद्रव नहीं होता है – यदि उपद्रव का अपराध नहीं होता है, तो उसे किसी एक अवधि के लिए कारावास की सजा, जिसे छह मास तक बढ़ाया जा सकता है, या आर्थिक दण्ड या दोनों से दण्डित किया जाएगा।
क्या है यूएपीए
यूएपीए की धारा 18, 19, 20, 38 और 39 के तहत केस दर्ज होता है. धारा 38 तब लगती है जब आरोपी के आतंकी संगठन से जुड़े होने की बात पता चलती है। धारा 39 आतंकी संगठनों को मदद पहुंचाने पर लगाई जाती है। इस एक्ट के सेक्शन 43ष्ठ (2) में किसी शख्स की पुलिस कस्टडी की अवधि दोगुना करने का प्रावधान है। इस कानून के तहत पुलिस को 30 दिन की कस्टडी मिल सकती है, वहीं न्यायिक हिरासत 90 दिन की भी हो सकती है। बता दें कि अन्य कानूनों में अधिकतम अवधि 60 दिन ही होती है। इस कानून के तहत किसी व्यक्ति पर शक होने मात्र से ही उसे आतंकवादी घोषित किया जा सकता है। इसके लिए उस व्यक्ति का किसी आतंकी संगठन से संबंध दिखाना भी जरूरी नहीं है। आतंकवादी का टैग हटवाने के लिए उसे कोर्ट की बजाय सरकार की बनाई गई रिव्यू कमेटी के पास जाना होगा। हालांकि बाद में कोर्ट में अपील की जा सकती है।