महिला अपहरण के मामले में प्रदेश की पुलिस कर रही सरकार की मंशा के खिलाफ काम…
भोपाल/मंगल भारत।मनीष द्विवेदी।भले ही स्वयं सूबे
के मुखिया और उनकी सरकार महिला अपराधों के मामलों में गंभीर बनी हुई है, लेकिन प्रदेश का पुलिस महकमा इससे इत्तेफाक नहीं रखता है। यही वजह है कि पुलिस महकमे ने बीते एक साल के अंदर ही इस तरह के हजारों मामलों से छुटकारा पाने के लिए नियमों की अनदेखी करते हुए उनमें खात्मा तक लगा दिया है। यह वे मामले हैं जिनमें महिलाओं से लेकर मासूम बच्चियां गायब हुई हैं। इनकी शिकायत पर पुलिस ने प्रकरण तो दर्ज किए , लेकिन उनमें न तो गायबों की तलाश की गई और न ही आरोपियों के बारे में कोई सुराग ही लगाया गया। महिलाओं और मासूम बच्चियों के अपहरण से जुड़े करीब साढ़े चार हजार प्रकरणों में पुलिस ने अदालतों में खात्मा और खारजी पेश कर दी है। प्रदेश में यह पहला मौका है जब महिला अत्याचारों से जुड़े इतने अधिक मामलों में खात्मा और खारजी पेश की गई है। दरअसल माना जा रहा है कि पुलिस द्वारा इस तरह का कदम पेंडेसी कम दिखाने की नियत से उठाया गया है। खास बात यह है कि यह सभी मामले बीते साल यानी कि वर्ष 2021 में दर्ज किए गए थे। यह खुलासा मैदानी पुलिस अफसरों की ओर से पीएचक्यू को भेजी गई रिपोर्ट में हुआ है। इन सभी मामलों में पुलिस द्वारा महिला अपराध होने की वजह से आईपीसी की धारा 363, 366 के तहत प्रकरण दर्ज किया था। पुलिस ने इन मामलों में एफआईआर दर्ज करने के बाद चालान ही पेश नहीं किया है। नियमानुसार अदालत में पेश किए जाने वाले चालान में पुलिस को अपहरण से संबंधित सबूतों को भी बताना होता है। आंकड़े बताते हैं कि पुलिस द्वारा अपहरण के 1468 प्रकरणों में खात्मा और 2859 प्रकरणों में खारजी पेश की गई है।
क्या कहता है नियम
नाबालिग बच्चियों के अपहरण से जुड़े अपराधों में बच्ची के नहीं मिलने तक और महिलाओं को अगवा किए जाने के सात साल तक खात्मा रिपोर्ट अदालत में पेश नहीं करने का नियम है। अपहरण से जुड़े मामलों में खात्मा और खारजी पेश करने के मामले में पुलिस द्वारा इन नियमों की भी पूरी तरह से अनदेखी की गई है। पुलिस द्वारा जिन मामलों में खात्मा और खारजी पेश की गई है उसका सीधा फायदा संबधित आरोपियों को मिलना तय है। इसकी वजह से पीड़ित परिवारों को न्याय की आस भी टूट चुकी है। यह हाल तब हैं जबकि मध्यप्रदेश सरकार महिला अत्याचारों पर अंकुश लगाने के लिए पूरी संजीदगी की बात करती है और मैदानी पुलिस अफसर उसे ठेंगा दिखाकर पीड़ितों के साथ मजाक करने में पीछे नही हैं।
पुलिस मुख्यालय जता चुका है नाराजगी: अपहरण के प्रकरणों में खात्मा और खारजी पेश करने के मामलों में मैदानी अफसरों की कार्यशैली पर पुलिस मुख्यालय द्वारा गहरी नाराजगी जताई गई है। एडीजी महिला अपराध प्रज्ञा ऋचा ने भोपाल और इंदौर के पुलिस के कमिश्नर समेत सभी जिलों के एसपी को इस संबध में पत्र लिखकर कहा है कि पीएचक्यू की ओर से दिए गए निर्देश के बाद भी एक साल में इतनी बड़ी संख्या में खात्मा और खारजी पेश करना संभव नहीं है। इससे लगता है कि खात्मा और खारजी के अंतर को ठीक से नहीं समझा गया है।
यह भी दिए गए निर्देश
पुलिस मुख्यालय द्वारा लिखे गए पत्र में कहा गया है कि धारा 363, 366 आईपीसी में फरियादी को जब ऐसा प्रतीत होता है कि उसके द्वारा संरक्षित व्यक्ति का अपहरण हुआ है, तब वह एफआईआर कराता है, ना कि उसका किसी व्यक्ति के विरुद्ध क्षति कारित का उद्देश्य होता है। इसलिए धारा 363, 366 के अपहरत अथवा दस्तयाब होने के बाद जब महिला या बच्ची यह बयान देती है कि वह अपनी स्वेच्छा से गई थी, उसके साथ कोई अपराध घटित नहीं हुआ है, तब खात्मा नहीं कर खारजी पेश की जाए। ऐसे प्रकरणों में आईपीसी की धारा 182, 211 के तहत कार्रवाई नहीं की जाए।
यह है पुलिस नियमावली: पुलिस रेगुलेशन का पैरा क्रमांक-786,787,788 में कहा गया है कि जिन प्रकरणों में विवेचना उपरांत यह सिद्ध होता है कि अपराध घटित नहीं हुआ, जिनमें झूठा अपराध कायम कराया जाना शामिल है, उन अपराधों में खारजी पेश की जाती है। इसी तरह से ऐसे प्रकरण, जिनमें अपराध तो हुआ है, लेकिन विवेचक उसे साबित करने में असफल रहा है अथवा तमाम प्रयासों के बावजूद आरोपी को गिरफ्तार करने में सफलता नहीं मिलती है, उनमें खात्मा पेश किया जाए। खारजी पेश करने में यह जरूरी नहीं कि धारा 182 और 211 आईपीसी के तहत प्रकरण दर्ज किया जाए। नियमावली में उल्लेख है कि खारजी की कार्रवाई दो तरह से होनी चाहिए। एक-जहां अपराध घटित होने का संदेह था, लेकिन विवेचना में यह पाया जाए कि अपराध घटित नहीं हुआ है। दो-जहां अपराध की विवेचना के बाद यह पाया जाए कि अपराध का पंजीयन किसी व्यक्ति को क्षति कारित करने के उद्देश्य से द्वेषवश और जानबूझकर कराया गया है।