माननीय की मंशा रह गई अधूरी

माननीय की मंशा रह गई अधूरी.


मप्र विधानसभा का बजट सत्र समय से पहले समाप्त हो गया। इसको लेकर कांग्रेस के विधायक विरोध का प्रहसन कर रहे हैं, लेकिन असल में एक विधायक जरूर ऐसे हैं, जिन्हें इसका सबसे अधिक दुख है। दरअसल, माननीय को इस सत्र से काफी उम्मीद थी। सूत्रों का कहना है कि विधायक महोदय को विधानसभा की एक महत्वपूर्ण समिति का सबसे बड़ा पद मिलना तय था। संभवत: विधानसभा का सत्र एक-दो दिन और चलता तो माननीय की लॉटरी लग सकती थी, लेकिन सत्र के समापन साथ ही उनकी मंशा पर भी पानी फिर गया। सूत्रों का कहना है कि सरकारी गतिविधियों को देखते हुए कांग्रेस विधायकों को कहा गया था कि वे सदन में हंगामा न करें, लेकिन किसी ने सलाह नहीं मानी और सत्र स्थगित हो गया। साथ ही महाकौशल के बड़े राजनेता की मनोकामना पर भी आगामी सत्र तक विराम लग गया है। बता दें कि माननीय जिस पद को चाहते थे, उस पर उन्हीं की पार्टी के एक विधायक काबिज हैं।

कई चेहरे हो सकते हैं बेनकाब
जबलपुर मेडिकल यूनिवर्सिटी में पदस्थ चिकित्सक दंपत्ति के यहां ईओडब्ल्यू के छापे में आय से अधिक संपत्ति के साथ ही ऐसे कई दस्तावेज मिले हैं जो कई चेहरों को बेनकाब कर सकते हैं। गौरतलब है कि प्रदेश में व्यापमं घोटाले की तरह जबलपुर स्थित मेडिकल यूनिवर्सिटी में फेल-पास का एक ऐसा खेल खेला गया है, जिससे कई अयोग्य डॉक्टर बन गए जबकि योग्य छात्रों को फेल कर दिया गया। इस घोटाले में बड़े स्तर पर लेन देन हुआ है। आय से अधिक मामले में प्रोफेसर दंपती के घर पर ईओडब्ल्यू की सर्चिंग की जांच मेडिकल विवि में हुए परीक्षा घोटाले तक जा सकती है।  प्रोफेसर दंपती के पास मिली बेनामी संपत्ति आखिर कहां से और कैसे जुटाई गई है की जांच में मेडिकल विवि में हुए परीक्षा सहित अन्य घोटाले की परत सामने आ सकती है। इस जांच में कई चेहरे बेनकाब हो सकते हैं।

कलेक्टर का जुनून औरों पर भारी
बुंदेलखंड अंचल के छतरपुर जिले के कलेक्टर संदीप जीआर का जुनून जिले के अन्य अधिकारियों-कर्मचारियों पर भारी पड़ने लगा है। 2013 बैच के यह आईएएस अधिकारी अभी तक अपनी सायकिल सवारी के लिए पहचाने जाते थे, लेकिन अब इन पर सफाई का जुनून सवार है , जिसकी वजह से वे देर रात निरीक्षण और सफाई व्यवस्था की परख करने निकल पड़ते हैं। जहां खोट मिलने पर संबंधितों और अधीनस्थों को खरी-खोटी सुनाने से भी नहीं चूकते। जल स्त्रोत तालाबों और शहर में फैली गंदगी, अव्यवस्थाओं को देखकर कलेक्टर न नाराजगी जाहिर करते हैं, बल्कि संबंधितों को उसी समय मौके पर ही तलब कर लेते हैं। साहब के इस जुनून से जिला प्रशासन और नगर पालिका के अधिकारी सांसत में हैं। न जाने कब साहब का कहां से फोन आ जाए और उन्हें जाना पड़े। कई तो उनकी जिले से विदाई की प्रार्थना भी करने लगे हैं।

कहीं का गुस्सा कहीं और …
प्रदेश की राजनीतिक और प्रशासनिक वीथिका में इनदिनों के एक महिला मंत्री का गुस्सा चर्चा में बना हुआ है। इसकी एक वजह यह है कि मंत्री के पास जो प्रमुख विभाग है, वहां उनकी कोई नहीं सुनता है। स्थिति यह है कि उस विभाग में या सरकार के पास वे जो भी काम का प्रस्ताव भेजती हैं, उसे फाइलों में दबा दिया जाता है। इस कारण उक्त मंत्री इस कदर चिड़चिड़ी हो गई हैं कि वे कहीं का गुस्सा कहीं और निकाल रही हैं। विगत दिनों वे अपने दूसरे विभाग में पहुंचीं। वे बिना सोचे-समझे उक्त विभाग के प्रमुख सचिव पर पिल पड़ीं। मंत्री का धारा प्रवाह गुस्सा बढ़ता देख प्रमुख सचिव भी अपनी पर उतर आए और उन्हें टोकते हुए कहा कि आप गलत जगह आ गई हैं। वैसे आप जैसा चाहती हैं, वैसा काम कोई विभाग नहीं कर पाएगा। अधिकारी कायदे-कानून में बंधे होते हैं। इसलिए कोई भी काम नियमों के तहत ही होगा। आप दूसरी जगह का गुस्सा हमारे ऊपर क्यों निकाल रही हो। प्रमुख सचिव से मिले उपदेश के बाद उक्त महिला मंत्री शांत हुईं।

आका की भी नहीं चली
ग्वालियर-चंबल अंचल के एक जिले के पुलिस अधीक्षक की पदस्थापना इन दिनों चर्चा का विषय बनी हुई है। चर्चा इसलिए हो रही है कि 2008 बैच के एक प्रमोटी आईपीएस ने अपने राजनीतिक आका से सिफारिश करवाई थी कि उन्हें उक्त जिले का एसपी बनवा दें। उक्त कद्दावर नेता ने इसकी अनुशंसा कर दी और उन्हें उस जिले का पुलिस अधीक्षक बना दिया गया, लेकिन ज्वाइनिंग से पहले उन्हें रसीद कटवाने को कहा गया। उक्त प्रमोटी आईपीएस को शुरू में तो कुछ समझ में नहीं आया, लेकिन बुलाई गई जगह पर जब वे पहुंचे तो उनसे मोटी रकम की मांग कर दी गई। साथ ही एहसान भी जताया गया कि उक्त वरिष्ठ नेता के कारण तुमसे छोटी रकम ली जा रही है, वरना कई अधिकारी मोटी-मोटी रकम देकर जिले में उक्त कुर्सी लेना चाहते हैं। बेचारे आईपीएस को अपने नेताजी का मान रखने के लिए रसीद कटवानी पड़ी, तब जाकर उसे जिले की कमान सौंपी गई।

न इधर के हुए न उधर के हम
यह शेर तो आपने सुना और पढ़ा ही न होगा कि खुदा मिला न विसाल ए सनम, न इधर के हुए न उधर के हम कुछ ऐसी ही स्थिति महाकाल की नगरी में पदस्थ रही एक महिला पुलिस अधिकारी की है।  उज्जैन में माफियाओं के खिलाफ होने वाली कार्रवाई को लेकर उक्त महिला अधिकारी को प्रभारी अधिकारी बनाया गया था। उनकी उपस्थिति उन सभी स्थानों पर देखी गई, जहां पर माफियाओं के मकान जमींदोज किए गए। इसलिए पुलिस महकमे में ही नहीं बल्कि आम लोगों के बीच भी बुलडोजर सीएसपी के नाम से चर्चित रहीं थीं, लेकिन अचानक एक दिन उन पर होटल कर्मचारी के खाते से पांच करोड़ के ट्रांजैक्शन के मामले में लाखों रुपए की रिश्वत मांगने के आरोप लगे। बताया जाता है कि मैडम को रकम मिलती उससे पहले ही मामला उजागर हो गया और मैडम को पुलिस मुख्यालय में अटैच कर दिया गया। अब मैडम उपरोक्त शेर गुनगुना रही हैं।