- रोजमर्रा की जिंदगी हुई मुहाल….
भोपाल/मंगल भारत।मनीष द्विवेदी। वैश्विक महामारी
कोरोना के बाद महंगाई आफत बनकर मानो टूट पड़ी है। हालात यह है कि रसोई का बजट तो बिगड़ा ही है साथ ही बच्चों की पढ़ाई तक मुश्किल बनती जा रही है। खाने पीने के सामान से लेकर दवाएं और कापीं किताबें तक बेहद मंहगी हो चुकी हैं। इसकी सबसे बढ़ी वजह है पेट्रोल-डीजल की लगतार बढ़ रही कीमतें, जिसकी वजह से बाजार पर भी सीधा असर पड़ रहा है। चावल- आटा से लेकर साबुन-सर्फ समेत सभी सामान के दाम बढ़ गए हैं। स्कूल फीस, कोचिंग फीस, दवा, बस-टेंपो का किराया भी बढ़ा है। महंगाई से आम व खास सबका बजट गड़बड़ा गया है। दो माह में 15 से 20 फीसदी तक हर परिवार का खर्च बढ़ गया है। लोगों की जेब हल्की हो रही है। बजट में कटौती कर लोग अनावश्यक खर्च से बच रहे हैं। कोचिंग की फीस बढ़ाने के पीछे कोचिंग संचालकों का तर्क है कि पहले आॅनलाइन पढ़ाई करवा रहे थे, जिसमें खर्चा कम आ रहा था। अब सब आॅफलाइन हो गया है और किराया खर्चा बढ़ गया है। डीजल की कीमत बढ़ने का सीधा असर परिवहन पर पड़ा है। छह माह के भीतर चावल पर चार व आटा की दो रुपए प्रतिकिलो कीमत बढ़ी है। हालांकि पिछले कुछ दिनों से तिलहन के दाम लगातार घट रहे हैं, जो सरसों तेल (सलोनी) 190 रुपए लीटर था, वह आज 166-170 रुपए लीटर हो गया है। महिलाओं का सजना व संवरना भी महंगा हो गया है। कॉस्मेटिक की कीमत में 20 फीसदी तक की बढ़ोतरी हो चुकी है। इस वजह से सौंदर्य प्रसाधन की बिक्री थोड़ी प्रभावित हुई है। चूड़ी की कीमत भी बढ़ गई है।
डीजल की कीमत बढ़ने से ट्रांसपोर्टेशन चार्ज महंगा हो गया है। दो माह में लगभग 20 फीसदी तक ट्रांसपोर्टेशन चार्ज महंगा हो गया है। जैसे- जैसे डीजल की कीमत बढ़ रही है, वैसे-वैसे ट्रांसपोर्टेशन महंगा होता जा रहा है। इसकी वजह से सामान की कीमतों में भी वृद्वि हो रही है। इससे रोजमर्रा के सामान की कीमतें भी अछूती नहीं रही हैं। पिछले दो माह में इन सामानों की कीमत 25 फीसदी तक बढ़ चुकी है। साबून, सर्फ से लेकर टूथपेस्ट के दाम भी इससे अछूते नहीं रहे हैं।
नीबू के रस से महरुम हो रहे लोग
त्योहारी सीजन में सब्जियां भी भाव खा रही हैं। नीबू के नखरे तो सातवें आसमान पर जा पहुंचे हैं। नवरात्रि खत्म हो गए हैं, रामनवमी भी हो गई, लेकिन अभी रमजान का महीना चल रहा है, परंतु सब्जियों के भाव घटने के बजाय लगातार बढ़तेू ही जा रहे हैं। इसके पीछे आवक में कमी और मांग अधिक होना बताया जा रहा है। एक सप्ताह पहले तक भिंडी, तोरई, करेला 40 से 60 रुपए किलो तक बिके, लेकिन अब यह सभी सब्जियां 80 से 100 रुपए प्रति किलो के भाव बिक रही हैं। यही नहीं, नींबू 250 रुपए किलो के भाव पहुंच जाने से ज्यादातर लोग विक्रेताओं से उसका मोलभाव कर आगे बढ़ रहे हैं। हरी मिर्च, चुकंदर, खीरा के दाम पहले से चढ़े होने के कारण सलाद भी भोजन से दूरी बनाने लगी है। दो माह पहले एक परिवार (हम व हमारे तीन) में राशन पर आठ हजार रुपए खर्च होते थे, अब वह खर्च बढकर लगभग 11 हजार रुपए हो गया है। रसोई गैस की कीमत भी बढ़ गई है। दो माह पहले 905 रुपए में रसोई गैस आती थी। आज इसकी कीमत बढकर 955 रुपए हो गई है। गृहिणियाँ भी अपनी रसोई के बजट में कटौती कर रहीं हैं। गृहणियां जहां दो से तीन सब्जियां परोसती थीं, अब एक सब्जी से काम चला रहीं हैं।
मध्यम वर्ग महंगाई से सबसे ज्यादा प्रभावित
कोरोना काल में सरकारी कर्मचारियों को नियमित महंगाई भत्ता मिल रहा है, जबकि प्राइवेट कंपनियों में काम करने वाले लोगों की या तो नौकरी चली गई या वे कम वेतन पर काम करने को मजबूर हुए हैं। महंगाई का असर सबसे ज्यादा ऐसे ही परिवारों पर पड़ा है। गरीब परिवार को सरकार की ओर से लगातार मदद मिल रही है और अमीर को महंगाई से कोई लेना-देना नहीं है। महंगाई की मार से मध्यम वर्गीय परिवार पूरी तरह पिस रहा है।