इस बार कांग्रेस जयस व गोंगपा के साथ मिल कर लड़ सकती है चुनाव

अभी हीरालाल अलावा हैं कांग्रेस के विधायक.

भोपाल/मनीष द्विवेदी।मंगल भारत। प्रदेश में बीते कई सालों से आदिवासी इलाकों में सक्रिय जयस व गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के साथ मिलकर कांग्रेस इस बार विधानसभा चुनाव लड़ सकती है। अगर ऐसा होता है तो मालवा व निमाड़ के अलावा महाकौशल में भाजपा के लिए बेहद मुश्किल खड़ी हो सकती है।
कांग्रेस का इन दोनों दलों के साथ चुनावी गठबंधन की संभावना की मुख्य वजह आदिवासी मतों का विभाजन रोकना माना जा रहा है। यह बात अलग है की अब तक इस तरह के गठबंधन को लेकर कोई घोषणा नही हुई है, फिर भी जिस तरह से बीते आम चुनाव में जयस के राष्ट्रीय संरक्षक एवं कांग्रेस विधायक डॉ हीरालाल अलावा ने कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा था उसकी वजह से इसी तरह की संभावनाएं अधिक बनी हुई हैं। दोनों दल एक साथ मिलकर चुनावी मैदान में उतरते हैं तो माना जा रहा है की मालवा में तो भाजपा को बड़ा नुकसान होगा ही साथ ही कई अन्य अंचलों की आदिवासी बाहुल्य सीटों पर भी मुश्किल हो सकती है। इस तरह की बन रही संभावनाओं की वजह से भाजपा के खैमा सकते में बताया जा रहा है।
जयस के बढ़ते प्रभाव से धार झाबुआ अलीराजपुर, बड़वानी, रतलाम और खरगोन जिलों की विधानसभा क्षेत्रों में भाजपा की जीत के समीकरण बिगड़ सकते हैं। सूत्रों की माने तो यही वजह है की प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने जयस को लेकर रणनीति बनाने का काम गुपचुप तरीके से करना शुरू कर दिया है। दरअसल अगले विधानसभा चुनाव में वे कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते हैं। यदि कमलनाथ और जयस के बीच चुनावी गठबंधन हो जाता है तो भाजपा का सत्ता में बने रहने का सपना अधूरा रह सकता है। आदिवासी क्षेत्रों के विधायकों एवं पूर्व विधायकों का मानना है कि जयस की ताकत उनके लिए मुश्किल भरी बनी हुई है। माना जा रहा है की इस संभावना के चलते भाजपा भी गुपचुप तरीके से इसकी काट के लिए योजना बनाने में लगी हुई है। उसके इस काम में संघ भी मदद कर रहा है। दरअसल पंचायतों के चुनाव में मिली सफलता के बाद जयस के पदाधिकारी आत्मविश्वास से लबरेज नजर आ रहे हैं। यही वजह है कि कांग्रेस विधायक डॉ. हीरालाल अलावा आदिवासी प्रभावित 84 विधानसभा क्षेत्रों में जयस के पक्ष में माहौल बनाने में लगे हुए हैं। दरअसल कांग्रेस के रणनीतिकार जानते हैं कि अगर किसी कारण वश जयस से गठबंधन नहीं हुआ तो इसका फायदा न केवल भाजपा को मिलेगा बल्कि जयस के भी कई जगहों पर प्रत्याशी जीत सकते हैं। ऐसे में जयस के सामने भाजपा के साथ जाने का विकल्प भी खुला रहेगा। जयस अगर अकेले ही चुनावी मैदान में उतरती है तो खरगोन में झूमा सोलंकी कमलनाथ के किचन केबिनेट विधायक रवि जोशी तक को हार का समाना करना पड़ सकता है। इसी प्रकार भगवानपुरा विधानसभा क्षेत्र भी जयस कांग्रेस के वोट बैंक में सेंध लगा सकती है। रतलाम की सैलाना और रतलाम ग्रामीण विधानसभा क्षेत्र में भी जयस की चुनौति का सामना करना पड़ सकता है। इसी प्रकार कुंक्षी, धरमपुरी, गंधवानी, सरदारपुर, जोबट, झाबुआ, पेटलावद, सेंधवा, घोड़ाडोंगरी और भैंसदेही विधानसभा क्षेत्रों में भी जयस जीत के समीकरण को बिगाड़ रही है। जयस की इस तरह की चुनौति को देखते हुए ही बीजेपी ने जनजागृति संगठन जैसा सामाजिक संगठन बनाकर उसे सक्रिय कर दिया है।
इसलिए बड़ी मुसीबत
प्रदेश में आदिवासियों की बड़ी आबादी होने से 230 विधानसभा में से 84 सीटों पर उनका सीधा प्रभाव है। 2013 में इनमें से बीजेपी को 59 सीटों पर जीत मिली थी। 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को 84 में से 34 सीट पर जीत मिली थी। उसकी 25 सीटें कम हो गईं। इस वजह से बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा था। प्रदेश में 2013 के विधानसभा चुनाव में आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित 47 सीटों में से भाजपा ने 31 सीटें जीती थी। वहीं, कांग्रेस के खाते में 15 सीट आईं। 2018 के चुनाव में आरक्षित 47 सीटों में से भाजपा सिर्फ 16 पर ही जीत दर्ज कर सकी। कांग्रेस ने 30 सीटें जीत ली थीं। एक पर निर्दलीय प्रत्याशी ने जीत दर्ज की थी। ऐसे में इन सीटों पर जयस की संख्या बढ़ती है तो बीजेपी और कांग्रेस के लिए सरकार बनाने की चुनौती होगी। इसी तरह से अगर तीसरे दलों की बात की जाए तो भले ही प्रदेश को दो दलीय राजनीति का प्रदेश माना जाता है, लेकिन बीते आम चुनाव में प्रदेश की 40 फीसदी सीटों पर तीसरी ताकत ने भी अपना खेल दिखाया था। सिर्फ 7 सीटें ऐसी हैं, जहां गैर कांग्रेसी-गैर भाजपाई विधायक जीत पाए हैं, लेकिन 85 सीटों पर इन्होंने इन दोनों पार्टियों के जीत के समीकरण चौपट कर दिया था। यही वजह है की बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही राजनीतिक दल आदिवासी वोटरों को साधने में जुटे
हुए है।
गोंगपा का दो अंचलों में प्रभाव
महाकौशल और विंध्य क्षेत्र में सबसे ज्यादा तीसरी पार्टी के रूप में सबसे ज्यादा वोट गोंडवाना गणतंत्र पार्टी (जीजीपी) को मिले थे। इन क्षेत्रों के करीब 18 विधानसभा सीटों पर जीजीपी भाजपा-कांग्रेस के बाद वोट हासिल कर दूसरे और तीसरे स्थान पर रही थी । जीजीपी को अमरवाड़ा में 61 हजार वोट मिले थे, जबकि ब्यौहारी में इस पार्टी को 45 हजार वोट मिले हैं। गुढ़, मैहर, शहपुरा, बिछिया विधानसभा में जीजीपी प्रत्याशियों को तीस- तीस हजार से अधिक वोट मिले थे।