पढ़े-लिखे आदिवासी ही बना सकेंगे हेरिटेज मदिरा

हेरिटेज मदिरा के निर्माण और बिक्री की गाइड लाइन तय

भोपाल/मंगल भारत।मनीष द्विवेदी। प्रदेश में बहुप्रतीक्षित हेरिटेज मदिरा के निर्माण और बिक्री के लिए सरकार ने गाइड लाइन तय कर दी है। इसके तहत सरकार जनजातीय समाज के पढ़े-लिखे युवाओं को प्रोत्साहित करना चाहती है। इसलिए मप्र हेरिटेज मदिरा नियम-2023 के नए नियमों में ये तो तय है कि महुआ से दारू बनाने की अनुमति अनुसूचित जनजाति वर्ग से जुड़े स्व-सहायता समूह यानी एसएचजी को ही मिलेगा। ये दारू भी जनजातीय बहुल क्षेत्रों में ही बनेगी जो कि पहले से ही अधिसूचित है। नए नियम में राज्य सरकार ने जनजाति वर्ग के लोगों में लिखाई- पढ़ाई करने वालों को भी प्रोत्साहित करने का बंदोबस्त किया है। अब ऐसे किसी एसएचजी को हेरिटेज मदिरा बनाने की अनुमति नहीं मिलेगी, जिसके कम से कम 25 फीसदी सदस्य 10वीं तक या उसके बराबर की योग्यता न रखते हों। वाणिज्यिक कर विभाग ने नए नियमों को लेकर अधिसूचना जारी कर दी है। हेरिटेज मदिरा बनाने के लिए एसएचजी के लिए जो मापदंड तय किए हैं, उस हिसाब से स्व सहायता समूह में 10 से 20 तक सदस्य होना चाहिए। साथ ही इस समूह में 50 फीसदी महिलाएं होंगी, तभी समूह को महुए की दारू बनाने के लिए लाइसेंस मिल सकेगा। ये भी जरुरी किया है कि समूह के सदस्य उसी जनपद क्षेत्र के निवासी होना चाहिए जिस जनपद क्षेत्र के तहत हेरिटेज मदिरा बनाने की यूनिट लगाई जा रही है। अधिसूचित क्षेत्रों में हेरिटेज मदिरा बनाने के लिए लाइसेंस जारी करने का अधिकार कलेक्टर को होगा। इसके लिए समूह को आवेदन करना होगा। इसी तरह लाइसेंस लेने के बाद 6 तरह की अनुमति लेने की जिम्मेदारी भी यूनिट लगाने वाले समूह की होगी। इसमें एफएसएसएआई का पंजीयन प्रमाण पत्र, प्रदूषण नियंत्रण मंडल का अनापत्ति प्रमाण पत्र, विद्युत सुरक्षा प्रमाण पत्र, फायर सुरक्षा को लेकर प्रमाण पत्र, बॉयलर सुरक्षा प्रमाण पत्र और स्थानीय निकाय की अनापत्ति प्रमाण पत्र भी लेना अनिवार्य किया गया है। यदि इसमें से कोई एक भी प्रमाण पत्र समूह को नहीं मिला तो फिर वे हेरिटेज मदिरा बनाने के लिए योग्य नहीं होंगे। इसी तरह जो लायसेंस जारी किया जाएगा उस न तो किसी को बेचा जा सकेगा और न ही बंधक रखा जा सकेगा और न ही गिरवी रख सकेगा। इतना ही नहीं उसे पट्टे पर देने का भी अधिकार बिना आबकारी आयुक्त की अनुमति के नहीं होगा।
निर्माण और पैकिंग को लेकर कड़े नियम
नए नियमों में जो प्रावधान किया गया है उस हिसाब से यूनिट का पहले चार अफसरों द्वारा मुआयना किया जाएगा। पहले वर्ष में 1000 लीटर उत्पादन की ही अनुमति होगी, लेकिन यदि यूनिट का परफार्मेंस ठीक रहता है तो फिर एक वर्ष बाद आवेदन करने पर क्षमता बढ़ाकर 2000 लीटर करने की अनुमति मिल सकती है। हेरिटेज मदिरा यानी महुए से बनी दारू की पैकेजिंग कैसे होगी, ये भी नियम में तय कर दिया गया है। इसे केवल 750 एमएल की बोतल में ही पैक किया जा सकेगा। ये बोतल कांच की होगी। इतना जरुर है कि जो हेरिटेज मदिरा विदेश में बेचने के लिए तैयार की जाएगी, उसके लिए जरूर अलग तरह के कंटेनर्स में पैक किया जा सकेगा। हेरिटेज बनाने वाले अपने ब्रांड का लेबल भी बोतल पर चाहिए। इसमें समूह को उसमें मिलाए गए तत्वों की पूरी जानकारी भी देनी होगी। बोतल पर हेरिटेज महुआ मदिरा के साथ ही मप्र भी लिखना अनिवार्य होगा। उसमें बनाने की तिथि, जिस स्व सहायता समूह ने बनाया है उसके नाम का भी उल्लेख करना होगा। एक तरफ सरकार हेरिटेज मदिरा के उत्पादन को प्रोत्साहित करने के लिए नए नियम तय कर रही है, वही दूसरी तरफ शराब के सेवन को हतोत्साहित करने वाले संदेश भी दे रही है। नए नियमों के तहत बोतल पर ये लिखना होगा कि शराब का सेवन स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।
अलीराजपुर-डिंडोरी में यूनिट
सरकार ने पिछले साल आबकारी नीति में हेरिटेज शराब के निर्माण के लिए अलीराजपुर और डिंडोरी को पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर चुना था। अलीराजपुर और डिंडोरी में आदिवासी स्व सहायता समूहों द्वारा हेरिटेज शराब बनाने की यूनिट लगाई गई हैं। अलीराजपुर में हनुमान आजीविका स्व सहायता समूह ने हेरिटेज शराब का उत्पादन शुरू कर दिया है। हेरिटेज शराब के ब्रांड को मोन्ड नाम दिया गया है। हेरिटेज शराब 750 मिलीलीटर की पैकिंग में उपलब्ध होगी। डिंडोरी यूनिट से हेरिटेज शराब का उत्पादन अभी शुरू नहीं हो पाया है। दरअसल, मप्र देश का पहला राज्य है, जो महुए से शराब का निर्माण कर उसे वैध तरीके से बेचने जा रहा है।