आदिवासियों के सहारे सत्ता पाने की कांग्रेस की तैयारी

9 जून को हरसूद से चुनावी शंखनाद करेगी कांग्रेस.

भोपाल/मंगल भारत।मनीष द्विवेदी। मप्र में सरकार बनाने के लिए आदिवासी वोटर्स निर्णायक हैं। आदिवासी वोट बैंक जिसके साथ हुआ, वो सत्ता पर काबिज होता है। इसलिए भाजपा-कांग्रेस ने उन 84 सीटों पर फोकस बढ़ा दिया है, जहां आदिवासी वोटर किसी को जिताने-हराने का माद्दा रखते हैं। इनमें से 47 सीटें रिजर्व हैं। इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव के मिशन को अब कांग्रेस भी फतह करने की तैयारी में जुटी हुई नजर आ रही है। चुनाव की तैयारियों में जुटी कांग्रेस का सबसे ज्यादा-फोकस आदिवासी सीटों पर है। कांग्रेस 9 जून को भगवान बिरसा मुंडा की पुण्यतिथि पर हरसूद विधानसभा से आदिवासी सीटों पर चुनाव प्रचार का आगाज करने जा रही है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ इस दिन हरसूद में जनसभा को संबोधित करेंगे। कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए तैयारियां शुरू कर दी गई हैं। पिछले विधानसभा चुनावों के आंकड़े साफ इशारा करते हैं, कि जिस दल ने एससी और आदिवासी सीटों पर कब्जा जमाया, मप्र में उस पार्टी की सरकार बनी है। राजनीतिक इतिहास को देखते हुए कांग्रेस का इन दोनों बड़े वर्गों पर फोकस है। इसलिए कांग्रेस ने भगवान बिरसा मुंडा की पुण्यतिथि पर आदिवासी बहुल सीट हरसूद से चुनावी शंखनाद करने का प्लान बनाया है। साल 2018 के विधानसभा चुनाव में आदिवासी वोटों के सहारे सत्ता तक पहुंची कांग्रेस एक बार फिर आदिवासी वर्ग को साधने के लिए हर संभव प्रयास कर रही है। साल 2018 के विधानसभा चुनाव में मध्य प्रदेश की 47 आदिवासी वर्ग की सुरक्षित सीटों में से कांग्रेस ने 30 सीटों पर विजय हासिल की थी। विगत विधानसभा चुनाव और नगरीय निकाय चुनाव में किए उसी प्रयोग को एक बार फिर से कांग्रेस इस विधानसभा चुनाव में दोहराने जा रही है। इस बार भी कांग्रेस को इन सीटों पर गैर राजनीतिक उम्मीदवारों की तलाश है।
परंपरागत वोट बैंक पर फोकस
कांग्रेस रणनीतिकारों का मानना है कि एससी-एसटी समुदाय कांग्रेस का परंपरागत वोट बैंक रहा है। लेकिन तीन चुनावों के एससी-एसटी के आंकड़े पूरी तरह कांग्रेस के पक्ष में नहीं रहे। ऐसे में कांग्रेस इस बार आदिवासी वोट बैंक को पूरी तरह अपने पाले में करने के लिए मिशन मोड में है। 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में आदिवासियों की सबसे अधिक संख्या मप्र में है। राज्य की कुल आबादी का लगभग 21.5 प्रतिशत आदिवासियों का है और उनके लिए 47 विधानसभा सीटें आरक्षित हैं। भाजपा ने 2018 में इन 47 सीटों में से 16 पर जीत हासिल की थी, जबकि उससे पहले 2013 के चुनावों में 31 सीटों पर उनका कब्जा था। पार्टी राज्य में 2003 से सत्ता में है। फिलहाल वह सत्ता विरोधी लहर से जूझ रही है। आरक्षित सीटों के अलावा, 37 और विधानसभा सीटें हैं जिन पर आदिवासी समुदाय का वर्चस्व है। राज्य में राजनीतिक दलों के भाग्य तय करने में यह सीटें निर्णायक भूमिका निभा सकती हैं।
आदिवासी नेताओं को सौंपी जिम्मेदारी
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने आदिवासी नेताओं को अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीटों की जिम्मेदारी सौंपी है। उन्हें निर्धारित समयावधि में सभी आदिवासी सीटों पर चुनाव की तैयारी पूरी कर पीसीसी चीफ कमलनाथ को रिपोर्ट सौंपना है। दरअसल, प्रदेश में अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए विधानसभा की 47 सीटें आरक्षित हैं। इसके अलावा करीब 40 सीटों पर आदिवासी मतदाता चुनाव में हार- जीत का फैसला करते हैं। यही वजह है कि कांग्रेस का फोकस आदिवासी सीटों पर है। पिछले दिनों पार्टी ने आदिवासी कांग्रेस की कमान रामू टेकाम को सौंपी है। उन्हें आदिवासी कांग्रेस का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया है। उनके पास चुनाव से पहले आधे जिलों में कार्यकारिणी गठित करने के साथ ही सभी आदिवासी सीटों का दौरा कर पार्टी के पक्ष में माहौल तैयार करने की चुनौती है।