मंगल भारत।मनीष द्विवेदी। प्रदेश के 40 हजार नर्सिंग छात्र-
छात्राओं के भविष्य पर गंभीर संकट मंडरा रहा है। नर्सिंग घोटाले का मामला हाईकोर्ट की ग्वालियर खंडपीठ में विचाराधीन है। 26 जुलाई को कोर्ट में सीबीआई रिपोर्ट पेश करेगी। इसी रिपोर्ट के आधार पर कोर्ट निर्णय ले सकता है। लिहाजा, छात्रों की नजर भी सीबीआई की रिपोर्ट पर टिकी है। हालत ये है कि जिन छात्रों को अब तक डिग्री मिल जानी चाहिए थी, वे फर्स्ट ईयर की परीक्षा का ही इंतजार कर रहे हैं। जांच और नर्सिंग कॉलेजों की मनमानी के बीच छात्र पिस रहे हैं। क्योंकि नर्सिंग कॉलेज खुलकर कहते हैं कि वे मानकों का पालन नहीं करेंगे, क्योंकि उनके पैसे तो अफसरों की जेब भरने में खत्म हो जाते हैं। ऐसे ही करीब 375 नर्सिंग कॉलेजों की जांच सीबीआई कर रही है।
जानकारी के अनुसार कोरोनाकाल के तीन साल में अवसर का लाभ उठाते हुए प्रदेश में जमकर नर्सिंग कॉलेज खुले। इस दौरान बीएससी और एमएससी नर्सिंग के 322 नए कॉलेज खुले। फर्जी फैकल्टी और बिना इन्फ्रास्ट्रक्चर के नर्सिंग कॉलेज संचालित होने लगे। इन कॉलेजों में इस दौरान खूब एडमिशन भी हुए हैं। जब नर्सिंग कॉलेजों का फर्जीवाड़ा उजागर हुआ, तो वर्ष 2019 से 2022 तक खुले नर्सिंग कॉलेजों में सबसे ज्यादा गड़बडिय़ां सामने आई हैं। अब इनमें हुए फर्जीवाड़े की जांच चल रही है।
कई कॉलेज कागजों पर चल रहे
असल में फर्जी नर्सिंग कॉलेजों ने कागजों में खुद के यहां 100 या इससे ज्यादा बेड की जानकारी दी हुई थी। कोविड के समय अफसरों ने इनसे संपर्क करके मरीजों के लिए बेड मांगे। इसके बाद पोल खुल गई। जांच के दौरान अनियमितताएं सामने आने लगीं। फिर कोर्ट में भी याचिका लगाई गई। व्यापमं की तर्ज पर ही मध्यप्रदेश में नर्सिंग घोटाला सामने आया। पता चला कि नर्सिंग काउंसिल की तरफ से ऐसे कॉलेजों को भी मान्यता दी गई, जो दूर-दूर तक मानकों को पूरा नहीं करते। कई कॉलेज एक मकान में या कुछ कमरों में संचालित थे, तो कई सिर्फ कागजों में चल रहे थे। हाईकोर्ट ने इसकी जांच सीबीआई को सौंपी। साथ ही, नर्सिंग परीक्षाओं पर भी रोक लगा दी। कोर्ट में राज्य सरकार, मेडिकल साइंस यूनिवर्सिटी और मध्य प्रदेश नर्सेस रजिस्ट्रेशन काउंसिल परीक्षाओं पर रोक हटाने के ही पक्ष में रही। मगर, हाईकोर्ट का रुख सख्त रहा है। पिछले महीने हाईकोर्ट में हुई सुनवाई में जस्टिस रोहित आर्या और जस्टिस सत्येंद्र कुमार सिंह ने फर्जी नर्सिंग कॉलेजों को राजनीतिक संरक्षण प्राप्त होने की बात कही थी। कोर्ट ने ये भी कहा कि इन कॉलेजों को जरिए ऐसे लोगों को भी परीक्षा में बैठने की अनुमति दी जाती है, जिन्हें नर्सिंग का एन भी नहीं आता।
परीक्षा पर रोक, फिर भी प्रवेश जारी
परीक्षा पर रोक लगने और मामला कोर्ट में होने के बावजूद भी नर्सिंग कॉलेज एडमिशन लेने से पीछे नहीं हट रहे हैं। इन कॉलेजों में एडमिशन पहले होता है। मान्यता बाद में मिलती है। 2020-21 सत्र में एडमिशन लेने वाले छात्र अब तक परीक्षा का इंतजार कर रहे हैं। मगर, कॉलेजों ने 2021 और 2022 में भी एडमिशन दिया था। इन बैचों की क्लास भी चलती है। नाम नहीं छापने की शर्त पर नर्सिंग कॉलेज के प्रिंसिपल बताते हैं कि यहां नियमों में इतना झोल है कि हम कई चीजें खुद से तय करने के लिए स्वतंत्र होते हैं। मान्यता रिन्यू करने की प्रक्रिया इतनी लेट शुरू होती है , कि हम तब तक इसका इंतजार नहीं करते। बच्चों को एडमिशन दे देते हैं। जब मान्यता पैसे देकर ही लेनी है, तो हमें भी पता रहता है कि थोड़े दिनों बाद मान्यता रिन्यू हो ही जाएगी। कॉलेज और छात्रों के बीच यह शर्त भी रहती है कि अगर गड़बड़ी हुई, तो पैसे लौटा दिए जाएंगे। इसे वो प्रोविजनल एडमिशन का नाम देते हैं। बच्चों के भविष्य के सवाल पर वे कहते हैं कि इसमें सबसे बड़ी गलती उनकी है, जो सबको धड़ल्ले से मान्यता देते हैं। मान्यता को देखकर ही बच्चे एडमिशन लेते हैं। फिर अगर ये स्थिति बनती है, तो उनके साथ अन्याय है। कोर्ट को सख्त होकर कार्रवाई जरूर करनी चाहिए। साथ ही, बच्चों के भविष्य के बारे में भी सोचना चाहिए।
नियमों का पालन नहीं….
इंडियन नर्सिंग काउंसिल के नियमानुसार बीएससी नर्सिंग कॉलेज खोलने के लिए संस्था के पास कम से कम 100 बेड का हॉस्पिटल होना जरूरी है। आदिवासी और पहाड़ी इलाकों में इसके अलग नियम हैं। संस्था का प्राइवेट या पब्लिक ट्रस्ट के रूप में रजिस्टर्ड होना अनिवार्य है। 60 छात्रों वाले कॉलेज का एरिया 23 हजार 200 वर्ग फीट जरूरी है। अगर नर्सिंग कॉलेज हॉस्पिटल के अंदर ही संचालित हों, तो उसके लिए स्वतंत्र रूप से इतने ही एरिया का फ्लोर होना चाहिए। 21 हजार 100 वर्ग फीट का हॉस्टल ब्लॉक होना चाहिए, जिसमें 30 प्रतिशत छात्रों के लिए आवासीय सुविधा अनिवार्य है। बीएससी नर्सिंग के 40 से 60 स्टूडेंट्स के लिए प्रिंसिपल और वाइस प्रिंसिपल को जोडक़र कम से कम 16 टीचिंग फैकल्टी होने चाहिए। शिक्षक और छात्रों का अनुपात 1-10 होना अनिवार्य है। हकीकत ये है कि कॉलेजों में 1-10 में शिक्षक और छात्रावास की सुविधा जैसी चीजें तो कहीं दूर-दूर तक नर्सिंग कॉलेजों में नहीं दिखती। इसके उलट बड़ी संख्या में यहां के नर्सिंग कॉलेजों में फेक फैकल्टी के मामले भी सामने आते रहते हैं।
कारोना काल में आ गई कॉलेजों की बाढ़
गौरतलब है कि प्रदेश में नर्सिंग के 1956 से 1980 तक सिर्फ 56 कॉलेज थे। प्रदेश में साल 2016-17 तक बीएससी नर्सिंग के 56 और एमएससी नर्सिंग के 17 व पीबी नर्सिंग के 14 ही कॉलेज थे। इसके बाद में कोरोना काल में प्रदेश में नर्सिंग कॉलेजों की बाढ़ सी आ गई है। साल 2017-18 तक 2017 इक्का-दुक्का कॉलेज ही बढ़े्। साल 2019-20, 2020-21 और 2021-22 में प्रदेश में नर्सिंग के सबसे ज्यादा कॉलेज खुले। इन्हीं कॉलेजों में सबसे ज्यादा फर्जीवाड़ा हुआ है। साल 2017-18 में प्रदेश में नर्सिंग के 60 कॉलेज थे। इसके बाद 2020-21 में इनकी संख्या बढक़र 333 हो गई है। अब इस फर्जीवाड़े की जांच सीबीआई कर रही है। सीबीआई ने अभी कुछ कॉलेजों की जांच की, जिसमें कई गड़बडिय़ां मिली हैं। अब सबसे परेशानी इन कॉलेजों में पढऩे वाले विद्यार्थियों की हो गई है। इनकी अब तक परीक्षा नहीं हुई है। परीक्षा होगी या नहीं, यह भी तय नहीं है। ऐसे में इन नर्सिंग कॉलेजों में एडमिशन ले चुके इन परीक्षार्थियों का भविष्य अब संकट में है।