तीन अफसरों के मामले विशेष न्यायालयों को भेजे
मंगल भारत।मनीष द्विवेदी। चुनावी साल में भ्रष्टाचार के मामले में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी सख्त हो गए हैं। यही वजह है कि बीते एक माह में सालों से लंबित 170 मामलों में जहां भ्रष्ट कर्मचारी और अधिकारियों के खिलाफ अभियोजन की मंजूरी दी जा चुकी है, तो वहीं इस माह में भी करीब दो सैकड़ा भ्रष्टाचारी शासकीय अफसरों व कर्मचारियों के मामलों में भी चालान पेश करने की अनुमति देने की तैयारी है। इसकी शुरुआत बीते दिन तीन अफसरों के मामलों से की जा चुकी है। इसमें बेहद अहम बात यह है कि जिन मामलों में स्वीकृति देने की तैयारी की जा रही है, उसमें भारतीय प्रशासनिक और राज्य प्रशासनिक सेवा के करीब दो दर्जन अफसरों के नाम भी शामिल हैं। इसके लिए सामान्य प्रशासन विभाग द्वारा कवायद की जा रही है। दरअसल चुनावी साल में विपक्ष प्रदेश में भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाने के प्रयासों में लगी हुई है। यही वजह है कि इस मामले में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को बेहद सख्ती दिखानी पड़ रही है। कुछ समय पहले ऐसे मामलों को लेकर मुख्यमंत्री द्वारा बैठक भी बुलाई जा चुकी है, जिसमें उनके द्वारा स्पष्ट कर दिया गया था कि भ्रष्टाचार के मामलों में प्रदेश में जीरो टॉलरेंस की नीति पर पूरी तरह से अमल किया जाए। भ्रष्ट कर्मचारी और अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई करने में कोई कोताही बर्दाश्त नहीं की जाएगी। दरअसल इसके पूर्व लोकायुक्त और ईओडब्ल्यू द्वारा लगातार शासन को बार-बार पत्र लिख कर अभियोजन की मंजूरी मांगी जाती रही है, लेकिन मंजूरी ही नहीं दी जा रही थी। इसकी वजह से लगातार ऐसे मामलों की संख्या बढ़ती ही जा रही थी। सूत्रों का कहना है कि कुछ समय पहले तक प्रदेश में अभियोजन मंजूरी के लिए करीब चार सौ प्रकरण लंबित चल रहे थे, जिसमें से हाल ही में 170 मामलों में स्वीकृति प्रदान की जा चुकी है। उल्लेखनीय है कि लोकायुक्त और ईओडब्ल्यू द्वारा रिश्वत में पकड़े गए तथा अन्य भ्रष्टाचार की जद में आए कर्मचारी और अधिकारियों के खिलाफ अदालत में चालान प्रस्तुत करने के ऐसे प्रकरणों में पेंच हैं, जिनमें संबंधित विभाग से अभियोजन की स्वीकृति ली जाना जरुरी है। ऐेसे मामलों में विभाग आरोपी अफसरों को बचाने के लिए स्वीकृति देने की जगह उन्हें लटकाए रखने में पूरी रुचि लेते हैं। खास बात यह है कि इन मामलों में प्राय: सरकार भी राजनैतिक और प्रशासनिक दबाव के चलते कोई रुचि नहीं लेती है, जिसकी वजह से मामले सालों लंबित पड़े रहते हैं।
इनके मामलों में मिल सकती है मंजूरी
इधर, पीएस दीप्ति गौड़ मुखर्जी के अनुसार पूर्व आईएएस अंजू सिंह बघेल के खिलाफ अभियोजन की मंजूरी दे दी गई है। पूर्व आईएएस सभाजीत यादव, आईएएस नियाज अहमद और लोकेश जांगिड़ की फाइल मंगाई है। करीब दो दर्जन एसएएस के अधिकारियों के खिलाफ भी अभियोजन की मंजूरी देने की तैयारी है। आईएएस पवन जैन के खिलाफ केंद्रीय कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) की सलाह के बाद शासन ईओडब्ल्यू को केस चलाने की मंजूरी देगा। सामान्य प्रशासन विभाग पत्र लिखकर डीओपीटी से इस मामले में सलाह ले रहा है। ईओडब्ल्यू ने इंदौर से जुड़े 7 साल पुराने मामले में चालान पेश करने के लिए शासन से अभियोजन की स्वीकृति मांगी है। डीओपीटी से अभियोजन की स्वीकृति मिलने के बाद ही आगे की कार्रवाई हो सकेगी। तत्कालीन एसडीओ राजस्व पवन जैन पर रियल स्टेट के लोगों से सांठगांठ कर पर्यवेक्षण शुल्क जमा करने का आरोप है।
आधा दर्जन विभागों में सर्वाधिक लंबित
सूत्रों की माने तो अभियोजन की मंजूरी के लिए करीब 175 प्रकरण अभी लंबित चल रहे हैं। इसमें भी सर्वाधिक मामले नगरीय प्रशासन एवं विकास, पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग, लोक निर्माण विभाग और जीएडी कार्मिक के हैं। बताया गया कि ऐसे प्रकरणों में पेंच यह है कि इसमें भी कई मामलों में एक से अधिक विभाग शामिल हैं। इसी तरह से लोकायुक्त संगठन को ऐसे 280 अधिकारी कर्मचारियों के खिलाफ जांच शुरू करने का इंतजार है। हालात यह हैं कि इजाजत नहीं मिलने की वजह से भ्रष्टाचार के 15 केस 9 साल से लंबित हैं। इनमें भी नगरीय आवास और विकास विभाग के लगभग 31 सामान्य प्रशासन विभाग और पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के 29-29 मामले लंबित हैं, वहीं राजस्व विभाग के 25 और स्वास्थ विभाग के 17 मामले लंबित हैं। नियम के अनुसार अधिकतम 4 महीने में अभियोजन की स्वीकृति मिलनी चाहिए।