20 साल बाद मप्र को फिर मिल सकता है उपमुख्यमंत्री

जातिगत समीकरण साधने की होगी कवायद.

भोपाल/मंगल भारत। मप्र में 17 नवंबर को मतदान के बाद अब सबकी नजर 3 दिसंबर को होने वाले मतगणना पर है। भाजपा और कांग्रेस दोनों पार्टियां अपनी-अपनी जीत की संभावनाओं का गुणा-भाग कर रही हैं। लेकिन प्रदेश में दोनों पार्टियों में जिस तरह की स्थिति नजर आ रही है , उससे संभावना जताई जा रही है कि चुनाव में जीत किसी को भी मिले, लेकिन मप्र को 20 साल बाद एक बार फिर से उपमुख्यमंत्री मिल सकता है। प्रदेश के गठन के बाद से अब तक प्रदेश को चार उपमुख्यमंत्री ही मिले है। इनमें से तीन कांग्रेस सरकार में और एक जनसंघ की सरकार के दौरान बनाएं गए है। प्रदेश में जब गोविन्द नारायण सिंह बतौर सीएम जनसंघ की सरकार चला रहे थे, तब वीरेंद्र कुमार सकलेचा को 30 जुलाई 1967 को उपमुख्यमंत्री बनाया गया था
गौरतलब है कि कांग्रेस की तरफ से कमलनाथ मुख्यमंत्री का चेहरा हैं। वहीं भाजपा ने इस बार सीएम फेस घोषित नहीं किया है। इस कारण भाजपा में सीएम के लिए कई चेहरे चर्चा में हैं। ऐसे में अगर भाजपा जीतती है तो संतुलन बनाए रखने के लिए मुख्यमंत्री के साथ उपमुख्यमंत्री भी बनाया जा सकता है। वहीं अगर कांग्रेस जीतती है, तो वहां भी संतुलन साधने के लिए किसी अन्य नेता को उपमुख्यमंत्री बनाया जा सकता है। ऐसे में प्रदेश में 20 साल बाद एक बार फिर से उपमुख्यमंत्री मिल सकता है। पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह मतदान होने के बाद भी ठहरे नहीं है। उनकी सक्रियता लगातार जारी है। जिस तरह से वह पिछले कुछ दिनों में अपने प्रत्याशियों के समर्थन में उनके विधानसभा क्षेत्र पहुंचे और उनके खिलाफ भाजपा नेताओं या शासन द्वारा की गई कार्यवाही का प्रतिरोध किया, उससे कई तरह की चर्चाएं हो रही है। राजनीति के जानकार इसे मतगणना से पहले अपने प्रत्याशियों का भरोसा जीतने का प्रयास मान रहे हैं। कहा जा रहा है कि दिग्विजय सिंह बहुमत मिलने के बाद विधायक दल के सर्वसम्मति निर्णय के लिए अभी से प्रयास करने में जुटे हुए है।
दोनों पार्टियों में फॉर्मूला तैयार
2018 से सबक लेते हुए कांग्रेस का पूरा फोकस संतुलन पर है। वहीं भाजपा भी इसी दिशा में काम कर रही है। दोनों पार्टियां में उपमुख्यमंत्री का फॉर्मूला लगभग तैयार है। राजनीति से जुड़े सूत्रों की माने तो इस बार अगर भाजपा की सरकार बनती है, तो सीएम के साथ डिप्टी सीएम के नाम पर भी चर्चा होगी। इसके लिए पहले ही फार्मूला तय किया गया है। इसी तरह यदि सत्ता की कुर्सी तक पहुंचने की स्थिति में कांग्रेस आती है, तो यहां भी किसी वरिष्ठ विधायक को डिप्टी सीएम की जिम्मेदारी सौंपी जाएगी। उल्लेखनीय है कि कांग्रेस नेतृत्व ने सांमजस्य बनाने के लिए छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव से चंद महीने पहले उपमुख्यमंत्री के पद पर टीएस सिंहदेव को बैठाया था, जिससे वहां कांग्रेस में किसी भी तरह के विरोध के स्वर सुनाई नहीं पड़े थे। सूत्रों की माने मध्यप्रदेश में भाजपा या फिर कांग्रेस की सरकार बनें। दोनों दल ओबीसी की भागीदारी पर विशेष फोकस रखेंगे। भाजपा में यदि सीएम ओबीसी या आदिवासी होगा, तो सामान्य वर्ग के किसी वरिष्ठ विधायक को उपमुख्यमंत्री बनाया जा सकता है और यदि सामान्य या अन्य वर्ग के विधायक को सीएम पद की कुर्सी पर बैठाया जाता है, तो कोई ओबीसी विधायक का डिप्टी सीएम के पद पर बैठना लगभग तय माना जा रहा है। इसी तरह कांग्रेस में कमलनाथ के सीएम बनने के बाद उपमुख्यमंत्री पद के लिए किसी ओबीसी विधायक को आगे लाया जाएगा।
सैद्धांतिक सहमति बनी….
सूत्रों की माने तो नतीजे से पहले ही दोनों प्रमुख दलों में उप मुख्यमंत्री बनाए जाने की सैद्धांतिक सहमति बन चुकी है। गौरतलब है कि मध्यप्रदेश में पिछली सरकार के दौरान कई बार मुख्यमंत्री बदले जाने की खबरें आम होती रही हैं, तब यह भी बात सामने आई कि उपमुख्यमंत्री के पद पर किसी वरिष्ठ मंत्री की ताजपोशी की जाए, लेकिन कई दावेदारों की वजह से भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने विधानसभा चुनाव से पहले किसी भी तरह की विवाद की स्थिति निर्मित नहीं होने देने अपने संभावित निर्णयों पर विराम लगा दिया था। बताया गया है कि ऐसी स्थिति एक बार नहीं दो से तीन बार निर्मित हुई और भोपाल में बैठे दावेदार मंत्रियों ने दिल्ली में कई दिनों तक डेरा भी डाला। कांग्रेस से जुड़े सूत्र बता रहे है कि वर्ष 2020 में हुई चूक की वजह से यहां कांग्रेस को सत्ता से बेदखल होना पड़ा था, इस बार ऐसी स्थिति निर्मित नहीं हो, इसलिए पहले से ही तय कर लिया गया है कि बहुमत मिलते ही यह निर्णय हो जाएगा कि सीएम के साथ डिप्टी सीएम भी शपथ लेंगे। मध्यप्रदेश में लगभग तय है कि कमलनाथ ही अगले मुख्यमंत्री होंगे, लेकिन डिप्टी सीएम के लिए कांग्रेस परिणाम आते ही चेहरे पर मोहर लगा देगी और फिर विधायक दल की बैठक में दोनों नामों पर विधायकों की मोहर लगवाई जाएगी।